: जूनियर वकील के कपड़े ऐसे फाड़े, जैसे जज मुकदमे खारिज करता है : चीफ स्टैंडिंग कौंसिलर हैं यह साहब, तो फिर वकालत में बचा क्या : कोरोना में जब लोग सहवास से बिदके हैं, इस वकील ने यौनचार के झंडे गाड़ दिये :
कुमार सौवीर
लखनऊ : मनोविज्ञानियों, डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का साफ मानना है कि समाज पर कोरोना के हमले का सबसे बड़ा दुष्परिणाम दाम्पत्य-जीवन में सहवास पर पड़ा है। जानकार बताते हैं कि कोरोना ने लोगों के दिल-दिमाग को बुरी तरह मथ दिया है। हालत यह है कि वे प्रजनन अथवा आनंद तक के लिए भी सहवास के लिए तत्पर नहीं हो पाते हैं। एक निरीह भाव दाम्पत्य जीवन में भरता जा रहा है, जो नैराश्य भाव को फैला रहा है। कई-कई लोग तो ऐसे हैं जिन्होंने सहवास तो दूर, उस बारे में अपने जीवन-साथी अथवा अपने संगी के साथ प्यार के दो बोल तक नहीं बोले।
लेकिन मनोविज्ञानियों, डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की इस बारे में समाज को लेकर खोजी, पछोरी और निष्कर्ष तक पहुंच चुकी ऐसी सारी काम सम्बन्धी थ्योरी वकीलों पर लागू नहीं होती है। हरगिज भी नहीं। कम से कम विधि-व्यवसाय क्षेत्र में सक्रिय लोगों की स्थिति ऐसी किसी की काम-सम्बन्धी थ्योरी पर तनिक भी लागू नहीं हो पा रही है। लखनऊ हाईकोर्ट में एक वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ हुई एक घटना इसका जीवन्त, सक्रिय और रसयुक्त घटना साबित करती है कि वकीलों के सहवास-सम्बन्धी रिश्तों पर कोरोना का तनिक भी कोई असर नहीं पड़ा है। हालांकि यह भी सच है कि इस वकील को अपने ऐसे रिश्तों की कीमत अपनी सम्पत्ति और अपनी साख, प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति गंवाने के तौर पर चुकानी पड़ी है।
खबर सिर्फ इतनी ही है कि इस वकील साहब ने जितनी घटिया हरकत अपनी महिला जूनियर वकील के साथ की है, वह वाकई बेमिसाल है। अजी ऐसा वैसा नहीं, बाकायदा रेप कर डाला है इन वकील साहब ने। वह भी अपनी बेटी से भी छोटी बच्ची के साथ। लेकिन हां, ऐसा भी नहीं है कि हाईकोर्ट या कहीं के भी वकील साहबान छिनारा जैसी हरकत नहीं करते हैं। अजी साहब, खूब करते हैं, और हचक कर करते हैं। कई लोग तो इतना करते हैं कि उनका नाम ही सहवास से जुड़े प्रमुख कृत्य-कर्म अथवा अंगों के नाम से ही विख्यात-कुख्यात हो चुका है। लेकिन कोरोना-संक्रमण काल में वे अपनी ऐसी कामाग्नि वाले चूल्हे पर भय-जनित संयम के जल के छिड़काव कर उसे शांत करते रहते हैं। खास तौर पर तब, जब एक पप्पी की कीमत जानलेवा तक हो सकती हो। लेनि इस वकील साहब ने तो जीवन तो दूर, जीवन की सारी संचित-निधि को ही दक्षिण-दिशा में लगा दिया।
शर्मनाक बात तो यह है कि यह वकील कोई और नहीं, बल्कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठखंड में मशहूर अधिवक्ता है। कोई और वकील ऐसा करता तो कोई बात नहीं होती, लेकिन इस वरिष्ठ की हैसियत जानकर आप अपने दांतों तले उंगलियां कुचल डालेंगे। इस वकील का नाम है शैलेंद्र सिंह चौहान। शैलेंद्र की उम्र करीब 60 के लपेटे में है। थुलथुल बदन है, सिर का बड़ा हिस्सा बहुत तेजी के साथ रोमहीन होता जा रहा है। इन वकील साहब की करतूतों के सैकड़ों किस्से अदालती परिसरों में खूब चर्चित हैं।
हालत तो यह है कि वे अपने बेटे की उम्र के लड़कों के साथ ही वह सारे कर्मकांडों का चटखारा लेकर जिक्र किया करते हैं। रही बात सहवास की, तो विश्वस्त दोलत्ती सूत्रों के अनुसार वे उस युद्धक्षेत्र में अपने कपड़ों को अपने बदन से कुछ यूं खारिज करने लगे हैं, जैसे डायस पर बैठे जज साहबान बेहूदी याचिकाओं को झटापट निष्पादित, खारिज और सुनने योग्य नहीं मानते। और उन्हें अनावश्यक मान कर अगली फाइल को जांचने-परखने में लपक पड़ते हैं।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन वकील साहब की हैसियत अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता की है, यानी वे सरकारी वकीलों के पायदान पर ऊंची हैसियत रखते हैं। ऐसी हालत में और इसी हालत के बावजूद अगर आपको वकीलों के प्रति कोई विशेष आस्था, सम्मान और आदरभाव के कीड़े कुलबुला रहे हों, तो फिर आपको किसी मनोविज्ञानिक से कंसल्ट करना चाहिए।
उनका नाम ही सहवास से जुड़े प्रमुख कृत्य-कर्म अथवा अंगों के नाम से ही विख्यात-कुख्यात हो चुका है।
जैसे-पेलू 😀😀