दिल्ली में एड्स का सायरन, सर्तकता के बावजूद 3 हजार मरीज लापता

बिटिया खबर

संक्रमित 2319 सौ की मौत, जबकि 2936 मरीज भाग खड़े हुए

दिल्ली में सरकारी आंकड़ों की तुलना में ज्यादा है एचआईवी मृत्यु-दर

नई दिल्ली: राजधानी नई दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में एड्स का ज्वालामुखी धधक रहा है। राष्ट्रीय राजधानी में पिछले आठ बरसों के दौरान से 41,065 एचआईवी संक्रमित लोगों को दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में रजिस्टर किया गया था। इनमें से 2319 मरीजों ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। लेकिन यह तो कोई बात नहीं। सरकार को खतरा तो उससे ज्यादा उन लोगों से हो रहा है जो इन्हीं समयावधि में इलाज को धता बता कर फरार हो गये। इतना ही नहीं, सरकारी आंकड़ों में इन फरार मरीजों का नाम खतरनाक मरीज के तौर पर दर्ज था। जाहिर है कि एड्स की इस महामारी को बढ़ाने में इन्हीं स्लीपिंग मॉड्यूल्स  की भूमिका सबसे ज्यादा होगी।

बताते चलें कि इलाज करने के लिए पहुंचने वाले नियमित मरीजों से सरकारी अफसर खतरा नहीं मानते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा खतरनाक उन मरीजों से होती है जो इस बम-सरीखी बीमारी लेकर अचानक भाग खड़े हो जाते हैं और चूंकि उन पर नियंत्रण नहीं होता है, ऐसी हालत में ऐसे मरीज इस मर्ज को जहां-तहां फैलाते घूमते रहते हैं। ऐसी हालत में इस बीमारी नियंत्रित न होकर महामारी की शक्ल अख्तियार कर लेती है।

बताते चलें कि दिल्ली राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी (DSACS), 2319 एचआईवी संक्रमित लोगों को दिल्ली के अस्पतालों में एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) केंद्र के साथ पंजीकृत किये गये मरीजों की मौत इन आठ बरसों में हो चुकी है जबकि इसी दौरान २,९३६ रोगियों के उपचार में सरकार पूरी तरह विफल रही है। आंकड़ों के अनुसार इन बरसों के बाद से 2936 रोगियों के कोई पता-निशान नहीं मिल पा रहा है। स्वास्थ्य अधिकारियों में संशय और अनिश्चितता है कि वे यह अब भी जीवित हैं या मर गये। और अगर जीवित हैं भी तो किस हालत में। खतरा तो इस बात का है कि कहीं यह भगोड़े इस समस्यात की आग में पेट्रोल न डाल रहे हों।

सरकारी अफसरों का कहना है कि “पिछले आठ साल में दिल्ली 41,065 एचआईवी मरीजों की कुल एआरटी केन्द्रों में परची काटी गयी थी उनमें से 2319 इस तरह के रोगियों को संक्रमण के कारण मृत्यु हो गई है। इसी तरह, वहाँ जिन लगभग 2936 रोगियों का उपचार शुरू किया गया था लेकिन वे उपचार के साथ जारी करने में विफल रहा है और अब खो चुके हैं।” डॉ. ए.के. गुप्ता, सहायक DSACS के परियोजना निदेशक ने कहा। उन्होंने बताया कि यह हालत तब है जबकि इलाज के लिए मिलने वाली सुविधाओं की लागत, मासिक दवा खुराक और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए आदि सुविधाएं इन रोगियों को नि:शुल्क ही मिलती है।

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