वरना 10 को शुरू हो जाएगी सहारा इंडिया की सम्‍पत्तियों की नीलामी

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सेबी ने साफ कहा: 8 अप्रैल को ब्योरा और 10 को खुद हाजिर होना जरूर

सहारा समूह बताना होगा कि उसकी कौन-कौन सम्पत्तियों से होगी भरपायी

शिमला और मुंबई: होली की पूर्व शाम को जब सेबी ने सहारा इंडिया के मामले में फैसला सुनाया तो उसे समझने में सुब्रत राय और कम्पनी के चेहरों पर मुर्दनी छा गयी। इस दिन समूह को दोहरे झटके लगे। पहला झटका मुंबई से बाजार नियामक सेबी ने दिया। इस दिन नियामक ने सहारा प्रमुख सुब्रत राय को अपने सामने 10 अप्रैल को पेशी के लिए समन जारी कर दिया। इस तारीख को पेश होकर सुब्रत को बताना होगा कि उनकी कौन-कौन सी संपत्तियां बेचकर निवेशकों के 24,000 करोड़ रुपये चुकाए जाएं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर समूह को यह रकम निवेशकों को लौटानी है। वहीं दूसरी ओर, एक दीगर मामले में हिमाचल हाईकोर्ट ने सहारा समूह की पांच कंपनियों पर शिकंजा कस दिया है। हाईकोर्ट ने जनता से किसी भी तरीके से धन जुटाने पर सहारा पर रोक लगा दी। ताबड़तोड़ इन दोनों झटकों से सहारा इंडिया और सुब्रत राय के खेमे में सन्नाटा मच गया है।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने मंगलवार को आठ पन्नों का आदेश जारी किया। इसमें सुब्रत और समूह के तीन अन्य शीर्ष अधिकारियों से कहा गया है कि वे अगले महीने की आठ तारीख तक अपनी संपत्तियों, बैंक खातों और टैक्स रिटर्न का ब्योरा सेबी के पास दाखिल करें। इसके बाद 10 अप्रैल को खुद नियामक के सामने हाजिर हों। तीन अन्य अधिकारियों के नाम हैं- अशोक रॉय चौधरी, रवि शंकर दुबे और वंदना भार्गव। सेबी ने यह भी साफ कर दिया है कि अगर इस तारीख को तीनों सारे ब्योरे के साथ पेश नहीं हुए तो वह संपत्तियों की नीलामी की एकतरफा प्रक्रिया शुरू कर देगा। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने ताजा आदेश में जिन पर रोक लगाई है, उनमें सहारा इंडिया परिवार, सुब्रत राय, सहारा क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, सहारा क्यू शॉप यूनीक प्रोडक्ट रेंज लिमिटेड और सहारा क्यू गोल्ड मार्ट लिमिटेड शामिल हैं। ये सभी किसी भी स्कीम के जरिये आम लोगों से धन जमा नहीं करा सकेंगे।

इसके अलावा यह भी आदेश दिया गया है कि पांचों की जांच रिजर्व बैंक और सेबी करे। साथ ही दोनों नियामकों की इजाजत के बगैर समूह किसी तरह का वित्तीय हस्तांतरण नहीं करे। कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को भी इस मामले की जांच करने को कहा है। अदालत ने ये आदेश एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान जारी किए। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि समूह लोगों से जुटाई गई जमाराशियां का विदेश में हस्तांतरण कर रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 22 अप्रैल को होगी।

दैनिक जागरण के मुताबिक आइए जानते हैं कि आखिर यह मामला है क्या और समूह के खिलाफ न्यायालयों और नियामकों की यह सख्ती किस लिए है। दरअसल, सहारा समूह की तमाम फर्मे जनता से तमाम तरह की स्कीमों के जरिये पैसा जमा कराती हैं। इनमें से ही दो कंपनियों- सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन (एसआइआरईसीएल) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्प लिमिटेड (एसएचआइसीएल) ने तीन करोड़ निवेशकों से 24,000 हजार करोड़ रुपये जुटाए थे। यह रकम वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर (ओएफसीडी) जारी करके इकट्ठा की गई। ऐसे इश्यू जारी करने से पहले बाजार नियामक सेबी से किसी तरह की मंजूरी नहीं ली गई, जबकि कानूनन ऐसा करना जरूरी था। इस मामले में कार्रवाई करते हुए सेबी ने दोनों कंपनियों को निवेशकों से जुटाई गई धनराशि को 15 फीसद ब्याज सहित जुटाने का आदेश दिया। इसके बाद यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट से होते हुए अंतत: सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। बीते साल अगस्त में शीर्ष अदालत ने सेबी के आदेश को बरकरार रखते हुए निवेशकों की रकम ब्याज सहित चुकाने का फैसला सुना दिया। साथ ही इसे लागू करने की जिम्मेदारी सेबी पर डाल दी। इसी पर अमल करते हुए नियामक ने बीते महीने सुब्रत की संपत्तियों और बैंक खातों को जब्त करने का आदेश दिया था। सैट में फिर टली सुनवाई नई दिल्ली : प्रतिभूति अपीलीय ट्रिब्यूनल (सेट) ने सहारा समूह की संपत्तियों की जब्ती संबंधी सेबी के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई 13 अप्रैल तक के लिए टाल दी है। समूह प्रमुख सुब्रत राय ने यह याचिका दायर की है। 23 मार्च को ट्रिब्यूनल ने इस याचिका पर 26 मार्च से दिल्ली में अंतिम सुनवाई शुरू करने का निर्णय लिया था। लेकिन अब इस मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं पर एक साथ विचार के लिए सैट ने सुनवाई टाल दी।

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