सुब्रत राय का मतलब:- इसकी टोपी, इसके सिर

मेरा कोना

: हजारों करोड़ की रकम से पीले हो जाते लाखों बेटियों के हाथ बेधड़क : सर्वोच्‍च न्यायालय के फैसले से खुलासा, करोड़ों को बेसहारा कर चुका सहारा इंडिया :  सहारा की बंद इंडस्ट्री की कील व टेक्सटाइल के रूमालों से कैसे कमाया खरबों :

सुब्रत राय को मैं सन 1982 के मई महीने से परिचित हूं। तारीख का अंदाज नहीं, लेकिन सुब्रत राय से मेरी पहली मुलाकात 2 जून-1982 सहारा इंडिया में ज्वाइन करने के करीब 10-12 दिन बाद लखनऊ में हुई। लालबाग स्थित सहारा इंडिया के एक छोटे से मुख्यालय में। मैं उपासक हूं सुब्रत राय का। उनकी शैली और क्षमता का। यह शख्स हर मामले को अपने पक्ष में मोड़ने की क्षमता बेहिसाब क्षमता रखता है। वह जानता है कि हर क्षमता की क्षमता और काम के बीच क्या् सम्बन्ध है। लेकिन उसे खूब पता होता है कि उसकी क्षमता की औकात और काम वाले काम की कीमत में क्या और अंतिम मूल्य किसके पक्ष में होगा। जाहिर है कि इसी शर्त में हमेशा क्षमता और औकात का मूल्यांकन दो-कौड़ी का होता रहा है, जबकि कीमत हमेशा जीत जाती है। और कहने की जरूरत नहीं कि कीमत की यह उछालने में यह सफलता केवल ” इसकी टोपी- उसके सिर पर ” वाले गेम पर ही होती है।

देखिये ना, सुब्रत राय वाली सहारा इंडिया कम्पनी की ओर से छपवाई गयी भारी-भरकम इश्तहार को, जिसे 16 फरवरी-13 को इस कम्पनी ने देश भर के अखबारों में छपवा दिया। हम आपको दिखाते हैं वह विज्ञापन। फिर आपको दिखेगी असलियत कि क्या क्या नहीं खेल हुए हैं सहारा इंडिया में और क्या-क्या नहीं करने का इरादा है इस कम्पनी में। विज्ञापन में खुद सहारा इंडिया ने बताया है कि ” सहारा इंडिया रियल इस्टेट कार्पोरेशन लिमिटेड और सहारा इंडिया इन्वेंस्टमेंट कार्पोरेशन की बकाया ओएफसीडी में बहुत बड़ा भ्रम पैदा हो गया है। ” अब सहारा इंडिया या सुब्रत राय से यह पूछा जाना चाहिए कि कि पूरी कम्पनी में काला-सफेद जैसी ट्रांस्‍पेरींसी का दावा करने वाले सुब्रत राय के कामधाम में आखिरकार बहुत बड़ा भ्रम क्यों हो गया है। विज्ञापन में दर्ज हैं कुछ आंकड़े। ” इसके मुताबिक दोनों कम्पंनियों ने अब तक 25,781 करोड़ से ज्‍यादा रूपयों उगाही थी। साथ ही यह भी दावा है कि लौटाई गयी रकम है 22,117 करोड़ रूपया। यानी अभी कम्पनी में शेष बकाया देनदारी बनती है अभी 3,663 करोड़ रूपया। ” लेकिन इसी विज्ञापन में दावा किया गया है कि ” पिछले 34 बरसों में एक भी मामले में अदायगी करने में कम्पनी में देरी नहीं की है। ” फिर सवाल यह है कि यह 3,663 करोड़ रूपया की देनदारी अगर बकाया नहीं है तो फिर आखिर किस मद में है।

दूसरी बात यह कि इसी विज्ञापन में महत्वपूर्ण शीर्षक में लिखा है कि ” कम्पनी की बकाया 3,663 करोड़ रूपयों से ज्यादा इस राशि का प्रतिशत से अधिक अब बकाया देनदारी नहीं रह गयी है। क्योंकि इन कम्पनियों द्वारा दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के निवेशकों को अदायगी कर दी गयी है और इन राशियों के बहुसूत्रीय सत्यापन की प्रक्रिया चल रही हैं और उक्त राशि पर 15 प्रतिशत की दर से कुल ब्याज रूपया 1370 करोड़ है। विज्ञापन के मुताबिक ” सहारा इंडिया अब तक सेबी को 5120 करोड़ रूपये अदा कर चुका है और आज की तारीख में सहारा को कुछ भी देना नहीं है, बल्कि सहारा बहुत ही जल्दी सेबी से एक बड़ी धनराशि वापस प्राप्त करने का हकदार होगा। “

कुल मिलाकर यानी सुब्रत राय यह कहना चाहते हैं कि उनके खिलाफ जो भी फैसले सर्वोच्च न्यायालय ने जारी किये हैं, जो सेबी ने सहारा इंडिया के खिलाफ निर्देश और आदेश जारी की हैं और सेबी और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के चलते सुब्रत राय और सहारा इंडिया के दो सैकड़ा से ज्यादा बैंक खातों के संचालन पर रोक लगा दी गयी है, वह पूरी तरह फर्जी और तथ्यों के प्रतिकूल है। जाहिर है कि सहारा इंडिया के यह सारे दावे केवल हवाई हैं।

फिर यह सवाल है कि इस तरह यह झूठे विज्ञापन जारी करने की जरूरत सहारा इंडिया को क्यों पड़ी। हम बताते हैं कि इसकी हकीकत। दरअसल, सहारा इंडिया की करतूतों के खुलासे और उनको जांचने के बाद सर्वोच्च और सेबी के फैसलों के चलते सहारा इंडिया का आधार ही खिसकने लगा था। साख बहुत बड़े दांव पर थी। ऐसे में लाखों-करोड़ों निवेशकों की भगदड़ का खतरा था। और इसी खतरे को भांप कर ही सहारा इंडिया ने यह विज्ञापन जारी कराये। ( जारी)

सुब्रत राय और सहारा इंडिया की धांधागर्दी

सुब्रत राय: महिलाओं पर अब कौन सा मोर्चा खोलेगा सहारा इंडिया ( पार्ट-1 )

सुब्रत राय तो चांदी के जूते हुक्मरानों को पहनाता और खूब मारता भी है ( पार्ट-2 )

(यह लेख लेखक के निजी विचार हैं)

कृपया इन ईमेल पर लेखक से सम्पर्क करें meribitiyakhabar@gmail.com,

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