सहारा पर सुप्रीम कोर्ट ने बार अध्यक्ष को भी लताड़ा, फौरन रकम अदा करो

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पैसा अदा नहीं किया तो आइंदा कोर्ट में मत आना : सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को चेताया

: सहारा इंडिया हर कीमत पर 10 दिन के भीतर वापस करे रकम : (बे)सहारा के निवेशक बेबस, बेटी की शादी करायें या अपनी चिता : बेटियों की शादी के लिए रखा अरबों-अरब डूबने की नौबत, सहारा की याचिका फाइनली खारिज : सुप्रीम कोर्ट ने हर हालत में समय न बढ़ाने का फैसला किया :

दिल्ली : अपने निवेशकों को 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने के लिए कुछ और मिलने की सहारा समूह की अंतिम उम्मीद उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को खत्म कर दी। प्रधान न्यायाधीश अल्‍तमस कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सहारा समूह को और समय देने से इन्कार करते हुए फरवरी के प्रथम सप्ताह तक निवेशकों का धन लौटाने की न्यायिक आदेश का पालन नहीं करने के लिए उसे आड़े हाथों लिया।

इसी खंडपीठ ने सहारा समूह की दो कंपनियों को निवेशकों का धन लौटाने के लिये पूर्व में निर्धारित अवधि बढ़ाई थी। न्यायाधीशों ने सख्त लहजे में कहा,‘यदि आपने हमारे आदेशानुसार धन नहीं लौटाया है तो आपको न्यायालय में आने का कोई हक नहीं बनता है।’ उन्होंने कहा कि यह समय सिर्फ इसलिए बढ़ाया गया था ताकि निवेशकों को उनका धन वापस मिल सके।

सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय और इसकी दो कंपनियां सहारा इंडिया रियल इस्टेट कारपोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेन्ट कारपोरेशन पहले से ही एक अन्य खंडपीठ के समक्ष न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही का सामना कर रही हैं। इस खंडपीठ ने निवेशकों का धन लौटाने के आदेश का पालन नहीं करने के कारण छह फरवरी को सेबी को सहारा समूह की दो कंपनियों के खाते जब्त करने और उसकी संपत्तियां कुर्क करने का आदेश दिया था।

सहारा समूह के मामले की आज सुनवाई शुरू होते ही उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एम कृष्णामूर्ति ने खड़े होकर प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ द्वारा इसकी सुनवाई करने पर आपत्ति की। उनका कहना था कि इस पीठ को मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि निवेशकों को धन लौटाने का आदेश दूसरी खंडपीठ ने दिया था। कृष्णामणि ने कहा, ‘बार के नेता के रूप में मुझे यही कहना है कि इस अदालत की परंपरा का निर्वहन करते हुए इस खंडपीठ को इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए और आदेश में सुधार के लिए इसे उसी पीठ के पास भेज देना चाहिए। इस मामले की सुनवाई करने की बजाय उचित यही होगा कि दूसरी खंडपीठ इसकी सुनवाई करे। नाना प्रकार की अफवाहें सुनकर मुझे तकलीफ हो रही है।’

प्रधान न्यायाधीश इस बात पर नाराज हो गये और उन्होंने कहा कि वह इस मामले के तथ्यों की जानकारी के बगैर ही बयान दे रहे हैं। उन्होंने कृष्णामणि को बैठ जाने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति कबीर ने कहा, ‘आपको कैसे पता कि इस मामले में क्या होने जा रहा है। यदि कुछ हो तब आप कहिये। कृपया अपना स्थान ग्रहण कीजिये।’ न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पिछले साल 31 अगस्त को सहारा समूह की दो कंपनियों को निवेशकों का करीब 24 हजार करोड़ रुपया तीन महीने के भीतर 15 फीसदी ब्याज के साथ लौटाने का निर्देश दिया था। आरोप है कि कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन करके अपने निवेशकों से यह रकम जुटाई थी।

लेकिन बाद में प्रधान न्यायाधीश कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पांच दिसंबर को सहारा समूह को अपने करीब तीन करोड़ निवेशकों का धन लौटाने के लिए उसे नौ सप्ताह का वक्त दे दिया था। कंपनी को तत्काल 5120 करोड़ रुपए लौटाने थे। उस समय भी सेबी और निवेशकों के एक संगठन ने प्रधान न्यायाधीश से इस मामले को न्यायमूर्ति राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के पास भेजने का अनुरोध किया था लेकिन न्यायालय ने उनका यह आग्रह ठुकराते हुये निवेशकों के हितों ध्यान रखते हुये यह आदेश दिया था।

सहारा इंडिया रियल इस्टेट कारेशन ने 31 मार्च, 2008 तक 19,400.87 करोड़ और सहारा हाउसिंग इंडिया कार्पोरेशन ने 6380.50 करोड़ रुपए निवेशकों से जुटाये थे। लेकिन समय से पहले भुगतान के बाद 31 अगस्त को कुल शेष रकम 24029.73 करोड़ ही थी। सहारा समूह को इस समय करीब 38 हजार करोड़ रुपए का भुगतान करना पड़ सकता है जिसमें 24029.73 करोड़ मूलधन और करीब 14 हजार करोड़ रुपए ब्याज की राशि हो सकती है। सहारा समूह ने निवेशकों को धन नहीं लौटाने के अपना दृष्टिकोण सही बताते हुये कहा था कि न्यायालय के फैसले से पहले ही निवेशकों की अधिकांश रकम उन्हें लौटाई जा चुकी है। (एजेंसी)

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