‘शरिया क़ानून के पैरोकार’ हैं पाकिस्तानी युवा

सैड सांग

तेज महंगाई ज्यादा समस्या है, आतंकवाद के मुकाबले

इस्लामाबाद: ब्रिटिश काउंसिल के एक सर्वे में कहा गया है कि पाकिस्तानी युवा शरिया क़ानून को लोकतंत्र से ऊपर तरजीह देते हैं। काउंसिल ने 18-29 वर्ष की उम्र वाले पाँच हज़ार युवाओं में यह सर्वे किया। सर्वे के मुताबिक़ इनमें से आधे से ज़्यादा युवाओं ने कहा कि लोकतंत्र उनके और उनके देश के लिए अच्छा नहीं रहा है।

94 प्रतिशत युवाओं का ये भी मानना था कि पाकिस्तान ग़लत दिशा में जा रहा है. वर्ष 2007 में इसी तरह के एक सर्वे में 50 प्रतिशत लोगों ने ये बात कही थी। मई में पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव में 30 साल से कम उम्र के इन युवाओं की अहम भूमिका होगी, जो पंजीकृत मतदाताओं की संख्या के क़रीब एक तिहाई हैं।

इस सर्वे में शरिया कानूनों को बेहतर माना गया है। सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक व्यवस्था के बारे में पूछे जाने पर ज़्यादातर युवाओं ने सैनिक क़ानून और शरिया क़ानून को लोकतंत्र से बेहतर माना। इस्लामाबाद से बीबीसी संवाददाता ओर्ला ग्वेरिन का कहना है कि इस सर्वे से एक ऐसी पीढ़ी की बात उभर कर सामने आई है, जो निराशावादी है और पाँच साल के नागरिक शासन से उसका मोहभंग हो चुका है।

सर्वे में शामिल ज़्यादातर युवाओं का भरोसा सेना पर ज़्यादा था। सरकार के पक्ष में बोलने वाले सिर्फ़ 13 फीसदी युवा थे। एक तिहाई युवकों का ये भी कहना था कि हिंसा से उन पर सीधा असर पड़ा है या वे किसी न किसी हिंसक घटना के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं।

लेकिन इन युवकों के लिए तेज बढ़ती क़ीमतें ज़्यादा चिंता की बात है न कि आतंकवाद। सर्वे में शामिल युवाओं में से 50 प्रतिशत से भी कम ने ये कहा कि वे ज़रूर मतदान करेंगे।

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