माफिया से छुटकारा हो गया, मगर अपराध तो सपा की रग-रग में है

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: शाहजहांपुर में मंत्री राममूर्ति वर्मा पर स्‍थानीय पत्रकार जागेंद्र सिंह की जघन्‍य हत्‍या का आरोप है, मगर वर्मा पर कुछ नहीं बिगड़ा : हर जिले में सपाइयों का तांडव होता रहा, अखिलेश खामोश रहे : अखिलेश यूपी को अपराध-मुक्‍त करने का दावा कर रहे, तो यह उनकी महानता ही तो है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक दौर हुआ करता था, जब मुख्‍तार अंसारी और उसके दोनों भाइयों ऐण्‍ड कम्‍पनी से जुड़े लोगों के प्रति आम आदमी में भय का भाव हुआ करता था। इस भय-ग्रस्‍तता के केंद्र में था मुख्‍तार अंसारी नामक एक माफिया, जिसके जीवन का अधिकांश कीमती वक्‍त जेल में ही बीता। बावजूद इसके कि जेल-बंधन में रहने के बावजूद मुख्‍तार के पास किसी भी चीज की कोई दिक्‍कत तनिक भर नहीं हुई। ठीक यही नाम है अतीक अहमद का। खुलेआम अपराध करने और गुण्‍डागर्दी तथा आ‍तंक का नाम बने रहे हैं अतीक अहमद।

यही वजह थी कि मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव को समाज में अपराध-माफिया को राजनीति का स्‍वाद चखने में आसानी से हुई। अपराध और माफिया की खुशबू और उसका स्‍वादिष्‍ट भोजन इन दोनों यादव-भाइयों को इतना पसंद आया, कि वे हमेशा-हमेशा के लिए इस स्‍वाद के मुरीद हो गये। यही वह वजह थी कि इन दोनों यादव-बंधुओं ने समाजवादी पार्टी के दस्‍तरख्‍वान पर ऐसे तश्‍तरियां शामिल करने का अभियान छेड़ दिया।

लेकिन समाजवादी पार्टी का टीपू सुल्‍तान बन चुके अखिलेश की तलवार ने यादव-बंधुओं की इस पसंदीदा ऐसी स्‍वादिष्‍ट तश्‍तरियों का गला तराश दिया। फैसला किया कि पार्टी में अब या तो शिवपाल सिंह यादव रहेंगे तो सिर्फ अखिलेश की शर्तों पर। इन शर्तों में सपा का दरवाजा हमेशा-हमेशा के लिए मुख्‍तार अंसारी और उनके भाइयों तथा अतीक अहमद जैसे माफिया ताकतों को बाहर ही कर दिया जाएगा। इस फैसले से अंसारी-बंधुओं ने कोई खुला विरोध तो नहीं किया, लेकिन अतीक अहमद ने खुद को मुलायम सिंह यादव के खेमे में खड़े होकर अखिलेश को ठेंगा दिखाने की हिमाकत कर दिया।

नतीजा यह कि अंसारी-बंधु और अतीक अहमद जैसी ताकतें अब हमेशा-हमेशा के लिए समाजवादी पार्टी से कोसों दूर निकाल बाहर की जा चुकी हैं।

लेकिन अगर एक सच बात तो यह है कि सपा से यूपी की नामचीन माफिया ताकतों से सपा ने पिण्‍ड तो छुड़ा लिया, मगर दूसरी सच बात यह भी है कि समाजवादी पार्टी में अपराधियों का बोलबाला ही है। और तीसरे सच की बात अगर कही जाए, तो सपा की रग-रग में अपराध ने अपनी जड़ें जमा रखी थीं, जिसे हटा पाना अखिलेश यादव के वश की हर्गिज बात नहीं।

अब मिस्‍टर-क्‍लीन का चेहरा लेकर सपा की सायकिल लेकर फर्राटा भरने वाले अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी के सीने पर ऐसे-ऐसे अपराधियो के नाम बाकायदा किसी महत्‍वपूर्ण तमगे की तरह टंके हुए हैं। अखिलेश-टीम में अब शाहजहांपुर के श्रीराममूर्ति वर्मा हैं, जिनपर वहां के पत्रकार जागेंद्र सिंह की हत्‍या का षडयंत्र करने का साफ नाम दर्ज है। इतना ही नहीं, वर्मा ने इस अपनी इस साजिश में तब के शहर कोतवाल श्रीप्रकाश को शामिल किया, इस के बारे मे जागेंद्र सिंह ने अपने मृत्‍यु-पूर्व बयान में कह दिया था। लेकिन इतना प्रमाण होने के बावजूद अखिलेश सरकार की हिम्‍मत नहीं पड़ी कि वह अपने इस हत्‍यारोपी मंत्री पर कोई कार्रवाई कर पाये।

अखिलेश की टीम में शामिल हैं गोंडा का पंडित सिंह, जिसने सीएमओ का अपहृत कर लिया। कई पर जानलेवा हमले किये, कई पर जान से मारने की धमकियां दीं। वगैरह-वगैरह। अखिलेश ने शुरूआती आरोपों में पंडित को मंत्रिमंडल से निकाल बाहर किया, लेकिन उसके कुछ ही देर बाद उसे वापसी भी कर डाली। अखिलेश का एक मंत्री कुशीनगर के अपर मुख्‍य अधिकारी को मां-बहन-बेटी की इज्‍जत लूटने, उनका रेप करने की धमकी देता है, मगर अखिलेश अपने काम बंद किये रखते हैं। सुल्‍तानपुर में दिल्‍ली के एक युवा व्‍यवसायी को कुछ लुटेरे लूट लेते हैं, जब पुलिस दबिश डाल कर उनमें से पांच लुटेंरों को दबोच लेती है, तो पड़ोसी जिले अम्‍बेडकर नगर के मंत्री शंखलाल मांझी अपने सैकड़ों समर्थकों को भड़का कर बवाल करते हैं। इस भीड़ की हिम्‍मत इतनी भड़क जाती है कि वह लोग डीएम की कार को पुल से नीचे गोमती नदी में फेंक देते हैं।

पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता अपनी आतंक की नित नई-नई कहानियां दर्ज कर रहे हैं, लेकिन अखिलेश यादव अपने कान बंद किये हैं। इसके बावजूद अगर अखिलेश यादव खुद को अपराध मुक्‍त देने वाले शख्‍स की हैसियत देने का वायदा कर रहे हैं, तो यह उनकी महानता ही तो है।

है या नहीं?

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