माओ-नक्‍सली क्षेत्र में नर्तकियां या अभद्रता का स्‍थान नहीं

सैड सांग

आत्‍मदाह पर आमादा हैं देश की बेटियां

अपनी इज्जत पर हाथ डालना तो कोई नहीं चाहता। किसी भी कीमत पर भी नहीं। तो ऐसी हालत में अब बलात्कारी-मनोविकार से ग्रसित लोगों को तय करना ही पड़ेगा कि आखिरकार उन्हें क्या चाहिए। इस्लामी देशों जैसी दुर्दांत धार्मिक ( रिलीजियस ) पुलिस या झारखंड जैसे इलाकों में गहरे तक अपनी जडें अपना जमा चुके नक्सलियों की सामुदायिक ( कम्युनिटी ) पुलिस-व्यवस्था। ऐसी व्यवस्था जहां धार्मिक पुलिस की बल पर महिलाओं को लगभग जंजीरों से घेर कर पूरी की पूरी आधी आबादी को निकृष्ट‍-स्तर के दोयम दर्जे तक समेट देना, या फिर नर-मादा को समान तौर पर आजादी देते हुए नक्स‍लयों की सामुदायिक पुलिसिंग लागू करना जहां तो छेड़खानी तो दूर, शादी-मंगल अवसरों तक में पेशेवर नर्तकियों को नाच के लिए बुलाना तक की हिम्मत कोई भी नहीं कर पा सकता।

कुछ ऐसा ही सवाल उठा रहे हैं क्लिनिकल सायकोलॉजिस्‍ट डॉ पंकज सिंह। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में एप्लाइड सायकोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ पंकज सिंह समाज और उसकी इकाई यानी मनुष्य की मानसिकता का गहरे से अध्ययन कर रहे हैं। खासतौर पर पिछले कुछ दिनों में महिलाओं के प्रति भड़का उजड्ड-नुमा व्यवहार। महिलाओं पर ऐसे हमले क्रूरता की पराकाष्ठा तक पहुंच चुके हैं। सहन की सारी सीमाएं टूटती जा रही हैं। केवल महिलाएं ही नहीं, पूरा समाज और राजनीति का प्रकर्ष यानी संसद तक इस बारे में अपनी शर्म जाहिर कर चुकी है। चाहे रांची रहा हो, या बठिंडा, दिल्ली या फिर नोएडा अथवा ठाणे। हर जगह एक जैसी दर्दनाक ही कहानी आंसुओं की तरह बह रही है। चाहे वह अधेड़ महिलाएं हों अथवा 8 कक्षा में पढ़ने वाली मासूम बच्चियां। चाहे वह रांची की युवतियां हो या फिर महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, यूपी अथवा दिल्ली की युवतियां। यह सारी की सारी लड़कियां और चाहे कुछ और न समझ पायी हों, लेकिन मौत की अर्जी लिखना और उसे अपनी जिन्दगी में शामिल करना वे खूब समझ चुकी हैं। दिल्ली  में गैंग-रेप और हत्या की घटना ने दुनिया को हिला डाला था, लेकिन बिहार उससे बेखबर है। यूपी के मुजफ्फरनगर से सटे शामली के कांधली कस्बे  में मंगलवार को 4 सगी बहनों के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया। यह चारों युवतियां एक कालेज में शिक्षक के तौर पर काम करती हैं। महिलाओं 30 मार्च को बिहार के मुजफ्फरपुर में नीतिश कुमार का सुशासन तब औंधे मुंह धड़ाम हो गया, जब एक मजदूर महिला को कुछ गुंडों ने दबोचा और सामूहिक बलात्कार किया। इतना ही नहीं, इन क्रूर दरिंदों ने इस महिला के गुप्तांगों में पत्थर और मिट्टी तक भर डाली। दर्द से तड़प कर महिला ने चंद घंटों में दम तोड़ दिया। रांची के विख्यात वीमेंस कालेज की एक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्‍कार हुआ, जिसकी परिणति उसकी मौत तक पहुंची। नवाडीह में एक हाईस्कूल की टीचर ने अपने यौन-उत्पीड़न से आजिज आकर अपनी बेटी के साथ भस्म हो गयी और उधर कुरूक्षेत्र में एक छात्रा ने छेड़खानी से तंग होकर आत्मदाह कर लिया। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार से सटे यूपी के मिर्जापुर की एक मां तो इतना प्रताडि़त हुई कि अपने तीन बच्चों  के साथ मौत के गले में लिपटना ही उसे उचित लगा।

हरियाणा में तो मासूम बच्चियां मौत का मतलब खूब समझ चुकी हैं। यहां 8 कक्षा की एक बच्ची पर भद्दी बोली और अश्लील फब्तियां नाक के ऊपर निकलने लगीं तो उसने खुद को आग के हवाले कर दिया और धूधूकर भस्म हो गयी। लेकिन हरियाणा नमूना नहीं है। यूपी के मुरादाबाद में शोहदों की हरकतों को न घरवाले रोक पाये और न ही स्कूल या मुहल्लेवाले, तो यहां की 13 साल की बच्ची ने एक्ट्रीम स्टेप ले लिया। आत्मदाह का। इस चिता की तपन से सरकार और प्रशासन तो सहम गया लेकिन समझदार अफसरों और सरकारी कारिंदों ने जल्दी ही दीगर मुद्दों को उठा कर यह नृशंस पर राख डाल दी। बठिंडा, उधमपुर, कांगड़ा, फरीदकोट, आजमगढ़, पश्चिम दिल्ली, नोएडा, मुजफ्फरपुर, सहरसा, ठाणे और गुना में तो देश की बेटियां अब स्कूल में पढ़ने के बजाय खुद को सुरक्षित करने के लिए अब आत्मदाह का ककहरा सीखने पर आमादा होती जा रही हैं। बिहार की राजधानी पटना के बाहरी इलाके में कई महिलाओं के साथ बलात्का़र हुए हैं। लेकिन दिल्ली गैंग-रेप और हत्या वाले ज्योति-कांड के कुछ ही महीनों बाद एक बार-डांसर के साथ हुआ सामूहिक बलात्कार यह तो साबित ही करता है कि दिल्ली अब दिलवालों की नहीं, बल्कि बेशर्मों की दिल्ली- होती जा रही है। एक ही दिन में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बार डांसर वाले कांड के ही साथ नोएडा में 16 साल की एक मासूम बच्ची को दरिंदों ने चबा डाला।

कुल मिलाकर एक बात तो उभरती ही जा रही है कि अब देश की बेटियां आत्मदाह पर आमादा होती जा रही हैं। महिलाओं और दलितों पर अत्याचार के विभिन्न पहलुओं पर डॉक्टर पंकज सिंह की अकादमिक रूचि हमेशा रही है। दिल्ली और उसके बाद उमड़े-भड़के हादसों के बाद उनके भीतर समाज के प्रति एक अजीब-सा आक्रोश-पीड़ा का भाव रिसने लगा जो अब लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अपने कुछ पुराने अनुभवों को याद करते हुए डॉ सिंह बताते हैं कि उनको दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र जीवन में कम्युनिज्म में दिलचस्पी हुई तो मार्क्स, लेनिन, माओ, ब्रेख्त आदि को थोड़ा बहुत पढ़ा। उसी दौरान नक्सलवाद पर कुछ मनोवैज्ञानिक शोध के सिलसिले में झारखण्ड के कुछ इलाकों की ख़ाक छानते वक्त उन्होंने वहां माओवादी बहुल क्षेत्रों में एक वैकल्पिक समाज को देखा और उसके अच्छे-बुरे पक्ष को एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से टटोला। डॉक्‍टर पंकज वहां हुई एक घटना के बताते हैं जब पीरटांड के इलाके में एक मुस्लिम युवक ने एक हरिजन अवयस्क लड़की को फंसा कर शारीरिक सम्बन्ध बनाये, फिर उसे दुत्कार दिया। लड़की गर्भवती थी मगर युवक ने धमकी देते हुए उसे नकार दिया। पिता के साथ लड़की नक्सली-थाने में पहुंची तो फ़ौरन उसे पकड़ा गया और फिर जनअदालत में पेश किया गया। वहां युवक को फ़ौरन लड़की से शादी का आदेश दिया और चेतावनी भी दी की यदि लड़की को कोई तकलीफ हुई तो उसे घुटनों से 6 इंच छोटा कर दिया जायेगा।

डॉक्टर सिंह बताते हैं कि ऐसी और भी घटनाएँ सुनी गयीं जहाँ ऐसी हरकतों पर अजीब सजाएं दी गयीं। मसलन हाथ तोड़ देना, सरेआम बेईज्ज़त कर इलाके से तड़ीपार कर देना, आदि (सब बताना शायद उचित नहीं)। डॉ पंकज न तो कम्युनिस्ट हैं और न ही हिंसा को किसी भी तौर पर जस्टिफाई करता हैं, लेकिन देश की सत्ता को यह तो देखना ही पड़ेगा कि आखिर क्यों ऐसा होता है कि बिहार-झारखंड के जिन इलाकों में शादी-ब्याह में रात भर वेश्याएं नचायी जाती थीं, वहां अब स्टेज पर भी किसी महिला का नृत्य कराने की हिम्मत किसी में नहीं।

मेरी बिटिया डॉट कॉम का कहना है कि पता नहीं, पर कुछ तो है ऐसी क्रूर जमात में जो वाकई अच्छा लगता है। सवाल यह है कि जब क्रूर जमात ऐसी शुचिता का माहौल बना सकती है तो आखिर हमारी शासन-व्यवस्था क्यों  नहीं।

 

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