पति भाग गया बिदेस, पत्नी बलात्कारियों के चंगुल में
: मुम्बई में पिटने से सम्मान पर हल्ला, लेकिन अपनी बेटियों पर ध्यान नहीं : अयोध्या के राम से ही जुड़ चुकी है बिहारी बालाओं की बदकिस्मती : बूढ़ी-मां के साथ भी कर दिया दुराचार, फिर मार भी डाला : आबरू बचाने की गुहार, मगर लगातार लुटती हैं बेटियां :
कुमार सौवीर
बिहार और खासकर दरभंगा के लोग अपनी बेटियों की शादी पश्चिमी इलाकों से नहीं करते हैं। उनकी पहली ही नहीं, शायद पहली सौंवी-हजारवीं च्वाइस यही होती है कि दामाद हो तो पूरब का रहने वाला ही हो। जनश्रुतियों के मुताबिक तर्क यह कि पूरब का आदमी हमेशा ईमानदार रहेगा और हमेशा पूरब के प्रति समर्पित रहेगा। खाना-पीना, जर-जमीन न भी हो, तो भी कोई बात नहीं। कम से कम अपनी जड़ों से तो जुड़ा रहेगा। इन इलाकों के लोगों में फैली इस मान्यता का आधार भी बड़ा अकाट्य-धार्मिक होता है।
उनकी आस्थाओं पर बात होते समय आप निरूत्तर हो जाएंगे। आप उनसे सवाल कीजिए तो तड़ से जवाब दे देंगे कि:- एक बिटिया अयोध्या के राजा को सौंपी थी, उसकी तो छीछालेदर ही कर डाला इन लोगों ने। पहले निरर्थक आरोप लगाकर हमारी बिटिया को जंगल में भेज दिया और फिर उससे भी मन नहीं भरा तो अग्नि-परीक्षा के नाम पर उसे जलती चिता पर भस्मीभूत करा दिया। जी हां। उनका इशारा ही नहीं, साफ खुलासा अयोध्या के राजा राम से ब्याही गयी मैथिली-कन्या सीता पर होता है।
जब आप जन-श्रुतियों पर बात कर रहे हों तो उस समय केवल वैज्ञानिक धरातल पर बने सटीक तर्क ही पर्याप्त नहीं होते हैं। तर्क की जमीन पर जन-आक्रोश का ज्वार सारे तर्क-आधारों को अपने तर्क पर धोता, बहाता और साफ करता रहता है। भले ही आप बाद में उसके औचित्य-अनौचित्य पर सवाल उठाते घूमते रहें, लेकिन उसका तात्कालिक आधार कोई नहीं बन पाता है। दरअसल, जन-श्रुतियां बरसों-सदियों के अनुभवों की कसौटी पर कसे जाती हैं। उनका स्रोत किसी रासायनिक प्रयोगशाला में नहीं होता, बल्कि जन-समुद्र के अनुभवों और उसकी भावनाओं की लहर के उतार-चढ़ाव पर ही तय होता है।
दरअसल, बेटियां और महिलाएं शब्द पूरब में महज कोई शख्स या इकाई मात्र नहीं है। दरअसल, पूरब वाले लोगों की लोकसंस्कृति हैं उनकी बेटियां और महिलाएं। और जाहिर है कि इस शर्त पर वे अपनी लोकसंस्कृति को बचाने के लिए प्राण न्यौछावर कर सकते हैं। आखिरकार भोजपुरी, मैथिल आदि संस्कृ्तियों में उनकी मां, बहन, पत्नी, बेटी पूरी तरह रच-बस चुकी हैं। लेकिन पिछले 24 घंटों के भीतर बिहार के तीन हिस्सों में हुई घटनाओं ने बिहार की लोकसंस्कृति को धराशायी भले न किया हो, लेकिन कम से कम इतना तो इशारा कर ही दिया है कि बिहार की अजीमुश्शान लोकसंस्कृति और परम्पराओं की आलीशान अट्टालिका की जड़ों में लोना लग गया है। लोना यानी क्षरण या खाज।
कहीं किसी छह-छह बच्चों की मां को छोड़कर उसका पति बिदेस भाग गया है और उसकी बेटियां अब बलात्कार और उसकी पीड़ा से आमना-सामना कर रही हैं। जूझ रही हैं। जय प्रकाश जैसी शख्सियत वाले छपरा यानी सारण में एक बुजुर्ग के साथ न केवल बलात्कार किया जा रहा है, बल्कि दुष्कर्म के बाद नृशंस अपराधियों ने उसकी हत्या कर डाली है। यह वृद्ध महिला का पति 15 साल पहले पंजाब में अपनी नई बीवी के साथ बिला चुका था। कहीं एक बुजुर्ग महिला अपनी बेटी की इज्जत बचाने के लिए सरपंच से लेकर कप्तान के घर की चौखट पर माथा रगड़ रही है, लेकिन किसी को उस पर तरस नहीं आ रहा है। उसका पति तो न जाने कब किसी और के साथ अपना घर बसाने के लिए चंडीगढ़ जा चुका है।
तो आइये। इस ताजे, नये और बदलाव का साक्षी बनते जा रहे बिहार की लोकसंस्कृति की बिखरी जा चुकी चिंदियों पर एक नजर डाली जाए। हो सकता है कि इसी तरह बिहार और उसकी लोकसंस्कृति की जड़ों को सम्भाला जा सके। लोगों के पत्थर बनते जा रहे दिलों से शायद चंद आंसू निकल सकें।
लेकिन चाहे कुछ भी हो, आखिरकार यह सवाल तो बचा ही रह जाएगा कि मुम्बई जैसे महानगरों में पिट जाने वाले बिहारी लोग आखिर अपनी लोकसंस्कृति का अभिन्न अंग रही महिलाओं की इज्जत-आबरू को क्यों भूल रहे हैं।
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