बंदरों ने सिखाया जीवन व सौंदर्य। हां, हिंसा भी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

युगांडा और नाइजीरिया में भी मिल चुका है बंदर-मानव

: मेरीना को शिकारी ने बचाया और वेश्या के हाथों बेचा : जन्म:तिथि का पता नहीं, लेकिन मां-पिता को खोज न पाने का गम : अब फिल्म बनाने वाली टोली के साथ कोलम्बिया जाएगी मेरीना :

( गतांक-2 से आगे ) बंदरों ने मेरीना को जंगल में जीवन और सौंदर्य के बारे में अच्छी तरह समझाया था। साथ ही साथ यही भी बता दिया था कि जंगल में केवल जीवन और सौंदर्य ही नहीं खिलता है, बल्कि यहां हिंसा और आतंक भी उससे ज्यादा होता है और उससे निपटने के लिए बचाव की रणनीतियां जरूरी होती हैं। केवल जंगल के दूसरे जानवरों के साथ ही नहीं, बल्कि अपनी बंदर जाति में भी खूंख्वार लोगों से भी। मेरीना को खूब याद है कि अचानक कैसे पहली बार उसने बंदर-घुसपैठियों को देखा। वे मारने पर आमादा था। चीखें इतनी कि डर के मारे मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। वे अपने पंजों, दांतों के साथ ही साथ पेड़ की शाखाओं को तोड़कर उन्हें लाठियों की तरह इस्तेमाल कर रहे थे। यह काफी देर तक चला और तब तक मैं एक झाड़ी में ही छिपी रही। जब वे घुसपैठिये बंदर वापस भाग गये तो मैं बाहर निकली। मेरे साथ के बंदरों के चेहरे समेत पूरे शरीर पर खून ही खून था।

बाद में मेरीना को एक शिकारी ने बचाया था, लेकिन बाद में उसे बेच दिया गया। पता चला कि अब वह वेश्यावृत्ति के लिए इंग्लैंड भेजी गयी है। फिर कई मोड़ आये उसके जीवन में, आखिरकार एक चर्च अरगनिस्ट से शादी हुई। आज मेरीना तीन पोतों की दादी है और मेरीना अब मध्यम वर्ग के एक उपनगर ब्रैडफोर्ड में अपने पति जॉन के साथ रहती हैं। मेरीना को बिलकुल भी पता नहीं है कि उसकी जन्मतिथि क्या है। लेकिन उसे गम इस बात पर है कि उसके मां-पिता से वह कभी नहीं मिल सके। वह उनकी खोज तक नहीं कर पाये। हालांकि बाद में मैं जंगल में फिर गयी और आखिरकार उस मोटे तने वाले पेड़ पर बनी उस खोह को खोज लिया जहां पर मैंने पांच साल बिताये थे।

बहरहाल, अब नेशनल ज्योग्राफिक की योजना है कि मेरीना की जिन्दगी में एक फिल्म बनायी जाए। खास बात यह है कि मेरीना के मामले के कोई भी विशेषज्ञ उसके बयानों का विश्लेषण करने के बाद उसमें धोखाधड़ी या कोई कल्पना वगैरह का कोई भी प्रमाण नहीं पा सका है। कुछ भी हो, इस फिल्म को तैयार करने के लिए अब इस चैनल के लोग मेरीना के साथ जल्दी ही कोलम्बिया की ओर रवाना होंगे।

विशेषज्ञों का कहना है कि 1991 में एक छह वर्षीय युगांडा लड़का जॉन सेबन्या ने तीन साल तक जंगलों में बंदरों के साथ बिताया था। ऐसी ही एक अन्य घटना नाइजीरिया में सन 1996 को हुई जब एक दो साल के बच्चे बेलो को चिंपांजी ने जंगल में पाला। ( समाप्‍त। फोटोज आभार: राडारआनलाइन व न्‍यूजर )

तीनों अंक में प्रकाशित इस स्टोरी को पूरी तरह पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- भेडि़या-मानव रामू से आगे की कहानी है कोलंबिया की मेरीना

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