बंदरों की बोली-भाषा और भाव-व्यवहार को खूब जानती है मेरीना
: केले और अंजीर के गुच्छे देकर आत्मीयता का प्रदर्शन करते रहे बंदर : खूंख्वार जानवरों से बचाने के लिए बंदरों ने मेरीना को जबरिया पेड़ पर खींचा : बंदरों की पूरी टोली मेरीना की हिचक दूर करने में जुटी थी :
( गतांक-1 से आगे ) मेरीना ने बताया कि अचानक एक झबरे भूरे बंदर ने उसे हल्का धक्का देकर लुढ़का दिया। लगा जैसे शायद उसकी रूचि उसमें नहीं थी। धक्का देने के बाद यह बंदर वहां से थोड़ा दूर हट गया। और इसके बाद बाकी बंदरों ने उसे मुआयना की चीज बना डाली। कोई उसे छू रहा था तो कोई उसे अपनी ओर खींच रहा था। शायद वे सब के सब बंदर मिल कर मेरीना का निरीक्षण करना चाहते थे। लेकिन किसी ने भी मुझे प्रताडि़त नहीं किया। मेरीना बताती हैं कि जिस तरह से वे सब एक-दूसरे के साथ उसे आनंद ले रहे थे, वह एक परिवार की तरह का ही माहौल था। जाहिर है कि सबने मेरीना को अपने परिवार की तरह ही महसूस किया। मेरीना बताती हैं कि वह भी बंदरों के साथ खुश महसूस किया और लगा कि वह भी धीरे-धीरे उन्हीं बंदरों में से एक की तरह ही बदल गयी।
मेरीना को याद ही नहीं है कि कैसे ही उसने उनकी बोली-भाषा सीखी। कैसे उनके भाव-व्यवहार को समझा और अपनाया और कैसे पेड़ों पर चढ़ने-छलांगें लगानी शुरू कर दी। बंदरों ने ही उसे अपना भोजन सीखना और खाना सिखाया और यह तक बताया कि बीमारी या संकट वगैरह में कैसे निपटाया जाए। उसे याद है कि एक दिन जब उसके पेट में बहुत तेज मरोड़ शुरू हुई थी, तो वह दर्द के चलते बुरी तरह रो रही थी। उस समय उसकी हालत को बंदरों ने फौरन समझ लिया था और फिर एक बंदर उसे लेकर एक तालाब में लेकर गया। बंदर ने बार-बार मेरीना को इशारे से बताया कि यह पानी पी लो। हालांकि यह पानी थोड़ा गंदा और बदबूदार था, लेकिन मेरीना उस पानी को पिया। बाद में एक बंदर ने उन्हें इमली दी और खाने का इशारा किया। कमाल की बात रही कि मैं बहुत जल्दी स्वस्थ हो गयी।
अब तक यह लोग मेरीना को एक-दूसरे के पास खेल रहे थे। उसमें कुछ छेड़खानी भी थी और आनंद भी शामिल था। कुछ भी हो, आनंद की अनुभूति ज्यादा ही हो रही थी। अचानक एक बंदर ने उसे केले के गुच्छे दे दिये। जाहिर है कि मेरी रूचि और आंनद और बढ़ गया। उस बंदर की चीख डरावनी नहीं थी, बल्कि मातृत्व से ओतप्रोत थी। उसने मुझे अंजीर जैसे भी कई फल भी दिये। दरअसल, शायद यह लोग मुझे खिला-पिला कर मुझे अपनी ओर खींचना चाहते थे।
मेरीना बताती हैं कि शाम होने के आसपास इन बंदरों की हरकतें ज्यादा उतावली हो गयीं। शायद वे जंगली जानवरों से मुझे बचाने की कवायद को लेकर चिंतित थे। वे शायद चाहते थे कि मुझे किसी तरह से भी हो, मगर किसी ऊंचे पेड़ तक पहुंचा दिया जाए। जबकि मैं उनकी इस कवायद को समझ नहीं पा रही थी। बल्कि उससे चिढ़ रही थी। लेकिन आखिरकार यह बंदर मुझे एक पेड़ तक पहुंचाने पर सफल हो ही गये। और तीन दिनों के भीतर तो मैं उनके सहयोग से खुद ही पेड़ पर चढ़ने लगी। ( जारी )
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