सोनिया और जफर समेत सभी को फांसी का रास्ता साफ

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

 

भुल्लर को बिट्टा कांड में हर कीमत पर मिलेगा फांसी का फंदा

नई दिल्ली: चाहे हरियाणा की उस सोनिया को फांसी पर लटकाने का मामला हो, या फिर अपने पांच बेटियों समेत पत्नी वगैरह की हत्या में फांसी की सजा पाये जफर अली का मामला हो, इस बड़ी सजा पाये लोगों को माफ करने का मामला अब ज्यादा तक नहीं लटकाया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने आज साफ तौर पर कह दिया है कि राष्ट्रपति द्वारा दया-याचिकाओं में विलम्‍ब करने के आधार पर ऐसे लोगों को फांसी को टाला या क्षमा नहीं किया जा सकेगा। कोर्ट ने देविंदर पाल सिंह भुल्लर की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें फांसी की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने की मांग की गई थी। भुल्लर को यूथ कांग्रेस प्रेजिडेंट एम. एस. बिट्टा पर जानलेवा हमले के मामले में फांसी की सजा मिली हुई है, जिसमें उनके 9 सुरक्षाकर्मी मारे गये थे और बिट्टा हमेशा-हमेशा के लिए पैरों से विकलांग हो गये थे। उधर भुल्लर को फांसी को अंतिम तौर पर देने के कोर्ट के फैसले के बाद एमएस बिट्टा ने खुले तौर पर आरोप लगाया कि भुल्लर को फांसी की सजा न दिलाने के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल समेत कई बड़े कांग्रेसी नेता जुटे हुए थे।

गौरतलब है कि भुल्लर ने राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका 11 सालों तक पेंडिंग में रखने को चुनौती दी थी। उसने कहा था कि वह इतने सालों तक मौत का इंतजार करते-करते मानसिक संतुलन खो बैठा था। इस फैसले के बाद 17 और लोगों की फांसी देने का रास्ता साफ हो गया है। भुल्लर पर सुरक्षित फैसले की वजह से ही 17 अन्य लोगों की फांसी पर रोक लगी थी।

आपको बताते चलें कि पिछले साल अप्रैल में जस्टिस जी.एस. सिंघवी और एस. जे. मुखोपाध्याय की बेंच ने 3 याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इसमें एक याचिका खुद भुल्लर की थी दूसरी भुल्लर की पत्नी नवनित कौर और तीसरी याचिका एक एनजीओ ‘जस्टिस ऑन ट्रायल ट्रस्ट’ की थी। इस सुनवाई में कोर्ट ने सीनियर वकील के.टी.एस. तुलसी जो कि भुल्लर और उसकी पत्नी की तरफ से थे और राम जेठमलानी के साथ टी. आर. अंध्यारुजिना की दलीलें सुनने के बाद 19 अप्रैल, 2012 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कई मुजरिमों पर असर पड़ पड़ेगा। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के जुर्म में फांसी की सजा पाने वाले मुजरिम भी शामिल हैं। ये सभी चाहते हैं कि दया याचिकाओं के निपटारे में देरी के आधार पर उनकी सजा को उम्रकैद में तब्दील किया जाए। एक एनजीओ ने सुझाव दिया था कि दया याचिका के निपटारे के लिए टाइम फिक्स किया जाना चाहिए। इस पर सरकार जवाब दाखिल कर चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च 2002 को भुल्लर की अपील खारिज करते हुए उसकी मौत की सजा बरकरार रखी थी। इसके बाद उसकी रिव्यू पिटीशन और फिर 12 मार्च, 2003 को उसकी क्यूरिटिव पिटीशन खारिज की गई थी। इसके बाद उसने राष्ट्रपति के सामने 14 जनवरी, 2003 को दया याचिका दायर की थी। राष्ट्रपति ने 8 साल बाद 25 मई, 2011 को उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी।

देविंदर पाल सिंह भुल्लर को यूथ कांग्रेस प्रेजिडेंट एम. एस. बिट्टा पर बम अटैक करने में अहम भूमिका के लिए मौत की सजा दी गई थी। यह हमला भुल्लर ने 1993 में किया था। इसमें 9 पुलिस वाले मारे गए थे और 25 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। इन 25 घायलों में भुल्लर भी था। भुल्लर को मौत की सजा मिलने के बाद राष्ट्रपति ने दया याचिका 11 सालों तक पेंडिंग में रखी। भुल्लर ने सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर याचिका दायर की थी वह 20 सालों तक कैद रहा जो कि आजीवन कारावास की तरह है। साथ ही उसने कोर्ट से कहा था कि दया याचिका पर 11 सालों से इंतजार करते-करते वह पूरी तरह से मानसिक संतुलन खो बैठा है।

भुल्लर के काउंसलर ने कोर्ट में दलील रखी थी कि यह कितना अमानवीय है कि कोई कैदी 11 सालों तक मौत का इंतजार करता रहे। वह हर वक्त खौफ में जिंदगी गुजराता है कि न जाने किस पल उसे फांसी पर लटका दिया जाए। ऐसे में क्या किसी कैदी का मानसिक संतुलन ठीक रहेगा? भुल्लर की दलील है कि लंबे समय तक काल कोठरी में मौत की सजा इंतजार करना क्रूरता है और यह मूल अधिकार का उल्लंघन है।

शीला दीक्षित और कपिल सिब्‍बल जैसे दिग्‍गज कांग्रेसियों की साजिश न होती तो भुल्‍लर को फांसी में इतनी देर न होती

 

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