दहशत खाते अफसरों की इतनी मजाल ! वरना—

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

कभी गुणगान करते थे, अब साम्प्रदायिक बताते हैं पीस पार्टी को

: अंधेर है जलदस्यु ! लेकिन मैं तुमसे प्यार करती हूं (3) : सीधे प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप से पहली बार हुई क्षेत्र की सघन वीडियोग्राफी : सवाल यह है कि फिर किसने की थी सैयद मोदी की हत्या : कपड़ों की तरह पार्टियां बदलने का शौक फरमाते हैं अखिलेश सिंह :

रायबरेली : ( गतांक से आगे- अंक-3 ) तो अब बात हो जाए अखिलेश सिंह की राजनीति पर। कांग्रेस में धुन्नी के चलते अखिलेश की पकड़ थी ही। 93 में टिकट मिला तो अखिलेश दो बार विधायक बने। उनके एक करीबी ने बताया कि अखिलेश सिंह का व्यवहार सौम्य और भाव हितैषी का होता है। अपनों के सुख-दुख में साथ। पत्रकारों के पसंदीदा शख्स हैं वे। जाहिर है कि मदद में आगे और बढ़-चढ़ कर भी। कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं कि अखिलेश ने अपराधों को राजनीति की आड़ में चलाने के लिए बाद कई पार्टियां बदलीं। लेकिन अपराध नहीं छोड़ा। एक बार तो सीधे पुलिस पर ही फायरिंग कर दी और फरार हो गये। नतीजे में अखिलेश का गोमती नगर वाला मकान पुलिस ने कुर्क कर लिया। स्थानीय एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह को अखिलेश से खतरा है इसलिए उन्हें जेड सुरक्षा मिली है। लेकिन इसके पहले कांग्रेस के 7 एमएलए के साथ एक नयी पार्टी बना ली थी। नाम रखा कि अखिल भारतीय कांग्रेस। बाद में इस पार्टी के गठन के बाद सातों विधायक बसपा में शामिल हो गये थे। फिर राजनीतिक फिजां सूंघते ही उन्होंने राज्यपाल को पत्र भेज कर मायावती सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और समाजवादी पार्टी के बगलगीर बन गये।

लेकिन इसके पहले प्रियंका गांधी ने अखिलेश के खिलाफ प्रचार किया और चुनाव आयोग से शिकायत पर पहली बार एकसाथ 11 पर्यवेक्षक को तैनात कर हर ब्लाक पर भेजा। बीएसएफ की छह अतिरिक्त कम्पनी तैनात की गयी और पहली बार सघन वीडियोग्राफी करायी गयी। लेकिन गांधी परिवार के गढ़, यानी रायबरेली में कांग्रेस की पुंगी बज गयी। हर बार अखिलेशसिंह जीतते रहे। सचिवालय के एक रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारी अखिलेश की जीत, प्रशासन-प्रणाली की पराजय थी। वे बताते हैं कि जल-दस्यु की नायिका की ही तरह अखिलेश सिंह को प्यार करते हैं। वैसे अखिलेश जनता की नब्ज को पहचानते हैं, चाहे कैसे भी। लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के एक पूर्व अध्यक्ष और अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तो अखिलेश सिंह की जीत के जज्बे को सम्मान के साथ सलाम करते हैं। उनका कहना है कि मोदी की हत्या अखिलेश नहीं, बल्कि गामा और गजेंद्र सिंह नामक दुर्दांत अपराधियों ने की थी।

बहरहाल, अखिलेश बाद में विधायक बने। महत्वाकांक्षा ने इस बार पीस पार्टी का महासचिव बनाकर विधायक बनाया, लेकिन हताशा से अब वे फिर समाजवादी पार्टी से जुड़ने की कोशिश में हैं। यह दीगर बात है कि पीस पार्टी ने उनका बेहिसाब साथ दिया है, लेकिन बदले हालातों में अखिलेशसिंह की टोन बदल चुकी है। अब उनका कहना है कि पीस पार्टी वाकई साम्प्रदायिक है। कुछ भी हो, सवाल तो बच ही रहा है कि अखिलेश के लिए साम्प्रदायिकता जरूरी है या जातीयता। शायद इसका फैसला वे मनमाफिक वक्त पर करते हैं। मसलन कभी अयूब का गुणगान तो मुलायम सिंह यादव का। कभी जमीन का बवाल तो कभी पाकिस्तानी हिन्दुओं के हितों पर आंसू। पुलिस पर दबदबा बनाने के लिए पूर्व डीजीपी यशपाल सिंह को महामंत्री और प्रवक्ता बना दिया गया। पीस पार्टी को बाय-बाय किया तो अब समाजवादी पार्टी की ओर कदम बढ़ा दिया। लेकिन लगता है कि अखिलेश का यह दांव पूरी तरह उल्‍टा हो गया है। वजह यह कि रायबरेली में उनके विरोधियों की तादात खासी ज्‍यादा है और वे बहुत ताकतवर होने के साथ ही साथ समाजवादी पार्टी में पुराने और खास सिपहसालार हैं। यानी, अखिलेश की हांडी फिलहाल इस सपा में नहीं चढ़ पायेगी।

तो अब अखिलेशसिंह को ऐतराज है कि किसी ने फेसबुक एकाउंट पर अश्लील और आपत्तिजनक टिप्पणी और फोटो लोड कर दिया है। यानी उनके साथ हंसी-ठिठोली का माहौल बनता जा रहा है। और अगर यह चलता रहा तो मतलब यह होगा कि अखिलेश सिंह के साथ पुलिस के लफड़े खत्‍म होने के बजाय लगातार बढ़ते ही रहेंगे। जो, उनकी बढ़ती उम्र में गठिया-जैसा दर्द पैदा कर सकते हैं। यह तब और भी गौरतलब है, जैसाकि अखिलेश सिंह के बारे में लोगों का कहना है, कि उन्होंने कभी भी अपने करीबों-वफादारों को बहुत ज्यादा करीब नहीं आने दिया। जो कुछ भी आया, कुछ ही दिन बाद चलता कर दिया गया। कारण रहा कि मुखबिरी की आशंका। अखिलेश सिंह की खासियत यह बतायी जाती है कि वह हर शख्स की मदद में बढ़कर आते हैं। आगजनी हो, राहत या कुछ और। जो भी इमदाद होगी, फौरन। समस्याओं पर वे सीधे अफसरों को तलब करते हैं। जाहिर है कि डर कर ही। वरना किसी की इतनी मजाल है कि —-। ( समाप्‍त )

यह रिपोर्ट तीन अंकों में प्रकाशित की गयी है। अगर आप इन तीनों एपीसोड को देखना-पढ़ना चाहें तो कृपया क्लिक करें:- जलदस्यु ! मैं तुम्हें  प्या‍र करती हूं

यह लेखक के निजी विचार हैं। इस रिपोर्ट के किसी तथ्‍य से संपादक का सहमत होना आवश्‍यक नहीं।

लेखक से kumarsauvir@gmail.com अथवा kumarsauvir@yahoo.com पर सम्‍पर्क किया जा सकता है।

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