जैसलमेर की झील को है ‘बदनाम’ का सम्‍मान

मेरा कोना

समाज को चुनौती और राजा को मात दे दी एक वेश्या ने!

गगन गुर्जर

जैसलमेर : पश्चिमी राजस्थान में सोने की सी चमक लिए स्वर्ण नगरी जैसलमेर देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। अपनी सोने जैसी आभा के कारण लोगों को अपनी ओर खींचने वाली इस नगरी में वैसे तो कई मनोरम स्थान देखने लायक हैं, लेकिन एक स्थान ऐसा भी है जिसके नाम के आगे ‘बदनाम’ लगा हुआ है। वैसे वास्तव में यह जगह अपने-आप में खासा ऐतिहासिक महत्त्व रखती है। जहां राजस्थान के कई ऐतिहासिक स्थान विभिन्न राजघरानों के कारण बेहद प्रसिद्ध हुए हैं, वहीं जैसलमेर की यह झील यहां का एकमात्र ऐसा स्थान है जो एक वेश्या के कारण प्रसिद्ध हुई है।

अपनी खूबसूरती और भव्यता के लिए जाना जाने वाला यह स्थान है स्वर्ण नगरी का एक तालाब, जिसे आज भी ‘बदनाम झील’ के नाम से जाना जाता है। इस तालाब का वास्तविक नाम गढ़ीसर तालाब है। आखिर क्यों इसे बदनाम झील कहा जाता है, इसके पीछे एक ऐतिहासिक कहानी है।  यह तालाब हमेशा से यहां के लोगों के लिए जल आपूर्ति का प्रमुख साधन रहा है। इस तालाब के पत्थरों पर की गई बेजोड़ नक्काशी स्थापत्य कला की दास्तान खुद कहती नजर आती है। अपने विशाल प्रवेश द्वार के कारण यह तालाब ‘बदनाम झील’ बन गया। ऐसा नहीं है कि प्रवेश द्वार की खूबसूरती लोगों को लुभाती नहीं है, लेकिन इस प्रवेश द्वार का निर्माण उस समय की एक वेश्या ने करवाया था। यही कारण है कि यह तालाब बदनामी के गर्त में चला गया और आज तक लोग इसे ‘बदनाम झील’ के नाम से जानते आ रहे हैं।

सन् 1909 में निर्मित कराए गए इस प्रवेश द्वार को लोग ‘वेश्या के द्वार’ के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं कि स्वर्ण नगरी जैसलमेर में जिस समय महारावल (राजा) सैलन सिंह की सत्ता थी, उसी समय वहां तेलन नाम की एक वेश्या भी रहा करती थी। पूरे राज्य में उसकी खूबसूरती का कोई सानी नहीं था। तेलन जितनी रूपवती थी, उतनी धन-दौलत से संपन्न थी, लेकिन उसने अपने धन का दुरुपयोग न करके उसे हमेशा धार्मिक कार्यों और समाज की भलाई में लगाया। तेलन जब जैसलमेर का ऐतिहासिक गढ़ीसर तालाब का प्रवेश द्वार बनवा रही थी,  तब पूरे नगर में चर्चा होने लगी कि महारावल के होते हुए एक वेश्या प्रवेश द्वार क्यों बनवाये।

नगरवासी अपनी अर्जी लेकर महारावल के पास पहुंचे और अपना दर्द बयां किया। नगरवासियों से महारावल के समक्ष अपनी बात रखते हुए कहा कि गढ़ीसर तालाब पर एक वेश्या प्रवेश द्वार बनवा रही है। चूंकि पूरे नगर में जल आपूर्ति का प्रमुख साधन गढ़ीसर तालाब ही है और अब नगरवासी एक बदनाम औरत द्वारा बनवाये गए प्रवेश द्वार से जाकर पानी लेकर आयेंगे, जो सही नहीं है। महारावल ने नगरवासियों की समस्या को सुना और अपने मंत्री और सलाहकारों के साथ इस बात पर विचार-विमर्श करने के बाद आदेश जारी किया कि वेश्या द्वारा बनवाये जा रहे प्रवेश द्वार को तत्काल गिरा दिया जाए।

जब तेलन को इस बात की जानकारी मिली कि नगरवासियों से उसके खिलाफ महारावल से शिकायत की है और राजा ने उसके द्वारा बनवाए जा रहे प्रवेश द्वार को गिराने के आदेश जारी किये हैं, उस समय द्वार निर्माण का कार्य अंतिम चरण में था। अतः उसने प्रवेश द्वार पर भगवान विष्णु का एक मंदिर बनवा दिया। जब महारावल के सेवक द्वार गिराने वहां पहुंचे, तो द्वार के ऊपर भगवान विष्णु का मंदिर पाया। चूंकि भगवान विष्णु हिंदुओं के आराध्य देव हैं और मंदिर को गिराना हिंदुओं की आस्था का अपमान है, अतः सेवकों ने प्रवेश द्वार को हाथ भी नहीं लगाया और तेलन का निर्माण कार्य जैसलमेर के इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गया।

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