औरत…महज जिस्म नहीं…अहसास का नाम है…और अहसास का अहसास करने के लिए… खुबसूरत आँखें नहीं…ईमानदार दिल चाहिए…क्योंकि…आँखे तो आदि होती है…चेहरों को परखने की…नुमाईश देखने की…जबकि…औरत कोई नुमाईश नहीं…खुद में एक खुदा है…शायद इसीलिए…इंसान होकर भी…इंसान से कुछ जुदा है.