कोर्ट में केस-डायरी व फैसले पेश करें कौल
: सीबीआई में जारी उठा-पटक का स्पष्टीकरण देना निदेशक की जिम्मेदारी : शीर्ष जांच एजेंसी में तथ्यों की तूती चलेगी या सीनियरों की मनमर्जी : देश को अधिकार है कि सीबीआई की भीतरी उठा-पटक का कारण सार्वजनिक हो :
कुमार सौवीर
नई दिल्ली : आरूषि और हेमराज की नृशंस हत्याओं का ठीकरा नूपुर और राजेश तलवार के सिर पर फोड़कर सीबीआई ने अपनी पीठ तो ठोंक लिया है, लेकिन इस पूरे प्रकरण पर कई गंभीर सवाल उठ गये हैं। सबसे बड़ा सवाल तो जांच अधिकारी एजीएल कौल के बयान से उठा है कि नुपूर की गिरफ्तारी की इजाजत नहीं देने का फैसला सीबीआई के वरिष्ठ नीलाभ किशोर ने किया था। अदालत में कौल ने बयान दिया था कि जब नुपूर को गिरफ्तार करने के लिए कौल ने नीलाभ किशोर से इजाजत लेने की कोशिश की, तो नीलाभ ने साफ कह दिया कि इसकी जरूरत नहीं है। कौल के अनुसार, नीलाभ का कहना था कि इस मामले में अब फाइनल रिपोर्ट ही लगानी है, क्योंकि मामले में पर्याप्त प्रमाण अभी तक नहीं मिल सके हैं। कुछ भी हो, इस पूरे में सीबीआई की विश्वसनीयता ही संदिग्धे हो गयी है। जानकार बताते हैं कि बेहद गंभीर मोड़ चुके इस मामले की जांच तत्काल की जानी चाहिए और चूंकि इस जांच एजेंसी के मुखिया सीबीआई के निदेशक ही हैं, तो यह उनकी सीधे तौर पर जिम्मेदारी है कि सीबीआई को लेकर उठ रहे सवालों और उससे जुड़ी संड़ांध पर वे अपना नजरिया साफ करें। देश को यह जानने का अधिकार है कि सीबीआई में तथ्यों का सम्मान होना चाहिए या फिर किसी सीनियर की मनमर्जी और दादागिरी। इसके साथ ही यह भी कि अदालत में मामला पेश करते समय अथवा जिरह के दौरान एक अपर पुलिस अधीक्षक का लहजा क्या होना चाहिए।
सवाल तो यह है कि कौल को अदालत में यह बयान देने के लिए वही वक्त कैसे और क्यों मिला, जब नीलाभ किशोर की विदाई सीबीआई से हो गयी थी और उन्हें अपने मूल कैडर पंजाब में अपनी ज्वाइन दे दी थी। इतना ही नहीं, 24 अप्रैल-13 को ही नीलाभ किशोर को अपना नया पदभार भी ग्रहण कर लिया था। आपको बताते चलें कि नीलाभ किशोर सन 1998 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। अपनी नौकरी के साथ ही किशोर ने आईपीएस में प्रोन्नकति के मसले को लेकर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में एक याचिका तक दायर कर दी थी। बाद में पंजाब के गृह सचिव को अदालत की अवमानना के लिए भी अदालत से नोटिस जारी करा दिया था।
इतना ही नहीं, नीलाभ किशोर ने अपने 5 साल के सीबीआई के कार्यकाल के तहत कई अहम मिशन पर काम किया। इसमें रामदेव के चेले बालकृष्ण के घोटाले, फर्जी पासपोर्ट समेत दर्जनों आरोप थे, लघु उद्योग निगम में अरबों के घोटाले के जिम्मेदार चीफ इंजीनियर एसके मिश्र, एनआरएचएम के डाक्टेर सचान समेत कई डाक्टरों और कई आला दर्जा के आईएएस अफसरों और देहरादून में एमबीए के छात्र रनबीर सिंह की फर्जी पुलिस एनकाउंटर जैसे दर्जनों और बहुचर्चित मामलों पर सीबीआई के जिम्मेदारियों को नीलाभ किशोर ने सफलतापूर्वक संचालित किया है।
सवाल यह है कि कौल ने किसी भी वकील की जिरह के दौरान केवल अपने वरिष्ठ रहे अधिकारियों पर क्यों लांछन लगाया। कौल के बयान के मुताबिक तो ऐसा प्रतीत हुआ है मानो नीलाभ किशोर ने नुपूर को गिरफ्तार न करने का यह फैसला मनमर्जी से किया था। जानकारों का कहना है कि नीलाभ के इस फैसले में डीआईजी जावीद अहमद भी शामिल थे और इन दोनों ने मामले के हर नुक्तेह को जांचा-परखा था। और इसके बाद ही उन्होंने नुपूर को न पकड़ने का फैसला करने और फिर फाइनल रिपोर्ट जारी करने का आदेश दिया था। हालांकि, कौल ने अपने बयान में यह नहीं किया है कि नीलाभ और जावीद के आदेश फाइल पर दर्ज हुए थे या नहीं। हां, यदि फाइल पर यह फैसला दर्ज नहीं था, तो नीलाभ और जावीद पूरी तरह जिम्मेुदार तो होते ही हैं।
अब एक नजर कौल के बयान और उसके बाद के हालातों पर। आरुषि-हेमराज मर्डर केस के जांच अधिकारी सीबीआई के एएसपी ए. जी. एल. कौल ने सोमवार को विशेष सीबीआई कोर्ट में कहा कि इस केस को जारी रखने के बारे में सीबीआई के सीनियर अफसर एकराय नहीं थे। कौल ने यह बात बचाव पक्ष के वकीलों के सवालों के जवाब में कही।
जिरह के दौरान कौल ने कहा कि सीबीआई के अधिकारी नीलाभ किशोर और जावेद अहमद ने यह महसूस किया कि केस में चार्जशीट लगाए जाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं, लिहाजा अंतिम रिपोर्ट पेश कर दी जाए। कौल ने कहा कि अधिकारियों कहने पर उन्होंने क्लोजर रिपोर्ट पेश की थी। कौल ने बताया कि नीलाभ कि शोर और जावेद अहमद के अनुसार यह केस क्लोजर रिपोर्ट फाइल करने का था, जबकि उनके (कौल) विचार से इसमें आरोप पत्र दाखिल करने लायक साक्ष्य थे।
कौल ने कहा कि घटना के काफी दिन बाद हेमराज के मोबाइल फोन की लोकेशन पंजाब सर्कल में मिली थी। उन्होंने कहा कि फोन पर एसएमएस आया था। यह जानकारी जांच के दौरान टाटा टेलीकॉम से मिली थी।
कौल ने बताया कि उन्होंने कृष्णा के कमरे से बरामद खुखरी और छत की दीवार में लगा खून का पंजा सीडीएफडी हैदराबाद को डीएनए जांच के लिए नहीं भेजा था। कौल ने बताया कि यह कहना गलत है कि आरुषि-हेमराज का कत्ल नहीं किया गया होगा। उन्होंने कहा कि आरुषि-हेमराज के सिर में गोल्फ स्टिक से चोट आना संभव है। उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि घटना के दिन तलवार दंपती अपने कमरे में सोए हों और सुबह उठने पर उन्हें आरुषि के कत्ल किए जाने का पता चला हो।
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