योगी की बेशर्म पुलिस: हैसियत देख कर एक्‍शन

सैड सांग

: अर्णव के पिता और मडि़यांव की मासूम के बाप में बड़ा फर्क होता है न डीजीपी साहब : इस गरीब बच्‍ची को अर्णव की ही तरह खोजने की कोशिश करती तो वह बच्‍ची आज जिन्‍दा होती : मडि़यांव के स्‍कूल की छह बरस की बच्‍ची की लाश चार दिनों तक जंगल में लटकी रही, पुलिस खर्राटे भरती रही :

संतोष कुमार

लखनऊ : मालदार और रसूखदार आसामी के बच्‍चे को चार घंटों में खोज लिया: कानून की नजर भले ही अमीर और गरीब, रसूखदार और आम आदमी को बराबर समझती हो लेकिन पुलिस की नजर अमीर और गरीब,रसूखदार और आम आदमी में बड़ा भेद करती है। सोमवार को शहर के बड़े व्यापारी के बेटे का स्कूल जाते वक्त रास्ते से अपहरण हो गया। मामला बड़ा था,बच्चे की ज़िंदगी के साथ साथ बड़ो की कुर्सी हिलने का खतरा भी था तो ना सिर्फ लखनऊ पुलिस बल्कि आसपास के जिलों की पुलिस तक अलर्ट हो गई,4 घंटे में बच्चा भी मिल गया और किडनैप करने वाला भी। वाह बधाई। वास्तव में बधाई और शाबाशी वाला काम हुआ।

लेकिन ऐसी ही एक घटना 4 दिन पहले हुई थी। 15 मार्च को मड़ियांव इलाके से 6 साल की एक बिटिया गायब हो गई। राजगीर मिस्त्री की ये बिटिया भी उस दिन स्कूल एग्जाम देने गई थी। लेकिन फिर वो लौट कर नही आई। स्कूल ड्रेस में गई बेटी लौटी तो फिर लाश बनकर। उस बच्ची के लाश 4 दिन बाद जंगल मे पेड़ से लटकी मिली। स्कूल ड्रेस में ही उस मासूम को  बेल्ट से लटका दिया गया था। इस घटना में पुलिस ने यही तेजी क्यों नही दिखाई? इस लड़की के लापता होने के 4 दिन तक किसी अफसर को फुरसत नही मिली कि अखबार में पढ़कर ही सही एक बार नीचे वालो से पूछ लें,ये क्या हुआ,क्या कर रहे हो।

अब सीधा सवाल उन जिम्मेदारों से। गरीब की बेटी लापता हुई तो आपको भनक ही नही लगी,वाह। वैसे तो सुनते है कि थाने में परिंदा भी पर मारता है  तो साहब को खबर हो जाती फिर ये खबर  थाने से निकलकर साहबो तक क्यों नही पहुंची। थाने में आपके अय्यार क्या कर रहे थे। सच तो ये है कि आपने उस राजगीर मिस्त्री की बेटी के लापता होने की खबर अखबारों में देख कर अनदेखा कर दिया। आप स्वीकार भले न करे लेकिन ये पाप आप से अनजाने में ही सही, हुआ जरूर है।

जैसे साहब लोग अर्नव की किडनैपिंग पर भागे रहे थे वैसे उस गरीब की बेटी की किडनैपिंग पर भागने और भगाने लगते तो आज उस गरीब की बेटी भी अपने पापा के टूटे घर मे खेल रही होती।

आखिर ऐसा भेद क्यों? क्यों अफसर 4 दिन तक उस बच्ची की सुध नही ले पाए। सूचना नही मिली तो साहब अखबार tv नही देखते पढ़ते क्या? या सच ये है उस गरीब की बेटी का लापता होना आपको piti issue महसूस हुआ। और नतीजा। वो बच्ची लाश हो गई।

अरनव बेटा ईश्वर तुमको लंबी आयु दे,तुमको मेरी भी उम्र लग जाए।

लेकिन सच तो ये है कि बेटा अगर तुम किसी नामचीन स्कूल के स्टूडेंट और अपने रसूखदार पिता के बेटे ना होते तो ये पुलिस वही करती जो उस मजदूर के साथ किया।

सच ये है साहब!  जिस वक्त आपको अर्नव के किडनैप होने की सूचना मिली होगी तो आपको सबसे पहले अर्नव से ज्यादा अपनी कुर्सी की चिंता सताई होगी।  की बेटा आज तो गए,बच्चे को कुछ हुआ तो कल सब सस्पेंड। यही दिमाग का कौंधा आपको तूफ़ान बना गया और आप सब 4 घंटे के रिकॉर्ड वक्त में बच्चे को बचा लाए।

साहब ये जो कुर्सी जाने का खौफ था ना वो खौफ डर आपको उस मजदूर की बेटी के लापता होने में नही था। ये कुर्सी न जाने का भय का ना होना ही था कि आपने उस मजदूर की बेटी को पता लगाने की जरूरत नही समझी। वरना जान तो उसकी भी थी,उसके मा बाप ने भी आपको बेटी लापता होने की सूचना दी थी। उसके घरवालों ने तो ये भी बताया कि कौन ले जा सकता है उनकी मुन्नी को। लेकिन वही कुर्सी जाने का डर ना तो नीचे वालो को था और ना आपको। इसलिए नीचे वाले ने जानकर भी कुछ नही किया और आप को फर्क ही क्या पड़ना था।

खैर बात यहाँ पुलिस के रवैये की थी। एक जैसी घटना में कैसे पुलिस अलग अलग तरह का काम करती है। जिससे कुर्सी का खतरा था उसमें लग गए और जो कुछ नही उखाड़ सकता उसको आपने अब ज़िन्दगी भर की खुशियों से उखाड़ दिया।

यूपी में भक्तों की सरकार आई, महात्मा कुर्सी पर बैठा तो आम आदमी में न्याय का भरोसा जगा। सरकार भले गरीब और अमीर में भेद न करती हो लेकिन खाकी तो करती है।पीड़ित अगर रसूखदार हुआ, धन्नासेठ हुआ तो खाकी… सदैव आपकी सेवा में तत्पर… की मुद्रा में आ जाती है। अगर पीड़ित, आम आदमी हुआ तो मामला उळट जाता है कि पीड़ित से ही यूपी पुलिस सेवा लेने की तत्परता में भी लग जाती है।

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