फर्जी लेटर से वाट्सऐप-पत्रकारों की पैंट गीली, भगदड़

दोलत्ती

: सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेश के नाम पर एक गजब हड़कम्‍प मचाया :मत भूलिये कि वाट्सऐप-समूह भी सोशल-मीडिया का मजबूत पहरूआ है :
कुमार सौवीर
लखनऊ : सोशल मीडिया और उसमें भी ह्वाट्सऐप ग्रुप पर सक्रिय लोग पत्रकारिता के एक बड़े और जिम्‍मेदार पत्रकार होते हैं। सूचनाओं और खबरों को तत्‍काल इधर से उधर तक पहुंचाने में उनका योगदान बेमिसाल होता है। ऐसे लोग सोशल मीडिया में एक जोरदार हस्‍तक्षेप के तौर पर पहचाने जाते हैं। लेकिन जहां यही सक्रियता वाट्सऐप पत्रकारिता को सम्‍मानजनक बनाती है, वहीं उसमें तनिक भी होने वाली चूक ऐसे पूरे माध्‍यम के चेहरे पर कालिख भी पोत डालती है। सामान्‍य तौर पर यही माना जाता है कि सोशल मीडिया की यह वाट्सऐप शाखा से जुड़े चंद लोग अपनी तकनीकी सक्रियता का दुरूपयोग करते हैं और पत्रकारिता के नाम पर केवल हमेशा में जुटे रहते हैं। जाहिर है कि ऐसी हालत में ऐसे पत्रकारों में चरित्रहीनता फैलती है, जो उनमें साहस की भयावह गिरावट के तौर पर देखी जा सकती है। एक तो किसी मोटे आसामी पर कींचड़ पोतने में वे सिर्फ इसलिए लिप्‍त हो जाते हैं कि वहां से आर्थिक गुंजाइश के लिए नये-नये छेद-लीकेज मिल जाते हैं, लेकिन तनिक भी खतरा दीखते ही ऐसे पत्रकार कुछ इस तरह मौके से कूद कर भाग निकलते हैं, जैसे डूबते जहाज के चूहे। सुप्रीम कोर्ट के नाम पर हाल ही वायरल हो चुके एक फर्जी आदेश को देखते ही ऐसे वाट्सऐप पत्रकारों ने अपनी दूकान बंद कर शटर ही गिरा लिया। बजाय इसके कि वे सच को खोजते, पता करते, उनमें अधिकांश समूहों ने ऐसे फर्जी आदेश से डर कर अपना बोरिया-बिस्‍तर बांध कर रफूचक्‍कर होने पर ही अपनी सीमा पर ताला लगा दिया है।
लेकिन अब तो लगता है कि ह्वाट्सऐप के एडमिनिस्‍ट्रेटर अब अपनी हैसियत से काफी ऊची उछाल मारने पर आमादा हैं। व्हाट्सएप यह पत्रकारों के बहादुरी फर्जी खबर पर आनन-फाननग्रुप पर ताला लगा दिया है। अधिकांश व्हाट्सएप समूह ने अपने ग्रुप पर एक नोटिफिकेशन लिख दिया और उसके बाद अपने ग्रुप में किसी दूसरे भी सदस्य की खबर को लेने पर प्रतिबंध कर दिया हैा इस नोटिफिकेशन में लिखा गया है कि अगले व्यवस्थापक आप कोई भी सदस्य इस समूह में अपनी खबरें नहीं लगा सकेगा। सूत्र बताते हैं कि यह करतूत ऐसे व्हाट्सएप पत्रकारों की फोटो चरित्र का ताजा प्रमाण है। दरअसल अधिकांश व्हाट्सएप समूह केवल कट और पेस्ट पर ही निर्भर है। कहीं सी भी दूसरे समूह की खबर को बेधड़क व सीना ठोक कर उठा लेते हैं और बिना उसका रूट जाहिर किए बिना अपने समूह में फारवर्ड कर देते हैं। अभी नहीं की उस खबर में कोई हल्‍का फुल्‍का सा ही सही, लेकिन एकाध कोई फर्क कर दिया जाए। ऐसे व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिनिस्ट्रेटर सीधे से खबरों को दूसरे ग्रुप से उठाकर फॉरवर्ड कर देते हैं ऐसी हालत में किसी भी खबर के मूल स्रोत का अंदाज लगा पाना मुमकिन नहीं होता
दर्शन ऐसे वक्त समूह को बनाने में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो इस समूह के नाम पर अपने आप को पत्रकार साबित करने की कोशिश करते हैं और दावा करता है कि वह मजबूत सोशल पत्रकार है। बावजूद इसके कि क्यों समूह की खबरें सिर्फ चोरी पर ही निर्भर होती हैं वह अपने समूह में छपी किसी भी खबर का जिम्मा लेने को तैयार नहीं होते हैं। बल्कि सीधे सीना ठोक कर अपनी पत्रकारिता के दोष दिखाते हैं। लेकिन जब कोई सरकारी डंडा उन पर पड़ने की आशंका भर होती है तो वह अपना समूह या तो ओनली ऑडिटर का कर लेते हैं या फिर ग्रुप को ही बंद कर देते हैं।
लेकिन अचानक ताजा मामला एक फर्जी अदालती नोटिस बाद उछला। जिसमें किसी पशु चिकित्‍सक का भी जिक्र था। लेकिन उसके बाद आनन फानन कई व्हाट्सएप समूह ने अपनी दुकानें बंद कर लिए कर ली।
दरअसल सर्वोच्च न्यायालय कि एक नोटिस ने व्हाट्सएप ग्रुप चलाने वाले मॉडरेटर्स और एडमिनिस्ट्रेटर्स को होश ठिकाने लगा दिया नोटिस में साफ लिखा था कि करुणा को लेकर पूरे समाज और देश में गंभीर तनाव का माहौल है और इसको लेकर कई भ्रांतियां झूठी बातें और अफवाहें व्हाट्सएप समेत सभी सोशल मीडिया में भरमार होती जा रही हैं ऐसी हालत में प्रशासन को चला पाना दिक्कत तब होता जा रहा है इस नोटिस में कहा गया कि कम से कम अगले 2 दिनों तक ऐसी कोई भी समाचार व्हाट्सएप में और सोशल मीडिया में प्रसारित प्रसारित किया जाए अन्यथा प्रशासन को पूरा निकाल दिया जाएगा कि वह ऐसा अराजक और मनमर्जी करने पर आमादा व्हाट्सएप ग्रुप समेत सोशल मीडिया के मॉडरेटर्स या यूजेस पर कड़ी कार्रवाई करें
यह नोटिस प्रसारित होते हुए सभी व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिनिस्ट्रेटर या मॉडरेटर के हाथों से तोते उड़ गए। दोलत्‍ती ने उन्होंने आनन-फानन अपने समूह की सेटिंग्स बदल दी और सुनिश्चित कर लिया की अब एडमिनिस्ट्रेटर के अलावा किसी अन्य की खबर को वे प्रसारित नहीं करेंगे फलन की हालांकि सभी व्हाट्सएप ग्रुप ने ऐसा नहीं किया। लेकिन ऐसे व्हाट्सएप ग्रुप की तादाद कम नहीं थी जिन्होंने इस नोटिस के वायरल होते हैं अपने सेटिंग्स को बदल दिया लेकिन सच बात यह है कि यह सुप्रीम कोर्ट की यह आदेश की पूरी तरह फर्जी है हमें इस बारे में लखनऊ हाईकोर्ट के सजग अधिवक्ता जीएल यादव से संपर्क किया। यादव ने इस आदेश को पढ़ा, जांचा और उसे उसकी सत्यता परखना पर की और पाया यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूरी तरह फर्जी है और ऐसा कोई भी आदेश न तो सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया है और ना ही उससे संबंधित कोई मुकदमा सुप्रीम कोर्ट पर सरकार अथवा किसी अन्य वादी द्वारा दायर किया गया।
इतना ही नहीं इस पूरे मामले में किसी भी तरीके की कोई हलफनामा भी तो सुप्रीम कोर्ट ने मांगा और ना ही केंद्र सरकार ने उसे दिया है यार देख लिया कि व्हाट्सएप ग्रुप्स कितने सजग और सतर्क होते हैं लेकिन इसके बावजूद उनकी भूमिका उसको खाली नहीं किया जा सकता कि वह सूचना का आदान प्रदान करने का एक सशक्त माध्यम है। वह बदलाव का एक जबदर्स्‍त ताकत हैा वह अपने कार्यशैली और उसकी सत्यता को जांचने की कोशिश करें और पूरी गंभीरता के साथ ही खबरों को प्रसारित करें या फॉरवर्ड करें अन्यथा कभी भी वे गंभीर संकट में फंस सकते हैं ऐसी हालत में निदान तो केवल यही होगा सभी व्हाट्सएप समूह के एडमिनिस्ट्रेटर ऑडिटर अपने सदस्यों को नसीर बताएं समझाएं बल्कि अपने समूह पर लगने वाली खबरों पर कड़ी निगरानी भी करें कि वह उनके समूह में जो खबरें लगाई जा रहे हैं या फॉरवर्ड की जा रही हैं उनका स्रोत विश्वसनीय है अथवा नहीं। कम से कम इस घटना से अगर व्हाट्सएप समूह ऐसा कोई सबक सीख लेते हैं विश्वास मानिए कि वह भारतीय समाचार जगत के सबसे सजग और सतर्क माध्यम होने की भूमिका में खड़े होंगे और तब व्हाट्सएप समूह की वास्तविक ताकत बन पाएगी

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