कहानी यश-भारती पुरस्‍कार की: यह जनरल अनिल चैत कौन हैं

सैड सांग

: अब तो यह चर्चा शुरू हो गयी कि यह यश-भारती है या फिर अपयश-भारती : मेटल स्‍क्रैप घोटाले की फाइल बंद कर चैत को सर्वोच्‍च प्रतिष्‍ठाजनक दायित्‍व दिलाया राजनीतिक दखल ने : केदारघाटी में हुई बाढ-विभीषिका में राहत-कार्यो पर अनिल चैत लाजवाब, लेकिन यश-भारती का मामला संदिग्‍ध :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यश-भारती सम्‍मान। यह भारतीय सेना के किसी सम्‍मान-पुरस्‍कार का मामला नहीं, बल्कि नागरिक सम्‍मान-पुरस्‍कार है, जो उत्‍तर प्रदेश सरकार ने पिछले दिनों थोक भाव में बांट दिया। लेकिन चर्चा इसलिए भी नहीं हो रही है, कि सेना के एक जनरल को यह नागरिक सम्‍मान दिया गया है। क्‍योंकि नागरिक-कार्यों के लिए किसी भी शख्‍स को ऐसा सम्‍मान दिया जा सकता है। लेकिन असल दिक्‍कत बात तो यह है कि क्‍या ऐसा सम्‍मान वाला शख्‍स वाकई इस सम्‍मान का समुचित पात्र है। और उससे भी बड़ी बात तो यह कि ऐसे शख्‍स का अतीत क्‍या रहा है।

इन सवालों पर खोद-बीन करना शुरू करेंगे तो आप पायेंगे कि हाल ही मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव ने जिन यश-भारती सम्‍मानों का वितरण किया है, उसमें जनरल अनिल चैत फिट नहीं होते हैं। सच बात तो यही है कि अनिल चैत का अतीत गम्‍भीर आर्थिक घोटालों में बुरी तरह सना-लिथड़ा है। इतना ही नहीं, जनरल अनिल चैत पर सेना में राजनीतिक-करण और लामबन्‍दी के आरोपों में सबसे बड़ी कमान यानी मध्‍य कमान तक हटा दिया गया था। सेना का मानना था कि अनिल चैत ने सेना की आचरण-संहिता के प्रतिकूल जाकर नेताओं से करीबी बनायी, जो यह गम्‍भीर मामला है।

यह जानकारी सेना से जुड़े कुछ उच्‍च-स्‍तरीय सूत्र दे रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि अनिल चैत ने अपनी सेवा के दौरान राजनीतिक दलों और कई वरिष्‍ठ नेताओं से करीबी बनायी। एक राजनीतिक दल के लिए भीड़ जुटाने के आरोप भी अनिल चैत पर लगे। सूत्र बताते हैं कि अपने ऐसे रिश्‍तों के चलते अनिल चैत ने अपने कुछ गैर-कानूनी कृत्‍य भी छिपाये और इतना नहीं, बल्कि उन रिश्‍तों के आधार पर राजनीतिक दलों को लाभ भी दिलाया। सूत्रों के अनुसार ऐसे लाभ सेना की आचरण संहिता के तहत पूरी तरह अवैध और निहायत गैरजिम्‍मेदारी पूर्ण थे।

सूत्र बताते हैं कि जब श्री चैत सेना में बिग्रेडियर के पद पर कार्यरत थे, उन पर सेना में मैटल-स्‍क्रैप के घोटाले को लेकर गम्‍भीर आर्थिक आरोप लगे थे। ऐसे मामलों में निष्‍प्रयोज्‍य धातु का निष्‍पादन करने की प्रक्रिया में अनिवार्य नियमों का उल्‍लंघन करने के आरोप थे। जाहिर है कि इन कृत्‍यों से सेना को आर्थिक ठेस पहुंची और उसका सीधा अनुचित लाभ उठाया गया। सेना ने ऐसी घटनाओं को लेकर बहुत गम्‍भीरता से लिया और सूत्रों के अनुसार अनिल चैत के खिलाफ जांच शुरू हो गयी।

 

सूत्र बताते हैं कि अनिल चैत की करीबी देश के कई वरिष्‍ठ नेताओं से हो गयी थी। तब के रक्षा-मंत्री मुलायम सिंह यादव भी अनिल चैत के करीबियों में से शामिल थे। ऐसे में मुलायम सिंह यादव ने रक्षामंत्री की हैसियत से अनिल चैत पर चल रही जांच की फाइल को बंद कर दिया। इतना ही नहीं, श्री यादव ने अनिल चैत को एक बड़ा तोहफा भी थमा दिया जो सेना में निहायत कुशल, श्रेष्‍ठतम और बेहद सम्‍मानजनक माना जाता है। श्री यादव की कृपा से अनिल चैत लंदन के डिफेंस कालेज आफ इंग्‍लैंड में ट्रेनिंग के लिए भेज दिये गये।

इस ट्रेनिंग के भेजने के बाद से जाहिर है कि उनके खिलाफ चल रही सारी पुरानी फाइलें खत्‍म हो चुकी थीं। ऐसे में उन्‍हें अब अगले पद पर प्रमोट कर दिया गया। अब वे मेजर जनरल बन गये और उसके कुछ ही समय बाद वे लेफ्टीनेंट जनरल भी बन गये। अब तक सेना में चैत की तूती बजने लगी थी। नेताओं से करीबी तो थी ही उनकी। कड़ाही में उनकी पांचों उंगलियां थीं, और सिर भी अंदर चला जा चुका था। मौज ही मौज थी जनरल अनिल चैत की। इसी बीच अनिल चैत को देश की पांच कमानों में से सबसे बड़ी कमान यानी मध्‍य कमान का जीओसी बना दिया गया। मगर अनिल चैत की नजर सेना की उस सर्वोच्‍च प्रतिष्‍ठाजनक कमान पर थी, जिस का कमान सम्‍भालने का ख्‍वाब हर ले‍फ्टीनेंट जनरल रखता है। वह है सेना की पश्चिम कमान।

लेकिन इसी बीच विक्रम सिंह देश के सेनाध्‍यक्ष बन गये। उन्‍होंने सेना में अधिकारियों की प्रोन्‍नति के लिए एक नया ढांचा तैयार किया। अनिल चैत ने इस ढांचे पर ऐतराज करना शुरू कर दिया। वजह यह कि विक्रम के ढांचे के मुताबिक वे पश्चिमी कमान के अपने सपने को पूरा नहीं कर सकते थे। इसी बीच, सूत्रों के अनुसार, विक्रम सिंह ने अनिल चैत की वह फाइल खुलवा दी, जिसमें उनके नेताओं से करीबी रिश्‍तों की बात दर्ज थी। ऐसे में पश्चिमी कमान तो दूर, अनिल चैत को अचानक ही मध्‍य कमान से भी हटा दिया गया और वे एक ऐसे पद पर भेज दिये गये जिसे महत्‍वहीन माना जाता है। यह इंटीग्रेडेटेड डिफेंस स्‍टॉफ में शामिल किया जाता था।अनिल इसी हालत में सेना से रिटायर हो गये।

अब जरा अनिल चैत के दूसरे चेहरे पर भी एक गौर कर लीजिए। सेना के एक सूत्र ने बताया कि अनिल चैत मूलत: बेहद कर्तव्‍यनिष्‍ठ और मेहनती तथा दायित्‍वपूर्ण अधिकारी रहे हैं। उनकी सबसे बडी उपलब्धि तो केदारघाटी में हुई बाढ़-तबाही के दौरान राहत कार्यक्रमों को सम्‍पादित के दौरान रही। इस पूरे दौरान सेना ने अपनी संवेदनशीलता के कई आयाम स्‍थापित किये। कई अन्‍य क्षेत्रों में भी अनिल चैत के काम लगातार प्रशंसा जुटाते रहे हैं।

ऐसे में स्‍पष्‍ट है कि यश-भारती जैसे सरकारी सम्‍मानों का आधार क्‍या होता है।

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