वकील ने सच के लिए पत्रकारिता अपनायी, मार डाला गया

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: पत्रकारिता यह नहीं होती है कि ” उतने मरे, इतने घायल”। पत्रकारिता के लिए जान देने का हौसला जरूरी : सिरसा में छोटे अखबार चलाने वाले छत्रपति ने रामरहीम की करतूतों को नंगा कर दिया था रामचंद्र छत्रपति : पत्रकारिता के लिए दलाली नहीं, गूदा मजबूत कीजिए :

मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता

नई दिल्ली : वह एक सामान्‍य युवा वकील था। जोशीला। सच को सच के पायजामे में ही रखने का जज्‍बा था उसमें। नाम था रामचंद्र छत्रपति। हरियाणा के सिरसा का रहने वाला रामचंद्र छत्रपति को पता चल गया था कि हरियाणा और राजस्‍थान समेत कई प्रदेशों और देशों में फैले करोड़ों भक्तों का स्वयंभू देवता बन ढोंगी बाबा यानी गुरमीत रामरहीम सिंह मूलत: ऐयाश शख्‍स है, जो सैकड़ों युवतियों की आबरू लूट चुका है। शर्मनाक तो यह भी था कि उनमें से अधिकांश शिकार युवतियां इस ढोंगी बाबा के आश्रम में ही रहती थीं, और साध्‍वी कहलाती थीं।

रामचंद्र को यह भी अहसास हो चुका था कि ऐसे ढोंगी पर हमला करने का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है। यह भी पता था कि इस ढोंगी के खिलाफ जंग में उसे वकालत नहीं, बल्कि जानजागरण के लिए अखबार की जरूरत पड़ेगी। फिर क्‍या था। उसने एक ही झटके में वकालत का कोट उतार दिया, और बन गया पत्रकार। अखबार का नाम था ‘ पूरा सच ‘। रामचंद्र ने अपने अखबार में इस ढोंगी की खबरें छापना शुरू कर दिया, जब कोई भी व्‍यक्ति इस ढोंगी के खिलाफ चूं तक करने की जुर्रत नहीं समझता था।

इस अखबार के संपादक ने अकेले मोर्चा खोलने की हिम्मत दिखाई। उसने इस ढोंगी के सारे कारनामों को सिलसिलेवार छापना शुरू कर दिया। ‘ पूरा सच ‘ ने सबसे पहले गुरमीत राम रहीम के पापों का भंडाफोड़ किया। डेरे के अंदर अय्याशियों के किस्से छापे। बताया कि कैसे लड़कियों को साध्वी के रूप में बंधक बनाकर रखा जाता है। डेरे में उन्हें देवियां कहकर पुकारा तो जाता है, मगर उनकी हालात वेश्याओं से भी बदतर है। वेश्याएं किसी से पैसे लेकर रजामंदी से संबंध बनाती हैं, मगर यहां तो बाबा राम रहीम बिना मर्जी ही उन्हें जब मन करता है, हवस का शिकार बनाते हैं।

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पत्रकार पत्रकारिता

हैरत की बात है कि ‘ पूरा सच ‘ ने इस अभियान को छेड़ा, जबकि बाकी बड़े मीडिया संस्थानों ने उसका तनिक भी संज्ञान नहीं लिया। बलात्कार की शिकार साध्वी की उस चिट्ठी को रामचंद्र छत्रपति ने उस दो पन्ने की गुमनाम पाती को अपने छोटे से अखबार में छापा। चूंकि रिपोर्ट सनसनीखेज थी। बस फिर क्या था तहलका मच गया पूरे पंजाब में। बलात्कारी बाबा की दुनिया ही हिलनी शुरू हो गई। बाबाओं के गुंडे उबल पड़े।

लेकिन अचानक 24 अक्टूबर-02को डेरा के गुर्गे धमक पड़े रामचंद्र छत्रपति के ठिकाने पर। छत्रपति को घर के बाहर बुलाकर गुर्गों ने पांच गोलियां मारकर बुरी तरह घायल कर दिया गया। चूंकि छत्रपति सच्चाई लिखने से नहीं चूकते थे, उनकी धारदार पत्रकारिता की तूती बोलती थी। लोकप्रिय थी। इस नाते 25 अक्टूबर 2002 को घटना के विरोध में सिरसा शहर बंद रहा। 21 नवंबर-02 को रामचंद्र छत्रपति की दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मौत हो गई। हत्‍या के बाद रिपोर्ट इस ढोंगी बाबा समेत कई लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। लेकिन इस ढोंगी  बाबा के रसूख के आगे पंजाब पुलिस ने एक बार फिर घुटने टेक दिए। गुरमीत का नाम केस से बाहर कर दिया। जिस पर दिसंबर-02 को छत्रपति परिवार ने पुलिस जांच से असंतुष्ट होकर मुख्यमंत्री से मामले की जांच सीबीआई से करवाए जाने की मांग की।

जनवरी 2003 में पत्रकार छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर छत्रपति प्रकरण की सीबीआई जांच करवाए जाने की मांग की। याचिका में डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह पर हत्या किए जाने का आरोप लगाया गया। हाईकोर्ट ने 10 नवंबर 2003 को सीबीआई को एफआईआर दर्ज कर जांच के आदेश जारी किए। दिसंबर 2003 में सीबीआई ने छत्रपति व रणजीत हत्याकांड में जांच शुरू कर दी। रेप मामले में गुरमीत दोषी सिद्ध हो गया है, मगर अभी पत्रकार की हत्या के मामले में फैसला व सजा बाकी है।

सच बात तो यही है कि अगर रामचंद्र छत्रपति जान पर खेलकर बलात्कारी पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए खबरें न छापते तो शायद हम 15 साल पुराने उस मामले से अनभिज्ञ रहते। और न ही आज बलात्कारी बाबा सलाखों के भीतर जाता।

आइये, हम रामचंद्र छत्रपति को आज श्रद्धांजलियां तो अर्पित कर दें।

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