कूड़ेदान में डम्‍प हो गये राजधानी में पांच लाख अखबार

: अखबारों की कीमत बढ़ाने पर बवाल। लखनऊ में सन्‍नाटा, बाराबंकी में बिक गये समाचारपत्र : अखबारवाले नागनाथ, हॉकर सांपनाथ। सबको चाहिए था मुनाफा, भाड़ में जाए पाठक : सबसे ज्‍यादा नुकसान दैनिक जागरण को, अंग्रेजीवालों को कौन पूछता है :  कुमार सौवीर लखनऊ : अखबार मालिकों को अपनी तिजोरियों को भरने की फिराक में […]

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खबरों के बादशाह एनयूआई में कमीशनखोरी से कामधाम ठप्‍प

: खुद ही खबर बन गया खबरची एनयूआई, दो महीनों से फाकाकशी : यूएनआई का घोटाला पर बेहाल कर्मचारियों ने किया प्रदर्शन : चीफ एडीटर अशोक टुटेजा ने आश्‍वासन दिया, ठोस कार्रवाई नहीं : कश्‍यप किशोर मिश्र लखनऊ : जरूरी नहीं, कि जो सबकी खबर दे उसके बारे में भी सबको खबर हो ही। देश […]

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मैं मेहनतकश हूं, घूसखोर अफसरों का समर्थन कैसे करूं

: इन्‍हीं सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों ने ही तो निजी ट्रेड यूनियन अभियान को तबाह किया : आज फिर किस मुंह से यह लोग अपने वेतन के सवाल पर हड़ताल की धमकी दे रहे : पहले तो यह अपनी आय का सार्वजनिक हिसाब दें, फिर वेतन पर बुक्‍का फाड़ें : राज्‍य सरकारकर्मियों की भी ऐसी चिल्‍ल-पों पर […]

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अन्येष्टि संस्कार की तैयारियां शुरू, सहारा में हड़ताल शाम से

: सहारा मैनेजरों पर रकम लुटायी, पत्रकार भी दिखायेंगे उल्टा ठेंगा : बिना तन्‍ख्‍वाह के जयकारा लगाने वाले भी भिड़ेंगे हड़तालियों से : केवल हड़ताल और मजदूरों के आक्रोश से ही डरता है सहारा प्रबंधन : कुमार सौवीर लखनऊ : अपनी धोखाधड़ी और नौटंकियों के लिए कुख्यात सुब्रत राय और सहारा इंडिया में अब एक […]

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11 साल से भूख हड़ताल पर हैं मणिपुर की शर्मीला

अपनों को बचाने के लिए इरोम शर्मिला चानू ने खुद को दांव पर लगा दिया

मणिपुर की लौह महिला का खिताब पाये शर्मिला पर मीडिया की नजर नहीं

सुरक्षा बलों को मिले असीमित अधिकार के खिलाफ हैं शर्मिला इरोम चानू

इंफाल में उग्रवादी के शक में मारे गये लोगों की घटना ने दहला दिया

इरोम शर्मिला चानू नामक युवती मणिपुर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून 1958 हटाने की मांग को लेकर 10 वर्ष से अधिक समय से अनशन कर रही है।   मणिपुर के मानवाधिकार कार्यकर्ता मुख्यधारा की भारतीय मीडिया से खफा हैं। उनकी नाराजगी का कारण है राष्ट्रीय मीडिया द्वारा भ्रष्टाचार के विरोध में अनशन कर रहे अन्ना हजारे को इरोम चानू शर्मिला से ज्यादा तरजीह देना। शर्मिला सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के विरोध में 11 वर्षों से अनशन कर रहीं हैं,  इसके बावजूद मीडिया द्वारा शर्मिला के इस आंदोलन की अनदेखी की जा रही है।

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