नवजात बच्ची बिदक गयी, और जुल्फी पर कर दिया पेशाब

सक्सेस सांग

: डैमेज-कंट्रोल के लिए खुद की इमेज बनाने के लिए अस्पताल पहुंच गये थे जुल्फी बाबू : अब गांव-चौपालों पर आग की तरह वायरल हो रही है मूत्र-विसर्जन का दिलचस्प मामला : पत्रकार भले न समझने की कोशिश करें, लेकिन नवजात बच्ची ने समझदारी दिखा दी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जो बात खुद को जिले का दिग्गज असरदार मानने वाले पत्रकार नहीं कह पाये, उसे एक मासूम नवजात बच्ची ने बेहिसाब साहस का प्रदर्शन किया। न जाने उसे कैसे पता चल गया कि जिस शख्स ने उसे अपनी गोद में उसे ले कर उसको पुचकारना शुरू किया है, वह दरअसल बच्चियों के सम्मान के प्रति नकारात्मक भाव रखता है। इतना ही नहीं, उस  बच्ची को पता चल गया कि यह अफसर आम आदमी को सुधारने के लिए जूते मारने की धमकी देता घूमता है। बस, फिर क्या था। उस सद्य-स्तनपायी बच्ची की त्योरियों बदल गयीं। वह उस अफसर की गोद से उतरने के लिए छटपटाने लगी। खूब रोई-चिल्लाई, लेकिन उस अफसर ने उसे मनाने के लिए ओ-हो ओ-हो कहते हुए पुचकारना शुरू किया तो बच्ची बिफर पड़ी। असहाय बच्ची आख्रिर क्या करती। लेकिन जो उसके वश में था, वह तो उसने कर ही दिया। उसने आव देखा न ताव। उस अफसर पर पेशाब कर दिया।

यह दिलचस्प वाकया अब आजकल दिलचस्प किस्सों में गलियों में तैरने लगा है। लोग चुस्कियां ले रहे हैं, चटखारे ले रहे हैं। पूरे जिले में हंगामा मचा हुआ है। चौपाल से लेकर कलेक्ट्रेट तक जहां भी देखिये, ठहाकों पर ठहाके ही लगाये जा रहे हैं। बच्ची के पत्रकार पिता और उसके चचा अपनी सफाई देने में बिजी हो गये हैं, जबकि उस हादसे से व्याकुल होकर अफसर ने इस पर चर्चाएं आम होते हुए आनन-फानन नउवा को बुला कर अपनी जुल्फों को कटवा दिया है।

किस्सा ठीक उसी तरह है, जैसा मुझे उस जिले के कई पत्रकारों ने जस का तस फोन करके बताया। इस घटना को वहां के सजग लेखक और समाजसेवियों ने भी लखनऊ में मुझसे भेंट करके यह हैरतनाक किस्सा बताया और उस अफसर व उसके बाप-चचा की खिल्ली उड़ाते हुए उस नवजात बच्ची के हौसलों की दिल खोल कर प्रशंसा की। इन्हींव लोगों ने भी बताया है कि इस हादसे के बाद से ही अब जुल्फी-प्रशासन की अदाएं अब काफी कम होती जा रही हैं।

तो दोस्तों इस जिले के अधिकांश पत्रकारों की दिनचर्या केवल अफसरों का चरण-चुम्बहन करने में ही बीतता है। इसके लिए यह किसी भी हद तक उतर सकते हैं। अफसरों की खुशामद के लिए यह लोग समाज में होने वाली गम्भीर अपराधों तक को पचा जाते हैं, उसे दबा लेते हैं। हाल ही एक किशोरी के साथ हुई दरिंदगी के मामले में भी इन पत्रकारों ने यही किया। लेकिन मेरी बिटिया डॉट कॉम ने इस मामले की धज्जियां उड़ायीं और खुलासा कर दिया कि प्रशासन के जिम्मेदारों ने उस बच्ची को न्याय दिलाने के बजाय उस प्रकरण को ही दबा डाला।

यह और ऐसे दीगर मामलों का खुलासा जब होने लगा तो जुल्फी झटक-झटक कर प्रशासन करने वाले कारिंदों को होश आया। वे डैमेज-कंट्रोल पर जुट गये। इसलिए बीच एक पत्रकार के यहां एक बच्ची पैदा हुई। जुल्फी अफसर को यह मौका मुफीद लगा। उन्होंने अपने अधीनस्थ से भारी-भरकम उपहार लाने का आदेश दिया, नीचे वाले ने अपने नीचे और उसके नीचे वाले ने अपने नीचे के अफसर से हुकुम दिया। होते होते यह आदेश नायब और कानून-गो तक पहुंचा और उसके बाद एक कमाऊ लेखपाल को जिम्मेदारी दी गयी। बिना एक दमड़ी के खर्च के ढेर सारे उपहारों की डोली लेकर वह जुल्फी अफसर साहब उस नर्सिंग होम में पहुंचे, जहां पत्रकार के परिवार का जच्चा–बच्चा भर्ती थी।

आला हाकिम पहुंचने की खबर होते ही अस्पताल में भीड़ लग गयी। नवजात बच्ची के नवजात बाप और उसके नवजात चचाओं की भीड़ भी कैमरा-शैमरा लेकर पहुंच गयी। हाकिम इसी चक्कर में थे। फ्लैश चमकने के पहले ही उन्होंने लपक कर उस नवजात को गोदी में ले लिया। प्रदर्शन किया, मानो कि बच्चियों की सुरक्षा ही प्रदेश सरकार की सर्वोच्च  प्राथमिकताओ में है, इसलिए वह आज उसका ऐलान करके ही मानेंगे। बच्ची सो रही थी, ले‍किन अचानक उसकी छठवीं इंद्री जाग गयी। उसने फटाक से अपनी आंख खोली, जुल्फी के चेहरे को देखा, छुआ, सूंघा और फिर अचानक बिदक गयी। लगी छटपटाने। लेकिन जुल्फी ने उसे मनाने के लिए उसे ओहो-ओहो कहते हुए पुचकारना शुरू किया।

लेकिन यह क्या। जुल्फी की पुचकार से बच्ची शांत होने के बजाय, बुरी तरह बिदक गयी। लगी जोरों से चिल्ल-पों करने। जुल्फी के सामने नवजात के नवजात बाप व चचाओं की भीड़ हो हो करके हंसने लगी।

जाहिर है कि बच्ची का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया होगा। लेकिन नन्हीं सी जान आखिर करती भी तो क्या। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह अब क्या  करे। अचानक उसकी समझ में आ गया। उसने अचानक उसने जुल्फी पर पेशाब कर के अपने गुस्से का इजहार कर दिया। अब कोई दीगर शख्स होता तो जुल्फी उसे हवालात के सिपुर्द कर देते, उसकी रिपोर्ट दर्ज करा दे, जूते मार कर दिमाग दुरूस्त करने की धमकी दे देते। उसे पागलखाने भिजवा देते, उसके नारी निकेतन भिजवाने की कवायद छेड़ देते। उसकी जिन्द‍गी खराब करने की धमकियां दे देते। लेकिन उस नवजात बच्ची का क्या करते। नतीजा, खिसियाये हुए जुल्फी ने अपनी गोद से बच्ची को बिस्तर पर लिटा दिया और मुंह लटकाते हुए वापस लौट आये।

उधर पता चला है कि इस वापसी में जुल्फी ने एक बार भी अपनी जुल्फी नहीं झटकी, जैसे वे दिन में पचासों बार किया करते थे। बल्कि उलटे हुआ यह कि बंगले पर एक नउवा को बुलवा कर अपनी जुल्फी छंटवा दीं।

चलो, देर आयद, दुरूस्त आयद।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *