: सीधे मुख्यमंत्री ही देखते हैं सूचना विभाग का कामधाम : अदने से मुंहलगे मुलाजिम को सूचना विभाग पर थोपने पर आमादा हैं शासन के आला अफसर : सूचना विभाग को खबर ही नहीं, शासन स्तर पर हो गया फैसला : शीर्ष पद पर आसीन कर दिया एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी को : बहुत भड़के हैं सूचना विभाग के लोग :
कुमार सौवीर
लखनऊ : उप्र सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग। मुख्यमंत्री ही इस महकमे के मालिक हैं। चूंकि यह सरकार की नीतियों को आम आदमी तक प्रचारित और प्रसारित करने का इकलौती विभाग सूचना विभाग ही है, और पत्रकारों से इसका सीधा सम्पर्क होता है, इसलिए इस विभाग को सरकार की नाक माना जाता है। लेकिन इस दौरान सूचना विभाग अब संकट में है। वजह यह कि शासन ने इस विभाग के एक बड़े अहम पद को सीधे उस शख्स को थमा दिया, जो तृतीय श्रेणी दैनिक वेतन भोगी संविदा के तौर पर विभाग में आया था। जाहिर है कि अब विभाग में हंगामा खड़ा हो चुका है।
मामला है दिवाकर खरे को लेकर। दिवाकर को मुख्य सचिव आलोक रंजन का सीधा मुंहलगा माना जाता है। सन-1997 में एक टाइपिस्ट का जिम्मा देने के लिए तब के संयुक्त निदेशक केके राय ने सजातीय होने के आधार पर खरे को दैनिक वेतन भोगी के तौर पर तैनात कर दिया था। दो साल बाद ही खरे को संविदा के तौर पर सहायक सूचना अधिकारी के तृतीय श्रेणी कर्मचारी के तौर पर तैनात कर दिया। बाद में खरे ने कभी भी पलट कर नहीं देखा। सफलता की हर सीढ़ी चढ़ी।
ताजा डेवलपमेंट यह है कि शासन ने फैसला किया है कि खरे को संयुक्त निदेशक के एक एक्स-कैडर पद वेतनमान सहित सीधे पोस्ट किया जाए। हैरत की बात है कि इस नियुक्ति के लिए शासन ने सूचना विभाग से पूछने तक की जरूरत नहीं समझी कि विभाग में इस नियुक्ति की आवश्यकता है भी अथवा नहीं। इतना ही नहीं, सूचना विभाग को इस बात की भनक तक नहीं दी गयी कि ऐसी किसी नियुक्ति विभाग में होने जा रही है। जो कुछ भी हुआ, शासन के स्तर पर सीधे शासन ने ही किया। इसके लिए पूरी गोपनीयता ही बनाये रखी गयी।
जानकार बताते हैं कि इस गुपचुप साजिश में मुख्य सचिव कार्यालय की भूमिका बेहद संदिग्ध और बेहद आपत्तिजनक रही। सूचना विभाग सूत्रों का कहना है कि दिवाकर की नियुक्ति के लिए मुख्यसचिव कार्यालय ने सीधे संकेत दिये और उसके बाद से ही बिना किसी भूमिका के ही इस नियुक्ति के लिए शासन ने पत्रावली तैयार करना शुरू कर दिया। हैरत की बात है कि बिना किसी आवश्यकता या किसी सन्दर्भ के ही शासन ने न केवल इस मामले की फाइल तैयार कर ली, बल्कि शासन के कार्मिक और वित्त विभाग के प्रमुख सचिवों की संस्तुति और सहमति-मंजूरी भी जारी कर दी।
सूचना विभाग में इस कवायद की खबर लगते ही हंगामा खड़ा हो गया है। उनका कहना है कि यह नियुक्ति से पूरे विभाग का ढांचा ही ध्वस्त हो जाएगा। और जिन शर्तों और आधारों पर यह नियुक्ति की जा रही है, उससे तो अगले 16 बरसों तक कोई भी दूसरा अपर निदेशक का पदस्थापन नहीं हो पायेगा।