बनारस में मौत का ताण्‍डव: हत्‍यारे को पहचाने में कोई इच्‍छुक नहीं

सैड सांग

: असल अपराधी तो प्रशासन और पुलिस के आला अफसर हैं, हिम्‍मत हो तो उन पर कार्रवाई करो : आम आदमी को मूर्ख बनाने के लिए अफसर भी उल्‍टा-पुल्‍टा बोलने पर आमादा : सवाल यह है कि इस हादसे की जिम्‍मेदारी किसे पर थोपा जाए : निहायत बेशर्म बयान है बनारस व चंदौली के डीएम का :

कुमार सौवीर

लखनऊ : इसमें दिमाग केवल इस सम्‍प्रदाय के शातिर मुखियाओं का चल रहा था, जबकि प्रशासन केवल जय गुरूदेव सम्‍प्रदाय के श्रद्धालु अनुयाइयों की भूमिका की तरह व्‍यवहार कर रहा था। आम आदमी के जीने, मरने या फिर उन्‍हें सत्‍य व सदाचार का मार्ग दिखाना तो केवल एक पाखण्‍ड था, असल बात तो यह थी कि यह सम्‍प्रदाय इस समागम के बहाने अपनी ताकत को और भी मजबूत करना चाहता था, जयगुरूदेव बाबा की मौत के बाद पंकज यादव को इस सम्‍प्रदाय की सहमति जुटाने के लिए पूरी कवायद की जा रही थी। जाहिर है कि बिना झूठ बोले कोई रास्‍ता ही नहीं था। उधर प्रशासन तो पहले ही इस सम्‍प्रदाय और उसके मठाधीश के सामने साष्‍टांग लेट चुका था, ऐसे में कोई शक की बात नहीं कि सम्‍प्रदाय और प्रशासन-पुलिस ने ही जानबूझ कर सारी प्रशासनिक तैयारियों को केवल औपचारिकताओं तक ही समेट दिया हो।

नतीजा, यह हादसा हो गया, जिसमें अब तक 25 लोगों की मौत हो चुकी है। बुरी तरह कुचल चुकी इन लाशों में 18 से ज्‍यादा की तादात महिलाओं की है। जबकि एक अन्‍य सूत्र के अनुसार इस हादसे में मरने वालों की निरपराध लोगों में अब तक 35 जानें जा चुकी हैं, लेकिन प्रशासन अब तक उस बारे में लगातार चुप्‍पी ही साधे हुए हैं।

उधर अब देखना यह है कि वाराणसी का प्रशासन इस हादसे के लिए किसे जिम्‍मेदार ठहरायेगा। छुटभैया अफसरों की गर्दनें तराश देने के बाद अब नहीं लगता है कि अखिलेश सरकार इस मामले में किसी गहरे सच तक पहुंचने की कोशिश करेगी। वजह यह है कि वाराणसी ही नहीं, प्रदेश में प्रशासन के नाम पर चल रहे प्रशासनिक लूट और मनमर्जी, और उस पर सरकारी प्रश्रय के तौर-तरीकों से सच साबित होता है कि सरकार इस मामले पर केवल मिट्टी ही डालेगी।

बीते शनिवार को राजघाट पुल पर पदयात्रा के दौरान भगदड़ में 25 लोगों की मौत हो गई। हादसे के बाद वाराणसी और चंदौली के अलावा लखनऊ तक के अधिकारी कांप गए। आनन फानन में अधिकारियों की फौज दौड़ने लगी। यहां तक कि देर शाम को एडीजी लॉ एंड आर्डर दलजीत चौधरी के साथ आश्रम के पदाधिकारियों की बैठक में सत्संग व सारे कार्यक्रम स्थगित करने का निर्णय लिया गया था। लेकिन इसके बाद भी रविवार को ढ़ाई घंटे तक सत्संग चला।

इस बारे में एक दिन पहले ही कार्यक्रम स्थगित करने वाला बयान देने वाले कार्यक्रम प्रवक्ता बाबू राम ने पूछे जाने पर सब बाबा की लीला बताते हुए कन्नी काट लिया। उन्होंने कहा कि दूर-दूर से भक्त आए हैं। ऐसे में सत्संग करना अनिवार्य हो गया। उधर, वाराणसी डीएम विजय किरण और डीएम चंदौली कुमार प्रशांत ने पूछे जाने पर कहा कि हजारों अनुयायियों की भावना को देखते हुए सत्संग को रोका नहीं जा सका। हालांकि दोपहर 12 बजे तक सारे कार्यक्रम समाप्त करने का समय दी गई।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कल वाराणसी में हुई भगदड़ की घटना को गम्भीरता से लेते हुए वाराणसी के अपर जिलाधिकारी (नगर) श्री विन्ध्यवासिनी राय और सिटी मजिस्ट्रेट श्री विजय बहादुर सिंह को तत्काल प्रभाव से निलम्बित करने के निर्देश दिए हैं। यह जानकारी आज यहां राज्य सरकार के प्रवक्ता ने देते हुए बताया कि 15 अक्टूबर, 2016 (शनिवार) को जनपद वाराणसी में भारी संख्या में आयी भीड़ का आंकलन एवं समुचित प्रबन्धन न किए जाने, भीड़ को नियंत्रित न करने, शान्ति व्यवस्था बनाए रखने हेतु आवश्यक कार्यवाही न करने एवं पद के कर्तव्यों व दायित्वों के प्रति घोर लापरवाही बरतने के आरोप में मुख्यमंत्री के निर्देशों के क्रम में इन अधिकारियों को निलम्बित कर दिया गया है।

लेकिन असल सवाल तो यह है कि इस पूरे हत्‍याकाण्‍ड की रोकथाम तक सोच-खोज कर पाने की हैसियत करने वाले कमिश्‍नर, आईजी, डीआईजी और डीएम पर यह कार्रवाई  कयों नहीं की गयी। जबकि असल जिम्‍मेदारी तो इन्‍हीं लोगों पर थी। जिन छिटभइया लोगों को सस्‍पेंड किया गया है, वह तो केवल आला अफसरों के मुंहताज होते हैं। केवल हुक्‍म का पालन करना ही उनका जिम्‍मा होता है। ऐसे में साफ है कि अब कार्रवाई की नौटंकी अब खात्‍मे तक पहुंच चुकी है। और फिर जाहिर है कि आइंदा में ऐसे हादसों को शायद कभी भी नहीं टाला जा सकेगा।

अगर ऐसा हुआ तो फिर भविष्‍य वाकई बेहद शर्मनाक और भयावह होगा।

जयगुरूदेव सम्‍प्रदाय के आयोजन में वाराणसी में हुए हादसे की खबरें देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए: काशी में मृत्‍यु-नृत्‍य

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