: सवाल यह है कि आखिर ऐसे हादसे क्यों होते हैं : हम अपराधियों की हरकतों के खिलाफ युद्ध करें, उनके धंधे से भागीदारी क्यों : अगर-मगर बाद में, पहले तो यह देखिये कि आप कितने पानी में हैं : अखबारों के मालिकों की करतूतें तो अपनी जगह हैं, पर हम उससे बरी नहीं हो सकते : पत्रकार जी, झांकिये अपना गिरहबान- एक :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह कोई 13 साल पहले का हादसा है। मैं जौनपुर में हिन्दुस्तान अखबार का ब्यूरो प्रमुख था। खबर को लेकर दो बार मेरी मुठभेड़ मुख्तार अंसारी से हो गयी। एक बार एक ट्रैक्टर व्यवसायी आईबी सिंह के घर और दूसरी बार मोहम्मद हसन कालेज के प्रिंसिपल के यहां। तब मुख्तार अंसारी समाजवादी पार्टी के चहेते हुए करते थे। दोनों ही बार आयोजको ने मुख्तार से मेरा परिचय कराया और मैंने सवाल पूछने शुरू किये।
मुख्तार के आसपास करीब दो दर्जन राइफलधारी अंगरक्षक थे, जो मुख्तार की भृकुटि देखते ही अपने असलहे इस अंदाज में चमकाते थे कि अब बस गोली मार ही देंगे। लेकिन मैं बेफिक्र था। आखिरकार बार मुख्तार ने दोनों ही बार मुझे मेरे सवालों का जवाब देने के बजाय अपने पैर पर पैर चढ़ाते हुए लुंगी सम्भाली और केवल इतना कहा:- तुम्हरी तौ हम कौउनो बात के जवाबै नाय देबै, जावौ।
दूसरा प्रकरण। पूर्वांचल का दुर्दांत भगोड़ा हत्यारा था परशुराम यादव उर्फ परसू यादव। कई हत्याओं में वांछित था, एक बार मैंने अदालत के एक वारंट पर खबर लिख डाली कि:- दुर्दान्त हत्यारे परसू का हालपता ललई यादव राज्यमंत्री का सरकारी आवास।
इस पर खूब मचा हंगामा। मेरे खिलाफ मानहानि की नोटिसें भी आयीं। मुझे डराया भी गया कि परसू से भिड़ना खतरनाक है। यह भय तब भी दिखाया गया जब मैंने मुख्तार से सवाल पूछे थे। तब भी बवाल हुआ था जब मैंने कल्पू हत्याकांड पर बड़े नेताओं के खुलासे किया थे। तब भी मुझे डराया गया था, जब मैंने धनन्जय सिंह पर लिखना शुरू किया था। आज भी मुझे इशारा किया जा रहा है कि मैं कुकुर्मों के आरोपी स्वामी चिन्मयानन्द पर लिख रहा हूं। तब भी डराया गया था, जब मैं शाहजहांपुर वाले जागेंद्र सिंह हत्याकांड पर प्रदेश सरकार के मंत्री राम सिंह वर्मा को सीधे-सीधे जागेंद्र की हत्या का षडयंत्र करने वाला करार दे दिया था।
इसके और पहले भी मुझे डराया गया। लेकिन मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि वह मेरा निजी काम नहीं था। वह मेरा व्यावसायिक दायित्व था। अपराधियों और बेईमानों के साथ मेरे घनिष्ठ रिश्ते हैं और हमेशा रहेंगे। लेकिन वह रिश्ते उनकी करतूतों के खिलाफ युद्ध के होंगे। न कि मैंने उनके पाप-कर्मों के साथ कोई रिश्ते रखूंगा। हमारे दोस्ती उनसे जुड़ी खबरों को लेकर रहेगी, उन व्यक्तियों की करतूतों से हर्गिज नहीं।
मैं रूबा अंसारी का शुक्रगुजार हूं इस स्केच के लिए। मैं नहीं जानता कि यह किसका कमाल है, लेकिन चूंकि यह रूबा की वाल पर मुझे मिला, सो थैंक्स का टोकरा रूबा को। ( क्रमश:)
सीवान और चतरा में पत्रकारों की हत्या से मैं बेहद आहत हूं। लेकिन अब पत्रकारों को भी अपना गिरहबान जरूर झांकना पड़ेगा।
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आइये, अब अपने गिरहबान में भी झांक कर खोजिये पत्रकारों की हत्या के कारण