हकीकत यही है कि इशरत-जहां आत्‍मघाती दस्‍तावर थी। जिसे कांग्रेस ने छिपाया, भाजपा ने बेचा

सक्सेस सांग

: अफसरों की कमीनगी देखना हो तो आइये, तालियां बजाइये : एक ने अडानी-समूह से मोटी रकम पेली, बीसी ने केवल दोना-पत्‍तल चाटा : मुझे तो सिर्फ ऐसे कमीने घटिया अफसरों को गरियाना है, पिल्‍लों को नहीं : दिल्‍ली में पिल्‍लई और जौनपुर में हैं बीसी गोस्‍वामी। पर करम एक जैसे : पिल्‍लई ने देश की अस्मिता बेचने का सौदा किया, बीसी ने मासूम बच्‍ची को :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अगर आपको अफसरशाही की कमीनगी का अंदाज़ लगाना हो तो पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह और देश के पूर्व गृह सचिव रहे जीके पिल्लई का काला चेहरा देख लीजिये। आज प्रकाश सिंह ने इशरत जहाँ के लश्कर-ए-तैयबा के हिन्दुस्तानी आत्मघाती दस्ते में शामिल होने की खबर की पुष्टि करते हुए उन आरोपों को प्रमाणित कर दिया है कि कांग्रेस-यूपीए सरकार ने इशरत जहाँ की हकीकत को छुपा लिया था। जाहिर है कि पिल्लई का कहना है कि कांग्रेस-यूपीए सरकार ने इस हकीकत को छिपा लिया क्योंकि इस असलियत को छिपाना उस सरकार की अपनी मुस्लिम-परास्त नीतियों की मजबूरी थी। उस सरकार की खाद-पानी मुस्लिम-परस्ती ही तो थी। उसके बिना वह सरकार निर्वीर्य ही थी।

ख़ैर, अब जान लीजिये कि पिल्लई ने ऐसा सच क्यों उगला। यानी उस घटना के 14 साल बाद। यही सच आज के पहले पहले क्यों नहीं बोले पिल्लई? इसलिए कि उस वक्त पिल्लई अपनी सरकारी चाटुकारिता की कीमत उस सरकार से वसूल रहे थे। इस लिए खामोश रहे। यह जानते हुए भी कि इशरत जहाँ लश्कर की आत्मघाती कार्यकर्ता थी। आईबी को यह पुख्ता खबर थी इस बारे में, जो पिछले हेडली ने अदालत में साफ़-साफ़ क़ुबूल दिया। मगर पिल्लई ने उस हकीकत को फाइलों से फाड़ कर जला दिया, क्योंकि उस सरकार  ऐसा ही चाहते थे।

लेकिन फिर अचानक आज पिल्लई सच कुबूलने पर क्यों आमादा हो गए? क्या उनकी अन्तरात्मा ने उन्हें मजबूर कर दिया?

नहीं, हरगिज नहीं। पिल्लई का आज का यह कुबूलनामा इस लिए सामने आया है कि अडानी समूह के निदेशक बोर्ड में एक सदस्य एक शख्स को ऐसा सच कुबूलने का हुक्म मिला है। और कहने की जरूरत नहीं है कि अडानी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स का यह अहम् सदस्य है, वह वही पिल्लई। जी हाँ, जी के पिल्लई।

अब अगली बात देखिये। पिल्लई के इस कुबूलनामे के फ़ौरन बाद यूपी के पूर्व डीजीपी रहे प्रकाश सिंह ने पिल्लई की जमकर पीठ ठोकी और बधाइयाँ उनके सोशल साइट्स पर बरस दिया। जानते हैं कि क्यों? इसलिए, क्योंकि हरियाणा के जाट आंदोलन में अफसरों की हरकतों की जांच के लिए एक आयोग के अध्यक्ष बना दिए गए हैं यह पद्मश्री प्रकासब सिंह। पिछले लंबे समय से खाली हो बैठे थे प्रकाश सिंह। अचानक आज यह नया काम मिल गया तो लगे भाजपा-अमृत को धकाधक गटकने। वर्ना यह वही प्रकाश सिंह हैं, जो 25 साल पहले भाजपा की कल्याण सिंह सरकार में मुख्यमंत्री-सचिव के पद पर तब तक के सर्वाधिक निष्कलंक और निहायत कर्तव्यनिष्ठ-ईमानदार रहे नृपेंद्र मिश्र के खिलाफ हजरतगंज कोतवाली में आपराधिक मुक़दमा दर्ज करने पहुंचे थे, जो कि बाद में  बिलकुल फर्जी होने के चलते खारिज हो गया। वह तो वो नृपेंद्र मिश्र थे, जो खामोश रहे। वरना प्रकाश सिंह आज भी जेल में ही चक्की चलते दिकब जाते।

अब यह जान लीजिये कि पिल्लई का यह बयान सच को उलझाने के लिए कुख्यात अफसरशाही के घिनौने चरित्र का परिचायक है। इस समय वह पिल्लई अडानी की रोटी तोड़ रहे हैं, लेकिन इस साजिश में बाद में कहीं न फंस जाए, इसके लिए वो लगातार उलझाऊ और वानरी उछलकूद में भी व्यस्त हैं।

आपको बता दूं, कि हाल ही जौनपुर के डीएम बीके, यानी भानुचंद्र गोस्वामी और एसपी यादव ने एक गैंगरेप पीड़ित मासूम बच्ची की अस्मिता का बेहद जुल्फी-नुमा घिनौना सौदा कर डाला। बीके गोस्वामी और यादव तो बहुत नमूने-जमूरे हैं। अखंड प्रताप सिंह, नीरा यादव, राजीव कुमार, प्रदीप शुक्ल, अभय बाजपेई जैसे कलंक आज भी इस अफसरशाही के बेहद बदबूदार कीड़े के तौर पर मौजूद हैं।

ख़ैर, आइये, ऐसे नमूनों की जमकर भर्त्सना की जाए, लानत भेजी जाए।

(मुझे हर्ष है कि मेरे चड्ढी नहीं, लंगोटिया, लेकिन, देश के एक बड़े पत्रकार शीतल सिंह ने अफसरशाहों की इस हकीकत का पर्दाफाश किया कि पिल्लई जैसे लोग अडानी-समूह के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर के एक बड़े ओहदेदार हैं, और सरकार चाहे किसी की भी हो, मोटी रकम चाटने का आदी है। कुत्‍ता-सियार जैसी प्रवृत्ति वाले कुत्‍ते-नुमा लाेग उनके सामने बहुत पीछे होते हैं। )

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