संपादक ने उवाच मारा: चूतियापंथी है कोर्ट-कचेहरी

सैड सांग

: न सुबूत, न गवाह, न वकील, और न मुंसिफ। बस नवभारत टाइम्स जो लिखे वही है पत्‍थर की लकीर : किस आधार पर यह छाप दिया गया कि ब्राइटलैंड स्कूल में हुई हादसे की छात्रा ही असल अपराधी है : बाल-व्‍यवहार का किंचित ज्ञान नहीं, बड़का पत्रकार बने घूम रहे हैं नवभारत टाइम्‍स के पत्रकार : ब्राइटलैंड स्‍कूल-कांड- तीन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : भाड़ में जाए वकील, और ठेंगे में जाए जज लोग। जब बड़े दिग्‍गज पत्रकार लोग मौजूद हैं, तो ऐसे लोगों की क्‍या जरूरत। नवभारत टाइम्स के पत्रकारों ने ब्राइटलैंड स्‍कूल के मामले में एक बच्ची को न केवल चिन्हित कर लिया है, बल्कि उसे हत्या की अपराधी भी करार दे दिया है। नवभारत टाइम्स ने अपने अखबार में लिख मारा है कि पहले भी दो बार घर से भाग चुकी है कक्षा-एक के छात्र पर चाकू से हमला करने वाली छात्रा। यानी इसके बाद सारी चर्चा और बहस-मुबाहिसा की कोई गुंजाइश ही नहीं है।

जी हां, यह चेहरा है नवभारत टाइम्स अखबार का, जो खुद में संवेदनशीलता का समंदर का भ्रम पाले है। हैरत की बात है कि अपनी आदत-शैली के तहत इस मामले में पुलिस ने कोई गहरी छानबीन नहीं की है। उधर नवभारत टाइम्‍स के इस पत्रकार ने भी यह पूरी खबर पुलिस के सूत्रों पर ही टिका लिया है। खबर में इस रिपोर्टर ने किसी संबंधित व्यक्ति का कोई भी वर्जन नहीं लिया है। केवल हियर एंड से पर यह खबर लिखी गई है। यह सोचने तक की जरूरत नहीं समझी गई है कि इस खबर का क्या असर पड़ेगा उस बच्ची पर, उस बच्ची के परिवार पर, या उसके मोहल्ले या समाज के आसपास पर। क्या सोचेंगे लोग इस खबर को पढ़ कर।

आखिर किस आधार पर यह खबर लिखी गई कि इस बच्ची का इतिहास दो बार घर से भागने का है। घर भागने का तर्क इस स्कूल के हादसे से कैसे जुड़ रहा है, भगवान जाने। हैरत की बात है कि केस खबर को लिखने वाले रिपोर्टर को लिखने तक की तमीज नहीं जाहिर हो पा रहा है।

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जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि घर छोड़कर भागने वाला कोई भी मासूम बच्चा, भले ही अपने परिवार के खिलाफ झंडा फहराते हुए घर से भाग जाता है लेकिन कभी भी समाज के खिलाफ उसके मन में कोई आक्रोश नहीं होता है। ऐसा बच्चा मूलतः एक सरल निष्पाप स्वच्छ और दैवीय भाव समेटे होता है। कहने की जरूरत नहीं कि हम ऐसे बच्चे को किसी देवी-देवता के अंश से कम नहीं मानते हैं। कभी भी नहीं।

लेकिन ब्राइटलैंड स्‍कूल-कांड को लेकर लखनऊ की पत्रकारिता ने एक मासूम बच्चे के माथे पर हमेशा-हमेशा के लिए एक आपराधिक मोहर ठोंक दी है। लखनऊ के पत्रकारों ने साबित कर दिया है कि लखनऊ के ब्राइटलैंड स्कूल में पढ़ने वाली कक्षा 6 की बच्ची कोई मासूम बच्ची नहीं, बल्कि 12-13 बरस की हत्यारिन है। ऐसी हत्यारी, जो 7 बरस के बच्चे की हत्या की कोशिश तक कर सकती है।

पत्रकार की भूमिका क्या होती है, इस अखबार ने जूतों से कुचल दिया है। जरा अखबारों में छपी अखबारों की हेडिंग पर नजारा देखने का कष्‍ट उठाइये, और देखिए कि पहली के छात्र रितिक पर हमला करने वाले के संदेह में हिरासत में ली गई छात्रा स्वभाव से सामान्य नहीं है। अब जरा पूछो इस पत्रकार से, कि स्वभाव से सामान्य दिखने वाली बच्ची और असामान्य होने वाली बच्ची का ऐलान इस पत्रकार ने कैसे किया। किन-किन तर्कों के आधार पर पत्रकार ने यह ऐलान कर दिया कि यह बच्ची ही हमलावर है। केवल सुनी-कहीं बातचीत के आधार पर इस पत्रकार ने लिखा है कि छोटी बहन व परिवार के अन्य सदस्यों का स्वभाव सामान्य है। अच्छा आप यह बताइए पत्रकार जी, कि असामान्य और सामान्य के बीच इस परिवार को आपने कैसे खोजा। हकीकत यह है कि इस पत्रकार को उस छात्रा के घर के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। इतना ही नहीं, वह कभी उस बच्ची के घर नहीं गया। यानी यह सारा ही अरेंज-मैनेज्‍ड स्टोरी भर है।

यह काबिल पत्रकार लिख रहा है कि ब्लू व्हेल गेम की आशंका भी इस मामले में है। इस बच्ची के बारे में पत्रकार का कहना है उस छात्रा के शरीर पर कट के निशान मिले हैं, ऐसे में ब्लू व्हेल गेम की चपेट में आने की आशंका है। लेकिन इस पत्रकार को यही पता नहीं है कि ब्लू व्हेल में जूझ रहे बच्चे आत्मघाती होते हैं, हमलावर नहीं। ऐसे बच्चों में आत्महत्या की जबरदस्त आदत हो जाती है। एक जुनून हावी हो जाता है, जो आत्‍महन्‍ता भाव ही भड़काता है, आत्‍महत्‍या नहीं। पीडि़त व्‍यक्ति कभी भी हमलावर भाव नहीं भड़का सकता। वह तिल-तिल कर मौत के करीब आता जाता रहता है।

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सच बात तो यह है यह पूरी खबर लखनऊ की पुलिस-टीम की बुकिंग पर लिखी गई है। लेकिन इस पत्रकार ने यह भी लिख दिया है कि इस पूरे मामले में काउंसलिंग कर रही टीम के सदस्यों ने ब्लू व्हेल गेम खेलने की आशंका से इनकार किया है। पत्रकार के अनुसार टीम के अनुसार पूरा परिवार एक कमरे में मकान में रह रहा है और स्मार्टफोन भी इस घर में नहीं है। यह भी पता चला है कि घर में एक लैपटॉप जरूर है, लेकिन वह बेहद पुरानी मॉडल का है। और करीब साल भर से खराब बंद है।

अंत में सच यही है कि इस खबर में पुलिस के उच्‍चाधिकारियों की शह में बिल्कुल पुलिसिया अंदाज में यह खबर लिखी गई है। जैसा पुलिस ने अपना पिंड छुड़ाने के लिए बोल दिया, इस पत्रकार ने जस का तस सांप मारा है।

लखनऊ के ब्राइटलैंड स्‍कूल में पिछले तीन दिनों से जो हंगामा बरपा है, वह हमारी लुटेरी शिक्षा प्रणाली, अशक्‍त अभिभावक, गैरजिम्‍मेदार पुलिस, नाकारा प्रशासन, नपुंसक राजनीति और बकवास प्रेस-पत्रकारिता के बीच पिसते निरीह बच्‍चों के टूटते सपनों के बदतरीन माहौल का बेहद घिनौना चेहरा ही है। प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने इस मसले को गम्‍भीर विचार-विमर्श के बाद उसे कई कडि़यों में पिरो कर किसी फैसलाकुन नतीजे तक पहुंचाने की कोशिश की है। क्‍योंकि घर से भागा बच्‍चा अपराधी नहीं, जुझारू बनता है इसकी बाकी कडि़यों को बांचने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

बाल-हृदय की गहराइयां

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