संपादक के सामने जानवरों की तरह पीटा गया अमर उजाला का ड्राइवर

सैड सांग

: गोरखपुर संस्करण में अखबार को देवरिया तक ले जाने वाले ड्राइवर को तनिक सी बात पर लाठियों भरी प्रेस में पीटा गया : सीसीटीवी में दर्ज हुई दहशतनाक वारदात, शिकायत दिल्‍ली तक हुई : पिटाई के दौरान संपादक और प्रोडक्शन मैनेजर भी मौजूद थे, और गाड़ी मैनेजर लाठियां भांजता रहा, रूपये भी छीन लिया :

कुमार सौवीर

गोरखपुर : कहने को तो यह एक छोटी सी कहानी है, लेकिन अगर मानवता के स्‍तर पर देखी-परखी जाए तो शायद इससे बड़ी मार्मिक दास्‍तान शायद ही कोई हो। यह इतनी मार्मिक घटना है कि किसी के भी आंखों से आंसू टपका सकती है। हैरत की बात है यह घटना सच कहानी है, और इस लिए ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है क्योंकि यह उस संस्थान से जुड़ा हुआ है जो खासतौर से आम आदमी की पीड़ा को समझने और समझाने वाले संस्थान यानी अखबार से सम्‍बन्धित है। उसमें भी तुर्रा यह कि यह उस संस्थान का मामला है जहां अखबार में कर्मचारी या उससे जुड़े लोगों  के बीच के रिश्‍ते केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि एक मार्मिक पारिवारिक रिश्ता बनाने का दावा किया जाता है।

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लेकिन पहले यह ताजा किस्‍सा सुन लीजिए।  बीती रात यहां के अमरउजाला में संपादक और प्रोडक्सन मैनेजर की मौजूदगी में गाड़ियों के इंचार्ज रमेश वा उनके साथियों ने दफ्तर में देवरिया जाने वाली गाड़ी के चालक को बंधक बनाया और उसे लाठी-डंडों से जमकर पीटा। मां, बहन और बेटी की गालियां दी गयीं, कपड़े फाड़ दिये गये ओर  चालक की जेब की तलाशी लेकर रुपये भी छीन लिए। सूत्र बताते हैं कि इस हादसे की पूरी रेकार्डिंग दफ्तर में लगे सीसीटीवी में मौजूद है। चालक की गलती इतनी थी गाड़ी बैक करते समय किसी की मोटरसाइकिल में टच हो गई थी। इससे अन्य गाड़ी चालक भयभीत हैं। सीसीटीवी में दर्ज हो चुकी है यह दहशतनाक वारदात। इस हादसे की शिकायत दिल्‍ली तक पहुंचा दी गयी बतायी जाती है।

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अब जरा इसका दूसरा पहलू भी सुन लीजिए। यह घटना कई बरस पहले की है, जब अमर उजाला के एक प्रकाशन केंद्र में प्रभारी हुआ करते थे हमारे एक मित्र। मैं अपने निजी काम से वहां गया था। सोचा कि उनसे भी भेंट कर लूं। वे बहुत परेशान थे उस समय। मैं दफ्तर लोगों से मिलने लगा, कई लोग परिचित थे ही। दफ्तर के बाहर ही चाय पीते वक्‍त मैंने उनकी परेशानी का जिक्र किया तो पता कि माजरा बेहद गम्‍भीर है।

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पता चला कि तीन दिन पहले ही उनकी गाड़ी से अखबार ले जाने वाले वाहन से भिड़ गयी थी। यह घटना प्रेस के गेट पर ही हुई थी। उन्‍हें खबर मिली, तो वह मौके पर गए और उस ड्राइवर को कई तमाचे मार दिये। दो दिन के भीतर ही यह मामला राजुल महेश्‍वरी तक पहुंच गया। राजुल ने इस मसले पर संज्ञान लिया, और हमारे मित्र को जमकर डांट पिलाई। उसका कहना था कि हम अमर उजाला को परिवार के तौर पर विकसित करना चाहते हैं, लेकिन इस तरह की हरकतें परिवार की अवधारणा के सर्वथा प्रतिकूल होंगी। खैर, मेरे मित्र को बात समझ में आ गयी, और उस ड्राइवर को बुला कर सार्वजनिक रूप से क्षमायाचना कर ली।

अब देखना है कि गोरखपुर के सम्‍पादक जी इस मामले में क्‍या कदम उठाते हैं।

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