पति हो तो क्‍या? पायरिया का इलाज कराओ, या तलाक

सैड सांग

: जरा उन महिलाओं की बदहाली के बारे में सोचिये तो आपका दिल-दिमाग हिल जाए, जिनके पति पायरिया से पीडि़त हैं : अगर मैं अपने मित्र की ब्‍याहता होती तो, पहली ही रात केवल यही लानत-मलामत करती कि जब मुंह इलाज की तमीज नहीं है, तो शादी काहे कर लिया बे : महिलाएं कितना बर्दाश्‍त करती हैं पायरिया से सड़ते मुंह को :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मेरा एक मित्र है। घनिष्‍ठ। पत्रकार है वह। हम दोनों एक-दूसरे को बहुत बरसों से बहुत करीबी में देखते-समझते रहे हैं। निजी रिश्‍ते बेहिसाब मजबूत हैं।

खैर, मेरे मित्र को पायरिया की शिकायत है। जब वह हमारे साथ लखनऊ में दैनिक जागरण में काम करता था, तो हल्‍की बदबू आया करती थी उसके बोलने पर। लेकिन छह महीने बाद ही यह बदबू तेज ही होती रही। यह करीब 28 साल पहले की बात है। बाद में वह परदेस चला गया, सपरिवार। बीच-बीच में जब भी उससे मेरी मुलाकात हुई तो भी उसकी पायरिया वाली गन्‍दी महक बदस्‍तूर महसूस की। लेकिन पिछले पखवाडा जब वह लखनऊ आया तो उसके गले मिलते ही मुझे उसके मुंह से भयंकर बदबू लगी।

मैंने छिटक कर दूसरी कुर्सी पर बैठा और सवाल उछाला:- अरे यार, दूर रहो मुझसे। कित्‍ती बदबू आती है तुम्‍हारे मुंह से। तुम अपने मुंह का इलाज क्‍यों नहीं कराते हो ?

हैरान मित्र का जवाब आया:- नहीं यार, तुम्‍हें भ्रम होगा। मुझे तो ऐसी कोई दिक्‍कत नहीं है।

मैं बोला:- बिस्‍तुइया इस बारे में तुमसे शिकायत नहीं करती है ? ( बिस्‍तुइया, यानी उसकी बीवी। मैं उसे मारे स्‍नेह के बिस्‍तुइया पुकारता हूं। मतलब छिपकली। बहुत स्‍नेह से मैं कभी उसे बिस्‍तुइया कहता हूं, तो कभी घरैतिन कह कर पुकारता हूं। दुबली-पतली-इकहरी है वह। फूंक मार दो, अलगनी में फैले पेटीकोट की तरह उसका पूरा अस्तित्‍व फड़फड़ा जाए।

न न, बिलकुल नहीं। कभी भी नहीं। :- मित्र का जवाब था

यह सुनते ही मैंने अपनी एक टांग उठायी, अपना जूता निकाला, जूता हाथ में पकड़ा और फिर उसके बाद वही जूता दिखाते हुए उससे कहा:- अबे साले, आज तो सिर्फ जूता दिखा रहा हूं। अगली बार अगर तूने अपने पायरिया का इलाज नहीं कराया तो, यही जूता तुम्‍हारे सिर पर रसीद कर दूंगा। मारूंगा सौ, गिनूंगा एक। और अगर भूला तो फिर से गिनती शुरू करूंगा। उल्‍लू का पट्ठा कहीं का।

( मैंने उसे जमकर गरियाया। लेकिन हैरत की बात है मित्रों ! महिलाएं कितना बर्दाश्‍त करती हैं पायरिया से सड़ते मुंह को। वह भी तब, जब वे अंतरंग क्षणों में हों। और आश्‍चर्य की बात है कि उफ तक नहीं करती हैं। दर्दनाक बलात्‍कार से भी ज्‍यादा क्रूर। हर दिन, रोजाना। मैं अगर महिला होती, तो पहली ही रात तो सारे कार्यक्रम कैंसिल कर पहले लानत-मलामत करती कि जब तुम्‍हें अपने मुंह की तमीज नहीं है, तो शादी काहे कर लिया था बे? उसके अगले ही दिन अपने साथ लेकर उसे अस्‍पताल ले चलती। अल्‍टीमेटम दे देती कि अगर हफ्ते तक मामला नहीं सुधरा, तो जिम्‍मेदार तुम होगे, और मैं तुम्‍हारी शक्‍ल तक कभी पसंद नहीं करूंगी। तलाक की कार्रवाई शुरू कर देती।

और हां, एक सवाल मेरे उन सभी दोस्‍तों से है जो जो सिगरेट पीते हों। जरा अपनी पत्‍नी से पूछना जरूर कि तुम्‍हारे सिगरेट से गंधाये तुम्‍हारे मुंह को वो कैसे सहन कर पाती हैं? )

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