पंजीरी का खेल: नेता-अफसर जीते, बच्‍चे फेल

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: जम कर फांकी गयी दारू बेचने वाली कम्‍पनी से सरकारी स्‍कूली के बच्‍चों में बंटने वाली पौष्टिक पंजीरी : 12 हजार करोड़ की लूट, हल्‍ला खूब मचा लेकिन कार्रवाई धेला भर नहीं : मीडिया सबसे बेशर्म निकली, विवादित आनंद कुमार सिंह के तबादले पर चुप्पी :

मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता

लखनऊ : कहते हैं साहब पैसे और रसूख में बहुत दम होता है। और वास्तव में लगता है की ऐसा होता भी है। तभी तो एक ऐसी विवादित कंपनी को प्रदेश के बच्चों का पालन-पोषण करने वाला खाना बनाने की ज़िम्मेदारी दे दी गई जिसका काम दारू बेचना है। जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश में पिछ़ले दस साल से चल रहे पंजीरी वितरण खेल की। दरअसल पूरा मामला ये है की मिड-डे मील स्कीम के तहत सरकारी स्कूल में जाने वाले बच्चों को खाने के लिये पंजीरी बांटी जाती है।

पर इस पंजीरी की क्वालिटी इतनी घटिया होती है की बच्चे इसे खाना नही पसंद करते और खुद खाने से बेहतर वो इसे पशुओं को खिलाना पसंद करते हैं। ये भी कहा जाता है की जहां ये पंजीरी इंसानों के लिये तो बेकार है परंतू जानवर इसे बड़े चाव से खाते हैं। यहां तक की गाय-भैंस को पंजीरी खिलाने पर बहुत गाढ़ा दूध मिलता है। यही कारण है की आरोप है की बच्चों के अभिभावक इस पंजीरी को दुकान पर बेच देते हैं। आंगनबाड़ी कार्यकरताओं पर तो पूरी की पूरी पंजीरी की बोरी बेचने का भी आरोप लगता है। इतने सब बवाल के बाद आज नई सरकार के आने के बाद भी पंजीरी वितरण चालू है। चुनाव से पहले तो भाजपा के नेताओं ने इस मामले पर खूब हल्ला किया परंतू अब जब तीन महिना बीत चुका है, तब भी पंजीरी का वितरण अभी भी चल रहा है। पंजीरी बनाने वाली कंपनी अभी भी वही पुरानी है। जी हां, वही कंपनी जिसका असल धंधा शराब बनाने व बेचने का है।

दरअसल कहा जा रहा है की ये पूरा नेक्सस पश्चिम यूपी की एक बड़ी कंपनी द्वारा फैलाया गया है जिसका मूल धंधा शराब बनाने का है। इस कंपनी के पास पंजीरी बनाने का काम पहली बार 2004 में आया था और तब से इस कंपनी को बिना किसी रोकटोक के लगातार पंजीरी के ठेके दिये जा रहे हैं। ये भी आरोप है की यही कंपनी बाल पुष्टाहार एवं विकास विभाग के अफसरों की  तैनाती भी मैनेज करती है। आपको जानकर हैरानी होगी की कल जिस आइएएस अफसर आनंद कुमार सिंह को इस विभाग के निदेशक के पद से हटाया गया है वो इस विभाग में बतौर पीसीएस अफसर विभाग के अपर निदेशक बनकर 2010 में मायावती सरकार के दौरान तैनात हुए थे।

2012 में सरकार बदली पर आनंद सिंह की तैनाती बरकरार रही। जनवरी 2013 में आनंद सिंह का प्रमोशन आइएएस कैडर में हो गया और उसके साथ ही उनको इसी विभाग में निदेशक पद पर तैनात कर दिया गया। तब से लेकर कल तक यानि कुल सात साल तक आनंद सिंह इसी विभाग में खेलते-कूदते रहे और कोई उनका बाल भी बांका न कर पाया। इससे उस आरोप को भी बल मिलता है जिसमें ये कहा जाता है की इस विभाग की सारी तैनातियां पंजीरी बनाने वाली कंपनी ही मैनेज करती है। क्यूंकि जिस प्रदेश में अफसर एक विभाग में एक साल तक टिककर काम करने को तरसते हों उस प्रदेश में कोई अफसर एक विभाग में लगातार सात साल काम कर ले, ये थोड़ा हैरतअंगेज़ लगता है।

बहरहाल हमारा मानना है की ये खेल केवल एक अफसर और एक कंपनी अकेले अपने दम पर नही चला सकते। इसमें कुछ अन्य आला अफसर व बड़े नेताओं जरूर शामिल रहे होंगें। एसे में योगी सरकार को इस बात की गंभीर जांच करानी चाहिये और जल्द से जल्द कोई एसी व्यवस्था लागू करनी चाहिये जिससे प्रदेश के बच्चों को पौष्टिक आहार मिल सके।

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