पद्मावत: आपत्तिजनक तो केवल पंडित है

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: चक्रेश्वर्यंबिका पद्मावती सिद्धामिकेतिच का रूपमंडन देखो, आंखें फट जाएंगी : यह देश बहु-जातीय है, ढेर सारी भाषा और विविध-परंपरा : अंग्रेजों ने डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स बनवाये थे, कस्टमरी लोकप्रथाओं के सर्वेक्षण करवाये थे, काले अंग्रेजों ने अपने को ही प्रमाण मान लिया :

राजेंद्र

पानीपत : पद्मावत देखने के बाद रात को अनुराग ने कहा:- पापाजी , इसमें तो कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है , सिवाय उस पंडित की भूमिका के ।

बात तो तेरी एक दम ठीक है और यह हिंसक-प्रदर्शन निन्दनीय भी है , किन्तु याद कर  पद्मावती ! याद कर , माँय सिराने के लिये , आषाढ़ी के दिन तू सुलखन की पूजा करने जाता है न !सुलखन पर क्या है? कुलदेवता !

ठीक यही बात है ।बात यह है पापे , यह देश बहु जातीय है , बहुत सी भाषा और विविध-परंपराओं का देश है ! अंग्रेजों ने डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स बनवाये थे , कस्टमरी लोकप्रथाओं के सर्वेक्षण करवाये थे।किन्तु इन काले अंग्रेजों ने अपने को ही प्रमाण मान लिया । लोकजीवन से दूरी बना ली । देश की जनता से नफरत करने लगे  ये तो मूर्ख हैं ।

अभिव्यक्ति उच्छृंखल नहीं हो सकती ! उसकी एक मर्यादा तो बनानी ही होगी !अन्तत: तुम समाज में रह रहे हो , बहुत बहुत बड़ा समाज , बहु सांस्कृतिक-समाज , बहुस्तरीय समाज !क्रान्ति को लेकर यार- लोग किताब लिख रहे हैं , वे यह नहीं सोच पाते कि जब तक कोई भी आधुनिक-विचार जनता के मध्य नहीं जायेगा ,तब तक किताब में से तो क्रान्ति निकल नहीं सकती ।

अब पद्मावती इन बड़े आदमियों के लिये नृत्य का विषय हो सकती है किन्तु एक बहुत बड़े समुदाय के लिये वह देवी है ।

जैन -शासन की अधिष्ठात्री पद्मावती का चित्र मैंने अनुराग को दिखाया। चक्रेश्वर्यंबिका पद्मावती सिद्धामिकेतिच रूप मंडन !

आवश्यकता लोकजीवन में उतरने की है । आप क्रान्ति की बात करिये किन्तु लोकजीवन का अंग बन कर ।

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