नि:सन्‍तान दम्‍पत्तियों का छठा हिस्‍सा अकेले भारत में

बिटिया खबर

: चिकित्‍सा ही नहीं, सामाजिक विज्ञानियों को भी चौंका देने वाली खबर : वंश क्‍लीनिक ऐंड टेस्‍ट ट्यूब बेबी सेंटर की संस्‍थापक तथा वरिष्‍ठ स्‍त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर नीलिमा से बातचीत : जरूरत यह कि हम इस मुद्दे को अपनी अनिवार्य चर्चाओं में शामिल करें :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक बड़ी खबर है। यह कि हमारे समाज में 25 साल तक के युवा भी मधुमेह के शिकार हो रहे हैं। इतना ही नहीं, महिलाओं में भी 30 साल की उम्र में ही अपनी प्रजनन की ताकत होने की घटनाएं तेजी से पनपनी जा रही है। और उससे भी ज्‍यादा खतरनाक आंकड़े तो यह हैं कि दुनिया के करीब आठ करोड़ नि:सन्‍तान दम्‍पत्तियों में से डेढ़ करोड़ से ज्‍यादा दम्‍पत्ति केवल भारत में ही हैं। यानी इस पीडि़त दम्‍पत्तियों का करीब छठा हिस्‍सा भारत में है, और यह संख्‍या लगातार भड़कती ही जा रही है। यह एक खतरनाक आंकड़ा है। चिकित्‍सा जगत के विशेषज्ञों के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक विज्ञानियों के लिए भी यह खबर चौंका देने वाली है। कहने की जरूरत नहीं कि अगर इस बारे में तत्‍काल हस्‍तक्षेप नहीं किया गया, तो यह एक भीषण सामाजिक समस्‍या के तौर पर दिखायी पड़ेगी।

लखनऊ के आलमबाग-श्रंगारनगर स्थित वंश क्‍लीनिक ऐंड टेस्‍ट ट्यूब बेबी सेंटर की संस्‍थापक तथा वरिष्‍ठ स्‍त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर नीलिमा मिश्रा का कहना है कि यह हालत लगातार तेज होती जा रही है। प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम से बातचीत में डॉक्‍टर नीलिमा मिश्रा ने बताया कि इन दिक्‍कतों का मूल कारण तो लगातार बदलती जा रही हमारी जीवन-शैली ही है। फास्ट फूड की भरमार है, जबकि सुपोषण का अकाल है। स्‍वास्‍थ्‍य जागरूकता और उससे जुड़ी सतर्कता का अभाव भी एक बड़ा कारण बन चुका है। साथ ही साथ जैविक कारण भी इस समस्‍या में बड़ा रोड़ा हैं।

डॉक्‍टर नीलिमा मिश्र बताती हैं कि अनुमानित देश में इस समय डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा लोग विवाहित जोड़े इनफर्टिलिटी के शिकार हैं, जबकि दुनिया में यह आंकड़ा आठ करोड़ तक पहुंचता जा रहा है। यानी दुनिया के परिप्रेक्ष्‍य में भारत का हिस्‍सा छठवां तक पहुंच गया है। मतलब यह कि इस बदहाली में भारत की हिस्सेदारी भयावह समस्या की ओर इशारा कर रही है। तो जरूरत इस बात की है कि हम इस समस्‍या को अपनी अनिवार्य चर्चाओं में शामिल करें, खुद भी जागरूक हों, और दूसरों को भी जागरूक करें। समस्‍या का असल समाधान तो इसी से निकल पायेगा।

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भगवान धन्‍वन्तरि

दिल्ली के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंस से एमबीबीएस और फिर स्‍त्री एवं प्रसूति रोग के विषय से एमएस करने के बाद डॉक्टर नीलम मिश्रा ने दिल्ली बंगलोर और चेन्नई समेत देश के विभिन्न बांझपन निराकरण केंद्रों पर तत्‍संबंधी विभिन्न आयाम और विषयों पर गहन प्रशिक्षण हासिल किया। आज वे लखनऊ के आलमबाग के सिंगार नगर में वंश क्लीनिक एडं टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर की संस्‍थापिका हैं। उनका यह परिश्रम उनकी 16 वर्षों की मेहनत का नतीजा है जो उन्होंने हाई रिस्क प्रेग्नेंसी और बांझपन का सफल निदान का अभियान छेड़ा है। उन्होंने ऐसी कई महिलाओं की गोद भी भर दी है जिनका 4 से 10 बार तक गर्भपात हो चुका था और 15 20 साल तक अपना इलाज कराने के बाद वे हार मान चुके थे।

आज आईवीएफ यानी टेस्‍ट ट्यूब बेबी सेंटर से बड़ी संख्या में बांझपन और निसंतान दंपत्तियों का आंगन किलकारियों से गुंजा देने वाली और लखनऊ की स्त्री एवं प्रसूति रोगों चिकित्सा जगत में अपना मजबूत कदम जमा चुकीं डॉक्टर नीलम मिश्रा बताती हैं कि सामान्य तौर पर ट्यूब बेबी सेंटर के बारे में निसंतान दंपत्तियों में गलतफहमी बहुत होती है। एक शक तो यह होता है टेस्ट ट्यूब बेबी की टेक्निक बहुत महंगी होगी। लेकिन ऐसा है नहीं। डॉ नीलिमा बताती हैं कि वंश क्‍लीनिक ऐंड टेस्‍ट ट्यूब बेबी सेंटर पर आने वाले हर मरीज की आवश्‍यकतानुसार प्रत्‍येक जांच गहनता से की जाती है। अधिकांश को केवल दवा से भी चंगा किया जा सकता है। हां, जिन मामलों में अन्य कोई तरीका कारगर नहीं होता,  केवल उन्हें ही आईवीएफ यानी टेस्ट ट्यूब बेबी की तकनीक का इस्तेमाल की जाती।

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ऐसे-वैसे भी डॉक्‍टर

डॉक्‍टर नीलमा मिश्रा बताती हैं बांझपन की समस्या इतनी गंभीर नहीं है जितनी उसके प्रति लापरवाही या अज्ञानता के चलते उठाए गए कदम। उनका कहना है कि अगर सामान्य गर्भधारण में कोई दिक्कत आ रही है तो तत्काल आईवीएफ विशेषज्ञ मिल ही लेना चाहिए और यह कवायद 35 साल की उम्र के पहले ही शुरू कर लेनी चाहिए। उनका कहना है कि ज्यादा बढ़ती उम्र में गर्भधारण से इसकी सफलता की गुंजाइशें लगातार कम होती जाती हैं। शुरुआती दौर में मर्ज को पहचान लेने पर सफलता लगभग सौ फीसदी तक हो जाती है।

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