नीलाभ-भूमिका के इश्‍क पर चटखारा नहीं, उसकी शिद्दत को सूंघने की कोशिश करो मेरे दोस्‍त

सैड सांग

: हाथ छोड़ गये मेरा, इतनी भी क्या जल्दी थी जी…… : नीलाभ ने बड़ी उम्र में इश्‍क किया, लेकिन इसमें अपराध क्‍या किया : एक अजीमुश्‍शान शख्सियत थे नीलाभ, बहुआयामी और सबसे बड़ी बात कि एक बड़े इश्‍क-परस्‍त भी : इश्‍क को उम्र से नहीं मत देखिये, न समझ में आये तो फिल्‍म चीनी-कम देखियेगा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : उपेंद्रनाथ अश्‍क साहित्‍य जगत में एक बड़ी कद्दावर शख्सियत रहे हैं। उनके बेटे का नाम है नीलाभ। उन्‍होंने अपने बेटे के नाम पर ही नीलाभ प्रकाशन के नाम से एक संस्‍थान शुरू किया। इलाहाबाद के काफी हाउस के ठीक बगल में एक विशाल पुस्‍तक शोरूम रहा है यह नीलाभ प्रकाशन।

खैर, बाद में अश्‍क भी इतिहास में दर्ज हो गये। उसके बाद उनका नीलाभ प्रकाशन भी। और आज नीलाभ भी खत्‍म हो गये। कवि थे नीलाभ, साहित्‍यकार भी थे, आलोचक भी थे, प्रकाशक भी थे और लेखकों को प्रोत्‍साहन देने वाली एक बड़ी शख्सियत भी थे नीलाभ। गजब नाम था नीलाभ का। अश्‍क से कम नहीं। लेकिन उसका क्‍या करें कि नीलाभ को ब़ढती उम्र में इश्‍क हो गया। अब दिक्‍कत यह है कि हमारे देश में इश्‍क को उम्र से जोड़ कर देखा जाता है। हमारा समाज यह कत्‍तई बर्दाश्‍त नहीं कर सकता कि कोई बड़ा उम्र का शख्‍स मोहब्‍बत कर भी सकता है।

जनाब, सवाल यह है कि आखिर क्‍यों नहीं कर सकता। हम पूरी जिन्‍दगी भर लौंडपन करते रहते हैं, लेकिन किसी को कोई दिक्‍कत नहीं होती। हम अपने मित्रों से साथ ऐसे-ऐसे किस्‍से सुनते-बुनते हैं कि लोगों के कान की लवें गरम हो जाएं। लेकिन ठीक वही लोग अब अगर यह सुन लें कि कुमार सौवीर को किसी से इश्‍क हो गया है, तो सारे मित्रों की सारी नानियां हैं ना, वे सब की सब परलोक सिधार जाती हैं। ( माफी चाहता हूं कि इसमें नानी या नानियों का बिम्‍ब समाज में चलते स्‍लैंग से लिया है, इसके अलावा कोई रास्‍ता ही नहीं था कि मैं आपनी बात तरीके-सलीके से कह पाता। बावजूद इसके कि मैं नानी की इस तरह मरने-मराने के तरीके से सख्‍त विरोधी हूं।)

बहरहाल, बड़े उम्र की मोहब्‍बत को बहुत खूबसूरती से उकेरा था अमिताभ बच्‍चन ने। चीनी कम नाम की फिल्‍म में। गजब बात और तर्क बुन डाले गये इस फिल्‍म में इश्‍क को लेकर। मैं तो अभिभूत ही हो गया। खैर, नीलाभ की मौत के बाद उनकी प्रेमिका भूमिका द्विवेदी ने जो नम-शब्‍दों में चंद शब्‍द दर्ज किये हैं, उन्‍हें पढिये, गुनिये और फिर अपने आंसू भी बहते देखिये:-

अब नहीं मिलेंगे मेरी तकिया पर अधकचरे

अधरंगे बाल तुम्हारे,

अब नहीं देख सकूंगी, प्रेमी करतब

और बवाल सारे

अब नहीं सहला पाऊंगी माथा तुम्हारा

कभी बुखार से तपता

तो कभी शीतल जल जैसा

 

अब नहीं नहलाऊंगी तुम्हें

कुर्सी पर बिठाकर

चिढ़ाकर

दुलराकर

चन्दन वाले तुम्हारे प्रिय साबुन से..

 

नहीं पुकारोगे तुम अब बार बार

“मेरी जान एक गिलास ठंडा पानी दे दो,

बाथरूम तक पंहुचा दो मेरी प्यारी”

नीचे सीढ़ियों तक तुम्हारी कार आते ही मोहल्लेवाले अब नहीं बतायेंगे मुझे,

“भाभी अंकलजी आ गये,

लिवा लाईये उन्हें”

“दीदी अंकल जी फ़िर बाहर, वौशरूम, फ़्रिज के पास, दरवाज़े पर, आलमारी के पीछे गिर गये हैं, किसी को बुलाईये, इन्हीं उठाईये..” कामवाली बाईयाँ भी हरकारा नहीं देंगी इस तरह.

 

अब दवा खिलाने नहीं आऊंगी तुम्हें,

ना करवाऊंगी अल्ट्रासाउन्ड, ना डौपलर, ना सिटी स्कैन, ना ब्लड, न यूरिन, न, खंखार का टेस्ट तुम्हारा बार बार.

अब गिड़गिड़ाऊंगी भी नहीं कि खाना खा लो, देखो दवा का टाइम हो गया है.”

 

अब नहीं सुनाओगे तुम मुझे मेरी पसंद की कविता,

ना गढ़ोगे शेर और जुमले मुझ पर

ना खींचोगे मेरी फोटो, ना फ़्रेम करवाओगे उनपर

न सजाओगे मुझे कहीं ले जाने के लिये.

 

अब तो बस

हवा में तैरेंगी खूब सारी बातें तुम्हारी

तुम्हें शून्य से भी ना जानने वाले

लगायेंगे तोहमतें मुझपर

 

अब तो सिर्फ़ कड़वी ज़बान

कड़वे झूठ सुनकर

रोती रहूंगी

तुम्हारा प्रेम याद करके अकेले उसी कमरे में

जहां बैठते थे तुम और हम

और खूब शिक़वे

खूब ठहाके

खूब फ़िकरे

 

और थोड़ी सी आत्मीयता भी

सहलायेगी मेरा मन

मेरा एकदम-से अकेला हुआ मन

 

तुम थोड़ा और रुकते

तो मजबूत बना जाते मुझे

तुम्हें तो अपनी दिवंगत पत्नी

और यारों से मिलने की जल्दी पड़ी थी.

तुम क्यूं इतनी जल्दी

हाथ छोड़ गये मेरा.

इतनी भी क्या जल्दी थी जी……

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