: अपनी दोनों बहुओं को तो मालामाल किया मुलायम को, शिवपाल की बहू को ठौर तक नहीं : ताजा घटनाक्रमों से तो फिलहाल तय हो गया कि शिवपाल सिंह सपा में घलुआ थे : सपरिवार तो वनप्रस्थ की ओर निकले हैं शिवपाल, लेकिन सवाल यह है कि अब रहेंगे कहां : अमर सिंह जैसे लौंडे-लफाडि़यों की संगति शिवपाल को खासी नुकसान कर सकती है :
कुमार सौवीर
लखनऊ : किसी भी परिवार को स्नेह के एकसूत्र से बांधने की जिम्मेदारी होती है मुखिया की। लेकिन मुलायम सिंह यादव इस मामले में बिलकुल फिसड्डी निकले हैं। वे अपने छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव की तारीफ में तो उन्होंने खूब कसीदे काढे, लेकिन उनके प्रति किसी भी दायित्व का निर्वहन मुलायम ने कभी भी नहीं किया। शिवपाल सिंह को राजनीति में जो कुछ भी हासिल कद मिला है, वह उनकी अपनी मेहनत का नतीजा है। मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल की श्री-वृद्धि के लिए कोई भी ठोस प्रयास नहीं किया। हां, ज्ञान और प्रवचन देने की अपनी पुरानी आदत के चलते मुलायम ने उसमें कोई भी कतर-ब्यौंत नहीं की, लेकिन जमीनी आधार पर शिवपाल हमेशा मुलायम की कृपा से महरूम ही रहे हैं। साफ तौर पर कहा जाए, तो मुलायम सिंह यादव ने अपने इस छोटे भाई को किसी घलुआ से ज्यादा तरजीह नहीं दी है।
ताजा घटनाक्रमों के मद्देनजर अगर मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव के रिश्तों को तौला जाए तो हकीकत का परदा ठीक इसी तरह उठता दिखेगा। सपा के वरिष्ठ नेता भी इस बात को मानते हैं कि शिवपाल सिंह के प्रति मुलायम सिंह यादव का नजरिया हमेशा केवल प्रदर्शनीयता से ज्यादा नहीं रहा। इस हकीकत के बावजूद शिवपाल हमेशा मुलायम सिंह यादव के प्रति अगाध श्रद्धा पाले रहे। हालांकि सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि शिवपाल सिंह यादव का क्षमता इससे ज्यादा ही नहीं थी, और वे केवल सपा पर भार की ही तरह लदे रहे हैं।
कुछ भी हो। सपा में शिवपाल सिंह यादव के समर्थकों का कहना है कि मुलायम सिंह यादव ने अपनी सपाई जागीर के उत्तराधिकार के मसले पर ही नहीं, बल्कि पार्टी व सत्ता तक में लाभों के बंटवारे में भी जमकर पक्षपात किया है। इसी हालत के चलते शिवपाल सिंह अखिलेश यादव सरकार में दूसरे दर्जे के मंत्री होने के बावजूद कभी भी अखिलेश के कृपा से वंचित-पात्र से ज्यादा नहीं उबर पाये। उन्होंने हमेशा बची-खुची से ही गुजार-बसर किया।
एक अन्य वरिष्ठ नेता का कहना है कि मुलायम सिंह की भूमिका द्वापर-कालीन महाभारत में युधिष्ठिर जैसी बन चुकी थी, जो ज्ञान और प्रवचन तो खूब देता रहा है, लेकिन ऐन वक्त पर कभी झूठ का भी सहारा लिया तो कभी अभिमन्यु की मौत का प्रत्यक्षदर्शी ही बना रहा, हस्तक्षेप तनिक भर नहीं किया। हैरत की बात है कि इसके बावजूद खुद को न्याय और सत्य का अडिग सर्वोच्च ओहदा भी सम्भाले रहा। पदवी और ओहदे तो मुलायम सिंह यादव ने युधिष्ठिर की ही तरह धर्मराज जैसी लाद रखी है।
शिवपाल सिंह के करीबियों का कहना है कि मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश की पत्नी डिम्पल तक को राजनीति की सर्वोच्च पगड़ंडी थमायी थी। इसमें मुलायम के पूरे कुनबे ने बिना किसी ना-नुकुर के उनका सहयोग किया। मुलायम सिंह यादव के रनिवास की कैकई बन चुकी मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे प्रतीक को मुलायम ने खूब मालामाल किया।
इतना ही नहीं, चूंकि प्रतीक में राजनीतिक कीड़े सक्रिय नहीं थे, ऐसे में प्रतीक की पत्नी अपर्णा को राजनीति की प्रवेश कराने का पूरा दम लगा दिया मुलायम ने। अब वह चुनाव की तैयारी कर रही है। अपर्णा के पिता और पत्रकार रहे अरविंद बिष्ट को मुलायम सिंह ने सूचना आयुक्त बना दिया। सपा के एक अन्य नेता ने बताया कि इसके बावजूद कि अरविन्द बिष्ट और उनके परिवार को जमकर तोहफे थमाये, बिष्ट ने सूचना आयुक्त की कुर्सी तक पर जमकर कालिख पोतने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
जबकि शिवपाल के बेटे आदित्य और उसकी पत्नी राजलक्ष्मी के लिए मुलायम सिंह यादव ने तनिक भी प्रयास नहीं किया। जबकि आदित्य में राजनीति के जन्मजात गुण मौजूद थे। हां, इतना जरूर है कि मुलायम सिंह ने शिवपाल सिंह यादव को अपने परिवार का अभिन्न अंग बनाने का नाटक खूब किया।
और जब शिवपाल सिंह यादव को सपा में अपनी बे-कद्री का अहसास हो गया तो उन्होंने अपने पंख खोलना शुरू कर दिया। हां, दुर्भाग्य की बात यह रही कि इस प्रक्रिया में शिवपाल सिंह किसी बड़ी गलती की तरह अमर सिंह के खाने में घुस गये और उसके बाद से ही शिवपाल और सपा के सर्वनाश की नयी इबारतें दर्ज होना शुरू हो गया।