मुख्‍य सचिव ने विशेष सचिव के मुंह पर दे मारी फाइल

दोलत्ती

: जानता हूं तुम लोगों की करतूतें कि कौन कागज किन हालातों में फाइलों में लगता या गायब होता है : मुख्‍य सचिव अब बर्बाद हैं, जबकि विशेष सचिव पूरी तरह निर्मल : जीभ-लिंग 6 :
कुमार सौवीर
लखनऊ : (गतांक से आगे) वह अफसर था। यूपी का सबसे बड़ा अफसर। तुनुकमिजाज। एक दिन एक विशेष सचिव के चेहरे पर एक मोटी फाइल फेंक कर मारी और गुस्‍से में गरजते हुए बोला कि मैं जानता हूं कि तुम लोगों की करतूतें कि कौन सा कागज किन हालातों में तुमसे गायब हो जाता है और किन हालातों में वह फिर वापस फाइल पर लग जाता है।
विशेष सचिव सन्‍न रह गया। अपमान की पराकाष्‍ठाओं के सामने असहायता के भावों की खाई अचानक गहरी होने लगती है, और उसके सामने शासकीय अनुशासन, दायित्‍वों और बंधनों से पैदा धीरज की सीमाएं ऊंची-और-ऊंची होने लगती हैं, तो सन्निपात सा बज्रपात होता है। दिमाग सुन्‍न हो जाता है, जुबान खामोश हो जाती है, बदन थरथराने लगता है। लगता है कि व्‍यक्ति किसी गहरी वेगवती नदी में गोल-गोल बनते-घूमते भंवर में असहाय होकर धंसता जा रहा है। खात्‍मे की ओर, नि:शब्‍द होने की मजबूरी के साथ।
हताशा और अपमान में गुंथी ऐसी हर सीमा तक पहुंच चुका था वह विशेष सचिव। विशालकाय हॉलनुमा ऑफिस की फर्श पर फाइले से खुले-फटे कागज फैल चुके थे। आलीशान रिवाल्विंग चेयर पर बैठे मुख्‍यसचिव ने दूसरी फाइल को अपनी ओर खींचा और हिकारत भाव से हाथ हिलाते हुए विशेष सचिव को कमरे से निकल जाने का इशारा किया। मानो, कमरे में उस विशेष सचिव की मौजूदगी से ही घृणास्‍पद बदबू महसूस हो रही हो।
यह यूपी का मुख्‍य सचिव था। तूती बजती थी उसकी। हालत यह थी कि जब मुख्‍यमंत्री ने अपने मुख्‍यमंत्रित्‍व की शपथ ली, तो सबसे पहला काम किया कि इस अफसर को दिल्‍ली से लखनऊ डेपुटेशन खत्‍म करके यूपी में बुलवा लिया। उसे फौरन बुलवाने के लिए मुख्‍यमंत्री ने अपना सरकारी हेलीफॉप्‍टर दिल्‍ली भेजा था। उस वक्‍त वह केंद्र सरकार में संयुक्‍त सचिव हुआ करता था। लखनऊ में उसकी पोस्टिंग गृह विभाग के प्रमुख सचिव के तौर पर हुई। बेटे की असमय मौत पर उसके घर इतनी भीड़ नहीं लगी थी, जितना कि उसके लखनऊ वापसी में हुई। घर के सामने मेला सा लगने लगा था। दिन ब दिन उसका प्रभामंडल और ज्‍यादा चमकने लगा। और आखिरकार एक दिन वह मुख्‍य सचिव की कुर्सी पर भी पहुंच गया।
उसी दौरान स्‍वास्‍थ्‍य विभाग में डॉक्‍टरों की डीपीसी होनी थी। उसकी तैयारी कर रहे थे विभाग के एक विशेष सचिव। लिस्‍ट में कुछ ऐसे डॉक्‍टरों का भी नाम के सामने लाल गोला लग चुका था जिनमें कुछ कागजों की कमी रह गयी थी। विशेष सचिव ने लिस्‍ट देखी, और ऐसे हर डॉक्‍टर को फोन पर निर्देश देना शुरू कर दिया कि वे समय से अपने कागजों की पूर्ति करा दें। इसी दौरान विशेष सचिव ने पाया कि उनमें एक डॉक्‍टर का नाम शायद वह जानता है। उसे याद आया कि उसी नाम का एक व्‍यक्ति उसके साथ पढ़ता था, बाद में वह मेडिकल में चल गया और बाद में सरकारी डॉक्‍टर बन गया। विशेष सचिव ने अपने पीएस से कहा कि वह उस डॉक्‍टर से बात कराये। कम से कम इसी बहाने वह कई बरसों से बिछड़े अपने एक मित्र से मिल भी लेगा। बातचीत हुईा आत्‍मीय चर्चाएं हुईं। एक-दूसरे और बाकी मित्रों से भी कुशल-क्षेप पूछी गयी। आखिरकार डॉक्‍टर से कहा कि फाइल का पेट भरने के लिए कागज की कमी है, उसे फौरन ठीक करा दो। डॉक्‍टर ने बताया कि वह कागजों को पहले ही भिजवा चुका है। खैर, दोबारा भी भिजवा देगा।
इसी बीच एक दिन डीपीसी की मीटिंग शुरू हो गयी। पता कि उस डॉक्‍टर के कागज नहीं मिले हैं। उसका नाम खारिज हो गया। मामला मित्र का था, इसलिए उसने लौटते ही उस डॉक्‍टर को फोन मिलाया, और डांट लगानी शुरू कर दी। डॉक्‍टर ने फिर बताया कि वह कागज दोबारा दे चुका है। इस पर विशेष सचिव ने सेक्‍शन अफसर को बुलाया। पता चला कि कागज आ चुके थे, लेकिन बाबू ने न जाने क्‍यों उसे फाइल पर लगाया नहीं।
अब एक ही रास्‍ता था, और विशेष सचिव ने वही रास्‍ता अपनाया। वह फाइल लेकर मुख्‍य सचिव के पास गया। करीब आधे घंटे बाद फिर से मुख्‍य सचिव से भेंट हो पायी। उस विशेष सचिव ने पूरा प्रकरण मुख्‍य सचिव को बताया। लेकिन यह क्‍या, मामला सुनते ही यह पहाड़ टूट पड़ा।
खैर, हालांकि पहले से ही वह विशेष सचिव बहुत सौम्‍य हुआ करता था, लेकिन उसके बाद से उसने अपने व्‍यवहार को और भी सहज बनाने की कोशिश की। वह नहीं चाहता था कि भविष्‍य में किसी और के साथ ऐसा कोई भयावह अपमानजनक व्‍यवहार हो पाये।
विशेष सचिव अपने में आयी इस तब्‍दीली से पूरी तरह संतुष्‍ट हैं। पूरी तरह निर्मल।
छोडि़ये, उस विशेष सचिव का नाम जानकर आप क्‍या करेंगे। बस इतना समझ लीजिए कि वह विशेष सचिव बाद में कई विभागों के सचिव और मंडलाचुक्‍त होकर रिटायर हुए। लेकिन आज भी पूरी तरह मृदु, संयमित और शालीनता पूर्ण व्‍यवहार ही करते हैं। (क्रमश:)

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