: अतीत के लखनऊ में सरकारी नौकर बनाम बेटियों की रक्त-रंजित लाशें : मोहनलालगंज से शुरू हुईं थीं प्रदेश में नंगी बेटियों की बिखेरती लाशों की श्रंखला : हम नहीं मानते कि आप जल्लाद हैं, जवाब इसलिए तो चाहते हैं हम : चलिए, अब छेड़ दें “ना” कहने के अधिकार का आन्दोलन (तीन) :
कुमार सौवीर
लखनऊ: मोहनलालगंज के बलसिंह खेड़ा में एक युवती की नंगी और खून से सनी लाश बरामद हुई थी। पहली नजर में ही साफ पता चल रहा था कि इस युवती के साथ बेइंतिहा जुल्म हुए। लेकिन पुलिस और प्रशासन ने इस मामले में केवल एक इकहरे गार्ड को जेल भेज दिया और कहा कि यह हत्या किसी गार्ड ने की है। लेकिन चर्चाओं और हालातों से पता चलता है कि इस हादसे में कम से कम तीन से सात लोग शामिल थे। जाहिर है कि पुलिस की कहानी प्रथमदृष्टया झूठी है।
रोंगटे खड़े कर देने वाले इस डरावने हादसे पर पिछले साल से ही www.meribitiya.com ने लम्बा अभियान छेड़ा था, ताकि उस हादसे को तह तक पहुंचा जा सके। कई सवालों का जवाब तो हमे मिल ही चुके हैं। उधर उस हादसे में पकड़ा गया अभियुक्त रामसेवक यादव बताता है कि उस हादसे में वे पूरी तरह निर्दोष है। लेकिन इसके बावजूद उसकी जमानत अब तक नहीं हो पायी है।
यानी मामला अभी मुकाम तक नहीं पहुंचा है। लेकिन हम जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं ताकि दूध का दूध और पानी का पानी अलग-अलग हो सके। जी हां, आइये आज नौकर को लेकर जुड़े विभिन्न आयामों और प्रश्नों पर एक नजर डाल लिया जाए। तफतीश शुरू कर दी जाए।
संदर्भ है:- नसाफत और नजाकत की राजधानी लखनऊ में नाजनीनों की लाशें, नग्न लाशें, लहू-लुहान लाशें।
कारण हैं:- सरकार के बड़े नौकर, यही जिम्मेदार हैं राजधानी और यूपी में लगातार हो रही महिला-हिंसा के असली जिम्मेदार। अगर यही लोग मोहनलालगंज काण्ड को ईमानदारी के साथ सुलझा लेते और असली अपराधियों को जेल के सींखचों में बंद कर देते, तो आपराधिक प्रवृत्तियों वाले लोगों पर अंकुश लग जाता और इन मासूम बच्चियों को इस तरह दर्दनाक मौत के घाट न उतरना पड़ता।
अरे जनाब, आप को खूब पता होगा और हम भी खूब समझते हैं कि हर नौकर की अपनी सीमाएं होती हैं, जो अपने मालिक के इशारों पर नाचने का मजबूर होता है। सरकार की नौकरी में तो इससे भी गजब हालत होती है। यहां मलाई भी खूब मिलती है चाटने के लिए और सरकार-सरकारी नुमाइन्दों के गन्दे-सन्दे चरण-खुर भी। तो इसमें कोई हर्ज भी नहीं। है कि नहीं ?
लेकिन पहले ऐसा नहीं था। सरकारी नौकरी का मुलाजिम नौकर तो हुआ करता था, लेकिन उसकी निष्ठाएं जनता के प्रति हुआ करती थीं, जबकि निर्देश सरकार के मानते थे। मगर श्रेष्ठता का सम्मान वे सिर्फ जनता को ही देते थे। लेकिन आज की हालत में इन्हीं नौकरों ने खुद को अफसर में तब्दील कर दिया और जनता को अपनी जूती की नोंक पर। पहले यही नौकर जन-भावनाओं के सामने सिजदा करते थे, अब सरकारी दरबार की।
अब यही अफसर अब अपने असली मालिक को पहचानने से इनकार कर अस्थाई मालिकों के सामने पूंछ हिलाते रहते हैं। कमाल है कि इनमें से ज्यादातर तो अपने सारे सरकारी दायित्व, निष्ठा, समर्पण और आस्था वगैरह इसी अस्थाई मालिकनुमा ताकतों के पास गिरवी रख चुके हैं।
उप्र पुलिस में महिला सुरक्षा प्रकोष्ठ और मानवाधिकार की अपर महानिदेशक सुतापा सान्याल ने यही तो किया था। आज नतीजा यह है कि 17 जुलाई-14 की रात को मोहनलालगंज में एक युवती की नग्न और रक्त-रंजित लाश बरामद होने के 11 महीनों के दौरान अकेले आधा दर्जन से ज्यादा महिलाओं के साथ नृशंसता और जघन्य हादसे हुए और इन महिलाओं की क्षत-विक्षत लाशें राजधानी की सड़कोंं पर जहां-तहां बिखेर दी गयीं। आपको अगर इससे भी ज्यादा हॉरर-शो महसूस करना हो तो इस दौरान पूरे उत्तर प्रदेश के आंकड़ों पर एक नजर डाल लीजिए। इस दौरान ऐसी घटनाएं बेहिसाब हुई हैं। ताजा काण्ड तो लखनऊ के अलीगंज इलाके में 25 साल की एक लखनवी बच्ची का है, जिसकी जघन्य हत्या से पूरी राजधानी सहम गयी है।
पूरा लखनऊ, प्रदेश, भारत और पूरी दुनिया ही नहीं, खुद यूपी पुलिस के आला अफसर भी मानते हैं कि मोहनलालगंज में नृशंसतापूर्वक मार डाली गयी युवती की हत्या किसी एक व्यक्ति के वश की बात नहीं थी। इसके लिए कम से कम दो हत्यारों की सक्रिय साजिश थी। लेकिन यूपी सरकार में महिला सुरक्षा ओर सम्मान के साथ ही मानवाधिकार प्रकोष्ठ का जिम्मा सम्भालीं वरिष्ठ आईपीएस अफसर सुतापा सान्याल ने इस पूरे दर्दनाक काण्ड को ऐसा घृणित एंगिल दे दिया, जिसके नक्श-ए-कदम पर प्रदेश में मासूम युवतियों-बच्चियों की लाशें बिखेरनी की श्रंंखला शुरू हो गयी। इतना ही नहीं, इस काण्ड के बाद से इन बेटियों के साथ हत्या के पहले नृशंसता का भी एक नया आयाम जुडने लगा, मसलन उनके जननांगों पर क्षत-विक्षत कर देना।
हे ईश्वर !
सुतापा सान्याल ने इस घटना के बाद मौका-मुआयना किया और फिर उसी दिन शाम और अगले दिन दोपहर को प्रेस-ब्रीफिंग भी की, कि इस हादसे में केवल एक व्यक्ति ही शामिल था। नतीजा, पुलिस ने इस व्यक्ति को पकड़ कर जेल भेज दिया और तब से यह आदमी जेल में ही पिस रहा है। सुतापा सान्याल ने बयान दिया कि इस हादसे में मारी गयी युवती के जननांगों को बाइक की चाभी से खुरचा गया था। जबकि कई जानकारों का कहना है कि इस तरह का मारक आघात चाभी से हो ही नहीं सकता है। कई अफसरों का कहना है कि ज्यादा आशंका इस बात की है कि इस काण्ड मे कम से कम दो लोग शामिल रहे होंगे। इतना ही नहीं, इस जननांग पर हैण्डपम्प के हत्थे से प्रहार किया गया होगा।
सुतापा जी, ऐसा कर पाना एक व्यक्ति के लिए मुमकिन नहीं है। फिर आपने ऐसा क्यों कह दिया ? इस काण्ड ने ऐसे कम से कम पांच-छह दर्दनाक हादसों की भूमिका-जमीन तैयार की है। इस काण्ड को होने को एक साल होने ही वाले हैं। ऐसे में अब इस सवाल का जवाब भी आपको ही देना होगा कि असल में आपने अपनी जांच में क्या पाया था, जिसका जवाब न देकर आपने उसके 11 महीनों में न जाने कितनी बेटियों को दर्दनाक मौत की बलिवेदी पर चढा दिया।
हम सभी जानते-मानते हैं कि सरकारी नौकरी में कई चीजों को छोड़ना ही पड़ता है। यह अफसरी की मजबूरियों में शामिल माना जाता है। लेकिन यह मजबूरी क्या ऐसी भी होती है जिसके चलते श्रंखलाबद्ध नृशंस हत्याओं का सिलसिला शुरू हो जाए।
जवाब तो अब आपको अपने अन्तर्मन से पूछना होगा सुतापा सान्याल जी। हम तो निरीह हैं, कीडों-मकोड़ों की तरह हैं, मुर्गो-माही, जिनकी नियति ही कत्ल हो जाना होता है, लेकिन हम नहीं मानते कि आप जल्लाद हैं।
जवाब इसलिए चाहते हैं हम
इस मामले को अब हम सिलसिलेवार छाप रहे हैं। इसके अगले अंकों को देखने-पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा :- चलिए, छेड़ दें “ना” कहने के अधिकार का आन्दोलन