सूचना विभाग में गड़बड़झाला, राजाज्ञा तैयार होने के बाद शासन ने पूछा औचित्‍य

मेरा कोना

: सूचना विभाग में हक की लड़ाई में ब्‍लैक-शीप ने मारी लंगड़ी : संविदा कर्मचारी से सीधे शीर्ष पद तक पहुंचाने की साजिश बुनी गयी थी मुख्‍यसचिव कार्यालय से : सूचना विभाग की अफसरों के हक में हक-तलफी कर रहे हैं अपने ही लोग :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आपने कभी सुना है कि किसी समूह की नाव में खुद उसकी ही नाव में बैठे एक चूहे ने छेद कर दिया। नहीं सुनाओ है न, तो कोई बात नहीं। आइये हम आपको दिखाते हैं कि नाव का चूहा कैसा होता है। आप चाहें तो उस चूहे को ब्‍लैक शीप पुकार सकते हैं।

यह मामला है उप्र सूचना एवं जन सम्‍पर्क विभाग का, जहां सरकार ने मुख्‍यमंत्री की तारीफ के लिए पूरा एक बड़ा अमला तैनात कर रखा है। अब दीगर बात यह है कि इस अमले की ओर कोई भी अफसरशाह ने कोई भाव नहीं दिया, लेकिन इसके बावजूद इस विभाग की अहमियत कभी भी कम नहीं रही। सरकार की पीठ ठोंकने-ठुंकवाने के लिए सूचना विभाग के लोग अपनी जान से ज्‍यादा कोशिश करते हैं।

मैं यह नहीं कहता कि इस विभाग में बेईमानी या लैमारी नहीं होती है। खूब होती है। पूरी की पूरी सरकारी मशीनरी की तरह यह विभाग भी कालिख की कोठरी की तरह है। न जाने कितने आईएएस, पीसीएस और विभागीय अफसर इस विभाग में अपनी नाक कटवा चुके हैं। सीबीआई तक ने कई आला अफसरों की लंगोट खोल-फाड़ रखी है। लेकिन यहां की बेईमानी बदस्‍तूर चलता ही रहा है। वजह है आला अफसरों की वह बेईमानी जो दाल में नमक के बजाय, सीधे नमक में दाल की तर्ज में ब़ढती जा रही है।

हाल ही मुख्‍यसचिव कार्यालय से एक आदेश के तहत शासन स्‍तर पर सूचना विभाग सचिवालय ने विभाग के एक कर्मचारी को सीधे शीर्ष पद तक पहुंचाने की कवायद छेड़ दी। चूंकि यह मामला एक ऐसे अफसर का था जो जातीय आधार के साथ ही चंपी और तेल-लगाई की परम्‍परा से उपजी थी। इस कर्मचारी को पहले संविदा के तौर पर काम की इजाजत दी गयी, लेकिन इसके बाद इसके बाद उसे आला अफसरों ने खूब मलाई चटवा दी। अब उसे सीधे अपर निदेशक तक की कुर्सी तक पहुंचाने की हरचंद कोशिशें की जा रही हैं।

इसके लिए सचिवालय स्‍तर पर सूचना विभाग ने एक राजाज्ञा भी तैयार कर उसे सचिव के पास भेज दिया, जिसे वित्‍त विभाग और कार्मिक विभाग के सचिवों की सहमति दी जा चुकी थी। यह आनन-फानन किया गया ओर तब तक लोगों को पता चला जब तोते बस उड़ने ही वाले थे।

खबर मिलते ही सूचना विभाग के अफसरों ने एकजुट होकर विरोध जताया तो शासन ने उस राजाज्ञा पर हस्‍ताक्षर करने के पहले सीधे सूचना विभाग के निदेशक से इस राजाज्ञा का औचित्‍य पूछ लिया। इस पत्र के मिलते ही सूचना निदेशक ने अपने अधीनस्‍थ अधिकारी को मामले पर नोट देने का निर्देश दे दिया। बस इसके बाद से ही विभाग में काना-फूसी शुरू हो गयी। हालांकि सभी अफसर एकजुट थे, लेकिन अचानक एक अन्‍य अफसर ने उस पत्र को अपनी कुर्सी पर अपने नीचे रख दिया। मतलब, यह कि अब उस पर कोई भी कार्रवाई नहीं की जाएगी। पूछताछ शुरू हुई तो उस अफसर ने उस पत्र को सीधे सेक्‍शन में भेज दिया। उसके बाद से वह पत्र वापस सेक्‍शन से आया ही नहीं। जाहिर है कि इस मामले में उस संविदा कर्मी के हितों की सुरक्षा की जा रही है,लेकिन इसके चलते पूरे विभागीय अमले की ऐसी की तैसी की जा रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *