वह तीन वकील कौन हैं, जिन्‍होंने जजों से दस करोड़ की डील करायी

सैड सांग

: गायत्री प्रजापति की जमानत वाले इस मामले में वकीलों ने दम साध लिया : जिला जज राजेंद्र सिंह और पास्‍को जज ओपी मिश्र के नाम का खुलासा हुआ, वकीलों का क्‍यों नहीं : विधि संवाददाता बता रहे हैं और न ही समाचार-संस्‍थानों ने इस बारे में कोई कोशिश की :


कुमार सौवीर

लखनऊ : बलात्‍कारी, माफिया, बेईमान और नेता गायत्री प्रजापति को जमानत देने वाले अराजक और नियम-विरूद्ध फैसले पर शुरूआती दौर पर तो हंगामा खूब हुआ, लेकिन उबले दूध की तरह उतनी ही तेजी से यह गर्मी वापस भी ठण्‍ड में तब्‍दील हो गयी। अब हालत तो यह है कि न तो राजनीतिक दल इस मसले पर चर्चा करना चाहते हैं, न समाचार-संस्‍थान इस मामले में रूचि ले रहे हैं और न ही वकील समुदाय। जबकि हकीकत यह है कि यह पूरा मामला केवल इन्‍हीं तीनों के साथ सर्वाधिक तौर पर जुड़ा हुआ है।  जाहिर है कि यह खामोशी कई गम्‍भीर सवालों में घिरती जा रही है।

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लर्नेड वकील साहब

आपको बता दें कि गायत्री प्रजापति को जमानत देने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीधे-सीधे तौर पर दो जजों को कठघरे में खड़ा किया है। हाईकोर्ट ने यह फैसला आईबी की उस रिपोर्ट के आधार पर दिया है, जिसमें लिखा गया था कि गायत्री प्रजापति को गैरकानूनी जमानत देने के लिए दो जजों ने दस करोड़ रूपयों की रकम उगाह ली थी। इन दोनों में एक तो राजेंद्र सिंह हैं, जो उस समय लखनऊ जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश थे, और दूसरे थे ओपी मिश्र, जो उस समय अपर जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश हुआ करते थे। राजेंद्र सिंह ने ओपी मिश्र को पास्‍को जज बनवा कर गायत्री को जमानत के लिए आधार मुहैया कराया था। वह भी तब, जबकि ओपी मिश्र को रिटायरमेंट में केवल 15 दिन बचे थे। ओपी मिश्र ने पास्‍को जज बनते ही गायत्री प्रजापति को नियम-विरूद्ध जमानत दे दी।

हाईकोर्ट ने इस मामले में ओपी मिश्र को तो निलम्बित कर दिया, जबकि राजेंद्र सिंह का नाम कोलेजियम से हटा लिया। इसके पहले तो राजेंद्र सिंह को हाईकोर्ट में जज के तौर पर नियुक्‍त करने के लिए प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। लेकिन अब इस फैसले से राजेंद्र सिंह को हाईकोर्ट में जज के तौर पर होने वाली प्रोन्‍नति की प्रक्रिया हमेशा के लिए खत्‍म हो गयी।

लेकिन इसके अलावा इस मामले में एक अहम पहलू जरूर दब गया। वह यह कि आखिर वह तीन वकील कौन थे, जिन्‍होंने राजेंद्र सिंह और ओपी मिश्र को घूस देकर गायत्री प्रजापति को जमानत दिलायी थी।

हाईकोर्ट के प्रशासनिक फैसले में जिस आईबी रिपोर्ट का जिक्र किया गया है, उसमें तीन वकीलों की भूमिका का खुलासा हुआ है। आईबी की रिपोर्ट के मुताबिक लखनऊ के इन तीनों वकीलों ने तब के जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश राजेंद्र सिंह और ओपी मिश्र को कई-कई बार मिल कर कुल मिलाकर दस करोड़ रूपयों की रकम थमायी थी। इस के तहत पैसा मिल जाने के बाद अपर जिला जज ओपी मिश्र को पास्‍को जज बनाया गया, जिसकी अदालत में गायत्री प्रजापति की जमानत का मामला चल रहा था। ओपी मिश्र ने ही प्रजापति की जमानत मंजूर की।

मगर इस बारे में न तो कोई समाचार संस्‍थान बोल रहा है, न कोई विधि संवाददाता और न ही वकील  समुदाय ही बोल रहा है, जिससे पता चल सके कि आखिर वह तीन वकील कौन हैं, जिन्‍होंने दस करोड़ रूपयों का भुगतान जिला जज जैसे बड़ी हैसियत वाले न्‍यायाधीशों पहुंचाया और बाकायदा किसी षडयंत्र के तहत गायत्री प्रजापति की जमानत अर्जी मंजूर करायी। सवाल यह है कि आखिर कौन से भय हैं, जिनके चलते वकील समुदाय जैसी एक बड़े कम्‍युनिटी सहम गयी है, और कुछ भी बोल पाने की हैसियत नहीं जुटा पा रही है।

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न्‍यायपालिका

बहरहाल, हम इस मामले में हस्‍तक्षेप करना चाहते हैं। असलियत तक पहुंचना चाहते हैं, और जाहिर है कि आप सब के सहयोग के बिना यह हो पाना मुमकिन नहीं हो सकेगा। ऐसे में प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम का आप सब से हमारा अनुरोध है कि कृपया इस मामले में जो भी जानकारी आपमें से किसी को भी हो, कृपया हमें सूचित कर दें। बता दीजिए कि आखिर वह कौन वकील हैं, और कैसे किस तरह की हरकतें कर पाने का साहस इन वकीलों को हुआ। आखिर क्‍या वजह है कि आप या आपका समुदाय ऐसे वकीलों से इस तरह खौफ खा रहा है, कि उसका नाम तक अपनी जुबान तक नहीं लाने की हैसियत तक नहीं जुटा पा रहा है। आपकी हर सूचना हमारे लिए महत्‍वपूर्ण होगी, और हम आपको विश्‍वास दिलाते हैं कि आपके नाम या पहचान का कोई भी जिक्र सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। सूत्र के तौर पर आपको गुप्‍त ही रखा जाएगा।

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