लड़कियों में आजादी 75 साल पहले लाई थीं अनुपम मिश्रा

सक्सेस सांग

: बहराइच के सुदूर गांव में एक वामपंथी बाप ने दी थी बेटी को साइकिल चलानी की आजादी : ग्रामीण क्षेत्र में साइकिल चलाती इस युवती को प्रशंसा लेकिन शहर में मिली सिर्फ गंदी भर्त्सना : आज मुंबई के एक ओल्ड एज होम में अपना अंतिम समय काट रही हैं सुशिक्षा अनुपम मिश्र : बेबस मां -चार :

कुमार सौवीर

बहराइच : (गतांक से आगे ) आज से ठीक पचास बरस पहले सायरा बानो की फिल्म आई थी जिसमें सुनील दत्‍त, सायरा बाना, महमूद और किशोर कुमार ने गजब किरदार निभाया था। इस फिल्म का नाम था पड़ोसन। पूरी तरह से हास्य प्रधान फिल्म थी यह, लेकिन एक पक्ष प्रेम भी था उसमें। इसमें सायरा बानो पर फिल्माया गया लता जी का यह गीत कि मैं चली मैं चली, प्यार की गली। कोई रोके ना मुझे कोई टोके ना उस दौर का एक सुपरहिट गीत था। आज भी इस पर नई पीढ़ी भी झूम सकती है।

इस गीत की खासियत थी सायरा बानो के नेतृत्व में सड़क पर साइकिलिंग कर रही लड़कियों का रेला, जो उस दौर के कस्‍बाई इलाकों में किसी अजूबे से कम नहीं था। इस गीत की एक और खासियत पर गौर कीजिएगा कि इस फिल्म में जितनी भी लड़कियों ने साइकिलिंग की, उनके घुटने पूरी तरह जुड़े हुए थे। जो उस दौर में साइकिल चलाने में शर्म का प्रतीक मानी जाती थी। लखनऊ जैसे बड़े शहरों में भी साइकिल करती लड़कियां का घुटने खुला होने का मतलब उन द्वारा यौन-आमंत्रण माना जाता था।

तो इस पर दो बात पहली बात तो यह कि इस गीत में लड़कियों द्वारा की गयी गजब साइकिलिंग की धूम कस्‍बों तक में हो गयी थी। दूसरी बात यह तब उस दौर की लड़कियों ने साइकिलिंग के समय अपने पैर आपस में जोड़ रखे थे, बाद में लड़कियों ने शनै:-शनै: खोलना शुरू कर दिया। आज की लड़कियां बिल्कुल बिंदास साइकिलिंग करती हैं। आज सायकिल चलाना तो दूर, लड़कियां तो स्‍कूटर, बाइक और कार तक चलाती हैं, और बाकायदा फर्राटा भरती हैं।

लेकिन इसके 25 बरस पहले भी बहराइच की लड़की ने यथार्थ जीवन में साइकिलिंग कर हंगामा कर डाला था। वह भी नेपाल की तराई से सटे सुदूर ग्रामीण इलाकों में। हुआ यह कि एक वामपंथी पृथ्वीराज शर्मा अशोककी चार बेटियों में से दूसरी सुशिक्षा अनुपम ने एक डाकिया से साइकिल चलाने की ख्वाहिश की। बचपना देखकर पिता और डाकिए ने यह इजाजत दे दी। पहले ही दिन इस लड़की ने कैंची अंदाज में सायकिल चलाना शुरू किया। और अगले ही दिन वह बाकायदा साइकिल पर पैडल मार कर गद्दी-नशीन होकर हैंडल थामने लगी। यह मामला है बहराइच के विशेश्वरगंज से करीब 5 किलोमीटर दूर रनियापुर गोबरही नामक गांव का। शर्मा जी इस गांव के सब पोस्ट ऑफिस के पोस्ट मास्टर थे।

कुछ ही दिन में शर्मा जी ने अपनी बेटी को एक पुरानी साइकिल दिलवा दी जिससे वह अपने स्कूल करीब 5 किलोमीटर दूर विशेश्वरगंज जाने लगी। देखते-देखते ही यह खबर पूरे गांव-जवार में फैल गई। ग्रामीण लोग अपने बच्चों को दिखाने के लिए सड़क के किनारे जुटने लगे कि देखो एक बिटिया साइकिल चला रही है। आठवीं कक्षा पास करने के बाद लड़की हाई स्कूल करने के लिए 45 किमी दूर बहराइच में रहने पहुंच गई। साइकिल उसके साथ थी, लेकिन पूरे शहर में हंगामा शुरू हो गया। विशेश्वरगंज क्षेत्र में जहां गांव वाले इस लड़की को साइकिल चलाते समय बहुत अभिभूत होते थे वहीं बहराइच शहर में इस लड़की का साइकिलिंग करना शहर के लोगों को कतई नागवार लगा। छींटाकशी से लेकर भद्दी गालियां पीठ-पीछे शुरू हुए। जानबूझकर लड़की को साइकिल से गिरा देना, जोर आवाज से गालियां दे देना और छेड़खानी आम हो गई। लेकिन उस लड़की ने हौसला नहीं छोड़ा। हाई स्कूल के बाद इंटर पास हो इस लड़की की नौकरी जिला परिषद के स्कूल में हो गयी। लेकिन जल्दी ही उसने नौकरी छोड़ी और नर्सिंग की ट्रेनिंग फैजाबाद से करने के बाद लखनऊ आ गयी। लखनऊ की पहली पोस्टिंग काकोरी के प्राथमिक चिकित्सा स्वास्थ्य केंद्र में मिली जहां रिटायरमेंट तक रही सुशिक्षा अनुपम मिश्र।

अब जरा इस महिला का योगदान महिला सशक्तिकरण के आंदोलन में समझने की कोशिश कीजिए। करीब पचहत्‍तर साल पहले जब इस लड़की ने बहराइच शहर में साइकिलिंग करनी शुरू की तो उसे लोगों की गालियां मिलीं। सन-68 में सायरा बानो ने पड़ोसन फिल्‍म में सायकिल पर गजब जलवा बिखेरा। और सन-90 तक हालत यह हो गई कि अवध के बहराइच और आसपास के जिलों में शायद ही कोई ऐसा घर बचा जहां लड़कियों के पास अनिवार्य रूप से साइकिल न हो। आज हालत यह है कि सुदूर गांव की लड़कियां भी साइकिल से अपने स्कूल और कॉलेज जाने को निकलती हैं और पूरे हौसले और जिजीविषा के साथ आती जाती रहती हैं। किसी को भी साहस नहीं होता कि उन लड़कियों पर कोई छीटाकशी कर सकें। मैं समझता हूं कि अगर स्त्री सशक्तिकरण की या मशाल इस पूरे अवध क्षेत्र में अगर किसी ने प्रज्‍ज्‍वलित की है, तो उनका नाम था सुशिक्षा अनुपम मिश्र। दुर्भाग्‍य की बात है कि अपने जीवन के अंतिम दौर में अनुपम मिश्र अपने जन्मभूमि से सैकड़ों मील दूर मुंबई में वर्ली के ओल्ड एज होम रह रही हैं।

दरअसल सुशिक्षा अनुपम मिश्र की दो बेटियां थी हैं। मगर यहां हमारी चर्चा का विषय सुशिक्षा अनुपम मिश्रा जी उस योगदान और त्याग को लेकर है जो इन्होंने बहराइच और अवध में महिला सशक्तीकरण की दिशा में अपना उठाया, और बरसों-बरस वे उसी आग में झुलसती भी रही। (क्रमश:)

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बेबस मां

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