: रोजाना तीमारदारों से मारपीट व गालीगलौज। फिर आप इलाज कब करते हैं : असल अपराधी तो बड़े डॉक्टर-प्रोफेसर, जो आप जैसे नराधम और दुर्दांत अपराधी के गुरू हैं : गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कालेज के जूनियर डॉक्टरों ने दिमागी-बुखार से पीडि़त बच्चों के परिजनों तक को भी बुरी तरह पीटा था :
कुमार सौवीर
लखनऊ : (झांसी-कांड पर गतांक से आगे) इस सवाल का जवाब डॉक्टरों से ही शुरू होता है और डॉक्टरों तक से ही खत्म होता है।
मेरा साफ मानना है कि कोई भी दरिंदा भी ऐसा नहीं करेगा, जो किसी कटे अंग का इस्तेमाल उसी घायल के सिरहाने पर तकिया के तौर रख दे। यह डरावना और वीभत्स नजारा किसी डरावनी फिल्म का होता, तो दीगर बात थी। लेकिन असल जिन्दगी में ऐसा हो पाना मुमकिन होगा, मैं नहीं मानता। लेकिन भले ही मैं इस हादसे में डॉक्टरों को पूरी तरह क्लीन-चिट दे दूं, लेकिन सच यही है कि इस हादसे में पूरी तरह डॉक्टर ही जिम्मेदार हैं।
सच बात यही है कि किसी भी ट्रामा सेंटर में हमेशा बीमारों-घायलों की भीड़ होती है। वहां डॉक्टरों के पास वाकई समय तक नहीं होता। उनका पूरा ध्यान केवल अपने मरीज की देखभाल पर ही होता है। सच यही बात है। लेकिन उसके साथ ही यह भी सच है कि ऐसी हालातों में भी डॉक्टरों का व्यवहार अपने क्रूरतम चरित्र के तौर पर उभर जाता है। खास तौर पर हर सरकारी मेडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर में तो काम करने वाले डॉक्टर तो अभद्रता के विद्रूपतम पायदान पर ठठाकर पैशाचिक हंसी हंसते दीखते हैं। तब भी, जब मामला बेहद नाजुक होता है, और बच्चों के जीने-मरने तक का हो चुका होता है।
बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है। मेरे पास गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कालेज के जूनियर डॉक्टरों द्वारा उन मरीजों के परिजनों की सरेआम की गयी पिटाई का वीडियो मौजूद है, जो अपने मासूम बच्चे को बचाने के लिए उन डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ा रहे थे। इन बच्चों को दिमागी बुखार था, जिस में मृत्युदर बाकी बीमारियों के मुकाबले सर्वाधिक होती है। लखनऊ और कानपुर मेडिकल कालेज के भी कई वीडियो मेरे पास मौजूद हैं, जहां डॉक्टर मरीजों के तीमारदारों की पिटाई दे रहे हैं, भद्दी गालियां दे रहे हैं। झांसी के एक पत्रकार राजेंद्र तिवारी ने मुझे बताया कि झांसी मेडिकल कालेज में रोज-ब-रोज यही सब होता है। शायद ही कोई ऐसा दिन होता हो, जब यहां के डॉक्टर मरीजों या उनके परिजनों को पीटते न हों।
अब सवाल तो डॉक्टरों से है। आपका ही दावा होता है कि आप के पास मरीज की देखभाल और उपचार से ही समय नहीं मिल पाता है। फिर सवाल यह है कि ऐसी हालत में आप के पास इतना समय कैसे मिल जाता है कि आप मरीज या उसके तीमारदार के साथ मारपीट-गालीगलौज कर लेते हैं। और कभी-कभार नहीं, बल्कि अक्सर और रोजाना भी। फिर आप इलाज कब करते हैं।
चलिए, यह भी मान लेते हैं कि कठिन ड्यूटी के दौरान जैसे चाय-बीड़ी या शौचालय जाना अनिवार्य होता है, ठीक उसी तरह आप आपनी शैतान-प्रवृत्ति का परिचय देकर खुद को शांत कर लेते हैं।
लेकिन आपकी इसी हिंसक करतूतों ने ही तो आपको आज इस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया है। सबसे बड़ी शर्मनाक बात तो यह है कि आपकी करतूतों से आपके शिक्षक-प्रोफेसर, प्रशासनिक अफसर, रजिस्ट्रार, डीन, प्रिंसिपल और कुलपति भी बेनकाब और नंगे हो चुके हैं। वजह यह कि मेडिकल कालेजों के ऐसे बड़े-बड़े डॉक्टर-प्रोफेसर अगर आप जैसे नराधम और दुर्दांत अपराधी चरित्र के जूनियर डॉक्टरों पर लगाम न लगाते रहते तो आज यह दिन सामने आ पाता।
सच बात तो यही है कि आप एक निहायत बदतमीज और अपराधी चरित्र के विशेषज्ञ साबित होते जा रहे हैं। (क्रमश:)
भले ही वह साजिश ही सही होगी, लेकिन जिन भी लोगों ने झांसी मेडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर की ऑपरेशन-स्ट्रेचर पर लिटे उस शख्स की तस्वीर देखी है, उन्हें डॉक्टरों की करतूतों पर घृणा और उबकाई ही आयी होगी। इस फोटो में घायल के सिरहाने पर तकिया की जगह उसी कटे पैर को रख दिया गया था, जो बस दुर्घटना में घायल होकर उसी शख्स का कट कर अलग हो गया था। इस खबर से जुड़ी खबरों के बाकी हिस्सों-अंकों को पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-