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न्यूयार्क से मिली खबरों के मुताबिक यूनेस्को ने कला संरक्षण की अपनी कोशिशें के चलते भारत के कालबेलिया लोकनृत्य, पारंपरिक छाऊ नृत्य और केरल के मुडियेट्टू नृत्य नाट्य को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल करने को अपनी मंजूरी दे दी है।
कालबेलिया राजस्थान का समुदाय है। यह समुदाय आर्थिक पिछड़ेपन से ग्रस्त है। इससे उनकी यह अनूठी नृत्य कला प्रभावित हो रही है। छाऊ नृत्य अपने सजावटी मुखौटों के लिए मशहूर है। यह उड़ीसा, झारखंड तथा पश्चिम बंगाल के जनजातीय इलाकों में काफी प्रचलित है। संगीत नाटक अकादमी का सर्वेक्षण बताता है कि इन इलाकों के पिछड़ेपन का इस नृत्य के कलाकारों और उनकी कला पर विपरीत असर पड़ रहा है।
मुडियेट्टू केरल का 250 वर्ष पुराना धार्मिक नृत्य नाट्य है। इसमें फर्श पर रंगोली बनाई जाती है। इसकी प्रस्तुति मुखौटे लगाकर होती है। कभी यह कला भलीभांति संरक्षित थी। अब केवल तीन परिवार इसकी नियमित प्रस्तुति से जुड़े हुए हैं।
फायदा क्या?: यह वार्षिक सूची उन अभिनय कलाओं के व्यापक महत्व को दर्शाती है जिनकी तरफ ध्यान देने की विशेष जरूरत है। यूनेस्को को उम्मीद है कि यह कदम ऐसी अमूर्त विरासतों के प्रति बेहतर नजरिया अपनाने,उनके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा उन्हें संरक्षित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता मुहैया कराने में सहायक होगा।