कल तक शेर था, आज भीगा चूहा। कींचड़ भरे खेत का बंदर

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: एनेक्‍सी मीडिया सेंटर में विजय सिंह कुशवाहा को श्रद्धांजलि देने उमड़े पत्रकार : इकतरफा ऐलान किया इन लतिहड़ पत्रकार ने, मानो खजाने की चाभी उन्‍हीं के पास हो : विजय के परिजनों को न बुलाने पर बकझक भी खूब हुई :

मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता

लखनऊ : पत्रकारों को वॉच-डॉग यूं ही नहीं कहा गया है। इस नामकरण की असल वजह शायद यह थी कि इस पेशे में लगे अपनी जी-जान तक को खतरे में डाल कर खबरों को खोजेंगे, ठीक उसी तरह जैसे कोई खोजी कुत्‍ता करता है। लेकिन चूंकि उस नामकरण हुए काफी वक्‍त बीत चुका है, इसलिए उनका चरित्र भी वक्‍त के थपेड़ों से बदल गया है। अब यह लोग खबर सूंघने का कामधाम छोड़ कर, केवल अपने आसपास की बिरादरी के साथ कुकुर-झौंझौं ही किया करते हैं। मुख्‍यमंत्री कार्यालय के नीचे बने मीडिया सेंटर में आज यही हुआ।

आज मीडिया सेंटर मे बड़ी संख्‍या में पत्रकार इकट्ठा हुये। अपने साथी के निधन से व्‍याकुल और दुखी पत्रकार अपने दुख को सांझा करने के लिए जुटे थे। दुख की इस घड़ी मे पत्रकारों की बिरादरी के साथ ही साथ प्रमुख सूचना सचिव अवनीश अवस्थी मौजूद थे। पूरा हॉल शोकग्रस्‍त था। सभी लोग अपने इस साथी के निधन से बेहद विह्वल थे और चाहते थे कि कुशवाहा के परिवार को आर्थिक संबल मुहैया कराया जा सके।

आधी सभा के बीच अचानक प्रांशु मिश्र ग्रुप के संजय शर्मा घुसे और एक कोने मे बैठ गये। संजय शर्मा वही, जो अपने छापाखाना के बगल में बने हुक्‍का बार को तबाह करने का संकल्‍प लिये बैठे थे और तीन दिन पहले उन्‍होंने उस हुक्‍का की नली तोड़ने के चक्‍कर में मारपीट भी कर ली थी। बाद में उन पड़ोसियों ने भी संजय के कर्मचारियों को भी सड़क पर कूट दिया था, लेकिन संजय शर्मा ने उसे पत्रकारिता पर हमले के तौर पर प्रचारित किया और खूब बकवादी की। नौकरशाही में घुसे अपने गुर्गों की मदद से उन पड़ोसियों पर धमकाया गया। और पुलिस की भभकी देकर मामला खत्‍म करने की कोशिशें की। लेकिन शर्मनाक तो यह रहा कि लखनऊ का बड़ा दारोगा यानी एसएसपी दीपक कुमार इस मामले में इकतरफा व्‍यवहार करने लगे। नतीजा यह हुआ कि दूसरे पक्ष को संदेश मिल गया कि अगर वे लोग संजय शर्मा से भिड़े तो अंजाम बहुत बुरा होगा। उधर गोमती नगर के कोतवाल तक ने दूसरे पक्ष को बुरी तरह भयभीत और अपमानित कराया।

रही बात प्रांशु मिश्र के गुट से संजय शर्मा के जुड़ाव की, तो आपको बता दें कि संजय को पत्रकारिता में जन्‍म दिलाने का श्रेय कुख्‍यात पत्रकार हेमंत तिवारी का रहा है। संजय ने हेमंत की बेहिसाब मदद की, तन से भी, मन से भी और धन से भी। लेकिन जब संजय अपने पैरों पर खड़ा होने लगा, तो प्रांशु ने उसे कनिया ले कर उसे लपक लिया। मतलब कमर से गोद में बिठा ले लिया।

बहरहाल, आज की बैठक में संजय के गुट के साथी गायब रहे। जो मौजूद थे भी, वे पिछले तीन दिनों के दौरान संजय के छापाखाना पर हुए हंगामे की असलियत जानने के चलते कन्‍नी काटने लगे। संजय को तन्हाई महसूस हुयी तो लगे सबसे हाथ मिलाने। लेकिन जल्‍दी ही एक कोने में खुद को एडजस्‍ट हो गये। इस सभा के समाप्त होते ही मात्र दो मिनट बाद संजय ने व्हाटस अप और फेसबुक पर 4पीएम की तरफ से उपाध्यक्ष संजय  शर्मा के तौर पर लेटर जारी कर दिया कि उसकी समिति दिवंगत कुशवाहा जी के परिवार के लिए शासन से बीस लाख की सहायता की मांग करती है।

बेहद धूर्त तरीके से शोक सभा को अपनी पकड़ शासन से सिद्ध करने का तरीका सब पत्रकारो को सन्न कर गया।हां, यह दीगर बात है कि लेकिन संजय शर्मा यहां भी राजनीति चमकाने से बाज नही आया।

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