पुलिस ने महीनों तक जिला बदर किये रखा एक शरीफ को
अरे यह नीता हैं, उस पोस्टर वाले संजय की बीवी: हिन्दू जागरण मंच के लोगों ने भी जमकर आग फूंकी: दो बार आत्महत्या का प्रयास कर चुकी है नीता अग्रवाल: हमेशा-हमेशा के लिए बदनाम हो गये संजय के मासूम बच्चे: मानवाधिकार आयोग ने एडीएम समेत छह पुलिसवालों को दोषी पाया:
तुम्हारे पापा कुख्यात अपराधी हैं, इसलिए हम लोग तुम्हारे साथ नहीं खेलेंगे। हमारी मां ने कहा है कि यदि हम तुम्हारे साथ खेलेंगे तो हमारे घर भी पुलिस आ जाएगी। तुम्हारे पिता को पुलिस ने जिला बदर कर दिया है। ये किसी फिल्मी कहानी के संवाद नहीं,बल्कि पुलिस की लिखी झूठी पटकथा का दंश झेलते उन असली किरदारों की व्यथा है,जो अभी दुनियादारी के मायने भी नहीं समझते।
ये दिल को झकझोर कर रख देने वाली दास्तां है उन मासूम बच्चों की,जिनके पिता संजय अग्रवाल को पुलिस ने झूठे मामले में फंसाते हुए जिला बदर कर दिया। अब इन बच्चों को समाज न केवल अपमानित कर रहा है, बल्कि बहिष्कृत कर दिया है। उल्लेखनीय है कि जिला बदर के प्रकरण में मानवाधिकार आयोग ने लोकसेवक होते हुए षडयंत्र करने के मामले में एडीएम सहित छह पुलिस वालों को दोषी पाया है।
इस मामले में भास्कर ने जब संजय के परिवार से बात की तो बहुत ही दुखद पहलू सामने आया। एक बेहद सम्माननीय परिवार की पहचान बदल चुकी है, साथ ही बच्चों का भविष्य भी बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है। संजय के दोनों बच्चों के साथ न तो कॉलोनी के बच्चे खेलना पसंद करते हैं और न ही स्कूल के।
हर साल फस्र्ट क्लास पास होने वाला यश अग्रवाल इसी तनाव की वजह से फेल हो गया। उसका मन अब स्कूल जाने का नहीं करता, क्योंकि दोस्त उसे पिता का ताना देकर चिढ़ाते हैं। कभी नगर सुरक्षा समिति के सम्मानित सदस्य रहे संजय ने बताया पुलिस और जिला प्रशासन के षड्यंत्र की वजह से उन्हें दो माह तक भिखारियों के जैसी जिंदगी बसर करनी पड़ी। भोपाल संभाग में न घुसने के आदेश के कारण कभी जबलपुर तो कभी इंदौर रहना पड़ा। जिलाबदर का ठप्पा लगने के बाद रिश्तेदारों ने भी किनारा कर लिया।
मां जिलाबदर क्या होता है ?: संजय के छोटे बेटे हर्ष की मासूमियत,‘जिलाबदर’ और ‘कुख्यात अपराधी’ जैसे शब्दों के मायने तलाशती है। जब उसके दोस्त उसे अपने साथ खेलने नहीं देते, उस पर ताने कसते हैं तो वो अपनी मां से इन सवालों के जवाब मांगता है। संजय की पत्नी नीता इस मासूम को अपने आंचल में छिपाकर सवालों को टाल जाती हैं।
पहचान ही बदल गई: नीता बताती हैं कि जिलाबदर की कार्रवाई के बाद हिंदू जागरण मंच ने संजय के फोटो लगे पोस्टर लगाकर उनकी पूरी पहचान ही बदल दी। पुलिस द्वारा जिलाबदर का ऑर्डर वापस लेने के बावजूद मंच के लोग कॉलोनी में पोस्टर लगा जाते हैं। इससे उनकी प्रतिष्ठा खत्म हो चुकी है। वे समाज में कहीं जाती हैं तो उनका परिचय लोग पोस्टर वाले अग्रवाल की पत्नी के नाम से कराते हैं।
आत्महत्या का किया प्रयास : पड़ोसी दिनेश रावत ने बताया कि संजय के जिलाबदर के दौरान नीता ने दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन उनकी पत्नी की सजगता की वजह से वे बच गईं।
ऐसे माहौल और घटना से निश्चत रूप से बच्चों को मानसिक आघात पहुंचता है। साथ ही इससे उनका मानसिक विकास भी रुक जाता है। कई बार बुरी परिस्थितियां बच्चों के मन में स्थाई तौर पर दर्ज हो जाती हैं, जो आगे जाकर बड़ी मानसिक बीमारी के रूप में उभर कर आती हैं।