हिन्‍दुस्‍तान के पत्रकार स्‍मैक की पिनक में लिखते हैं खबरें

मेरा कोना

: जब विशेष संवाददाता की यह हालत है, तो अल्ला जाने क्या होगा आगे : हिन्दुस्तान के पत्रकार ने जो खबर लिखी, वह केवल सिरफिरा ही कर सकता है : रिपोर्टर ने फर्जी खबर लिखी, समझ में आया। लेकिन पेज इंचार्ज क्या तडि़यल था  : न तमीज, न तुक, न तुक्का। बेशर्मी पर आमादा होते जा रहे हैं बड़े पत्रकार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जिसे अखबारों के पन्ने पलटने का शौक है, उनकी बात नहीं कर रहा हूं मैं। लेकिन जो समाचारपत्र को तनिक भी गम्भीरता से पढ़ते हैं, उनके लिए हिन्दुस्तान अखबार की यह खबर किसी भी पत्रकार को शर्मिंदा कर सकता है।

आज गुरूवार 18 फरवरी-2016 को दैनिक हिन्दुस्तान लखनऊ के पृष्ठ 13 में छपे इन खबरों पर जरा निगाह डालिये तो आपके होश उड़ जाएंगे। अपने पाठकों को सिरे से निरा-मूर्ख समझने में इस अखबार का कोई सानी नहीं रह गया है।

इस खबर में प्रमुखता के तौर पर दूसरे नम्ब्र पर दो कॉलम में छपी खबर दबंग पर छापे में 2.5 करोड़ नकद बरामद शीर्षक से छपी है। लेकिन इस खबर को पढ़कर पहले तो अपना सिर पकड़ देंगे और फिर मारे गुस्से के इस अखबार की कचूमर निकालते हुए उसे मसल कर घर के बाहर फेंक देंगे। इस खबर में शीर्षक में तो 2.5 करोड़ की नकदी मिलने की बात है, लेकिन खबर में इसका कोई जिक्र तक नहीं। हां, पहले पैरे में सवा करोड़ की नकदी और जेवर मिलने का दावा किया गया है। लेकिन अगले पैराग्राफ में यह भी लिखा है कि बरामद हुए जेवरात का मूल्यांकन भी अभी नहीं हुआ है।

लेकिन हैरत की बात है कि फिर इस खबर में हकीकत क्या है, इसका तनिक भी आभास नहीं लगा सकता है पाठक। शीर्षक में ढाई करोड़ रूपये मिले, तो खबर में उसका कंट्राडक्टरी तथ्य किस आधार पर दर्ज कर दिये गये।

आपको बता दें कि यह खबर राज्य मुख्यालय पर तैनात विशेष संवाददाता ने लिखी है। गजब है कि इस बड़े पत्रकार को अब हम क्या कहें, किसी के भी समझ में नहीं आ रहा है।

इसी पेज पर दूसरी बात पर भी जरा गौर कीजिए। इसमें लीड खबर में पापुलर और प्रीमियम ब्रांड वाली शराब का बाकायदा ढोल बजाया गया है, कि कौन सी दारू सस्ती मिलेगी और कौन महंगी। क्या मौजदा हालातों में हम अखबार इसलिए पढ़ते हैं कि किस शराब सस्ती् या महंगी मिलने वाली है। हैरत है। क्या यह खबर इतनी प्रमुखता से छापी जानी चाहिए। खासकर तब जबकि यूपी में बेटियों के साथ बलात्‍कार और उसके बाद उनकी हत्या जैसी नृशंस घटनाओं की खबरें किसी भयावह सैलाब की तरह नाक के ऊपर जा रही हैं, यह अखबार दारू पर लीड खबर छाप रहा है।

मेरा सवाल यह है कि इस अखबार के विशेष संवाददाता जैसे किसी तडि़यल प्रमुख रिपोर्टर ने यह बे-सिरपर वाली यह खबर अगर छाप भी ली तो डेस्क इंचार्ज और उससे बड़े पद पर बैठे अधिकारी क्या कर रहे थे ? रिपोर्टर अगर मूर्ख है तो डेस्‍क इंचार्ज को तो चेक करना था ना।

मुझे याद है कि करीब 13 साल पहले जब मैं जौनपुर में ब्‍यूरो प्रमुख और वाराणसी में हिन्‍दुस्‍तान में रिपोर्टर के पद पर था, तब गौतम जी और अनिल मिश्र एक-एक शब्‍द चेक करते थे। हालांकि अनिल मिश्र का रवैया बाद में आये संपादक विश्‍वेश्‍वर के इशारे पर अपने रिपोर्टरों को अपमानित कराने का था, लेकिन इसके बावजूद गलतियां नहीं ही जाती थीं। पहले के संपादक शंशांक शेखर त्रिपाठी की सर्वोच्‍च प्राथमिकता खबरों में तथ्‍य और उसकी प्रमाणिकता पर रहती थी। मुझे गर्व है कि उस दौरान शशांक शेखर ने जो-जो धमाकेदार रिपोर्ट मुझसे लिखवायीं, वैसी शायद कभी नहीं हुई।

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