कन्या–भ्रूण संरक्षण पर डीएम की तारीफ की हाईकोर्ट ने
: अदालत ने चिकित्सा परिषद पर भी कड़ी कार्रवाई करने को कहा : शर्मनाक हालत है कुशीनगर जैसे पूर्वांचल जिलों में : जिला प्रशासन सतर्क रहे तो हालात पर अंकुश लगाना आसान : ग्वालियर से यूपी के कुशीनगर पर निगाह रखते हैं कमल दीक्षित :
कुशीनगर : कुशीनगर जैसे पिछड़े जिले पर अगर कोई सतर्क और मानवीय जिलाधिकारी तैनात हो जाए तो पूर्वांचल में फैली लिंग-अनुपात की बदहाली को फौरन सम्भा़ला जा सकता है। हाईकोर्ट ने एक मामले में कुशीनगर के जिलाधिकारी की कार्रवाई को पूरी तरह मानवीय और न्यायसंगत बताया है और कहा है कि अल्ट्रा साउंड सेंटरों में जांच के नाम पर चल रहे मादा-भ्रूण हत्या की दूकानों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
लेकिन आपको हम ले चलते हैं कुशीनगर की बदहाली दिखाने। भगवान बुद्ध की कर्म-स्थली रहे यूपी के कुशीनगर में तो शायद मेरी बेटियों के प्रति कयामत जैसी हालत पैदा हो गयी है। आतंक का माहौल यह है कि यहां के बच्चों के लिंग-अनुपात अब खतरे के निशान से कई कोसों दूर निकल चुके हैं। हैरतअंगेज आंकड़ों से देखें तो यहां कुल जन्मे बच्चों में 1000 लड़कों के मुकाबले महज 694 लडकियों की खतरनाक संख्या गिर चुकी है।
यह खुलासा किया है एक सतर्क और जागरूक नागरिक कमल किशोर दीक्षित ने। यूपी के इटावा के रहने वाले दीक्षित ने ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है। विषय था बी-काम। अब वे ग्वालियर में ही प्रैक्टिस करते हैं। आजीविका के अलावा उनका नागरिक-दायित्वि है कन्या-भ्रूण संरक्षण। इस बारे में वे पूरे देश की खबरों को छानते-विष्लेमषण करते रहते हैं। ताजा एक खबर का प्रकरण उन्होंने मेरी बिटिया डॉट कॉम पर भेजा है। उनका कहना है कि 16 फरवरी-13 को कुशीनगर के जिला सक्षम अधिकारी और जिलाधीश ने शहर के अल्ट्रासाउंड सेंटर पर छापामार की थी। इस छापे की कार्यवाही कर उन्होंने सेंटरों पर कई गम्भीर अनिमितताएं पायीं। नतीजतन, ऐसे सेंटरों को सील कर वहां जांच जैसी कार्रवाइयां पर रोक लगाने का आदेश दे दिया। इतना ही नहीं, जिलाधिकारी ने अपनी कार्रवाई के तहत ऐसे सेंटरों को पूरी तरह बंद कर उनका पंजीयन तक निरस्त कर दिया।
दीक्षित बताते है कि जिलाधिकारी के आदेश के खिलाफ ऐसे सेंटर के संचालक उप्र उच्च न्यायालय में गए। पक्षकारों और प्रतिवादियों को नोटिस जारी की गयी और सुनवाई शुरू हो गयी। लेकिन यह पूरा प्रकरण पर उच्च न्यायालय ने देखा तो हैरत में आ गये न्यायाधीश लोग। और आखिरकार 17 मई-2013 को हाई कोर्ट ने अपने आदेश में जिलाधिकारी की हस्तमुक्त तारीफ की। इतना ही नहीं, ऐसे सेंटर संचालक पर अपराधिक कार्यवाही के लिया मुक़दमा चलाने तथा भारतीय चिकित्सा परिषद को निर्देश दिया कि ऐसे डॉक्टर के पंजीयन को निलंबित किया जाए और यह सारी कवायद एक महीने के भीतर कर डाली जाए।
श्री दीक्षित कहते हैं कि अदालतों का यह रूख वाकई प्रशंसनीय है। उनका कहना है कि इसी तरह से तुरंत कार्यवाही हो और उच्चतम न्यायलय के आदेशानुसार 6 माह में कोर्ट निर्णय कर दे दें तो कन्या-भ्रूण हत्या पर लगाम लग सकती है।