गोरक्षा के लिए कड़े कानून, बेटियों को सताने पर कोई सख्‍ती नहीं ?

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: माना कि औरतों के मामले में बेहद कट्टर होता है मुसलमान, लेकिन यह आंकड़े भी तो देख लो हिन्‍दू-समाज का :  आज-तक की श्‍वेता सिंह की रिपोर्ट की धज्जियां उड़ा रहे हैं दैनिक भास्‍कर वाले त्रिभुवन : औरत को तीन तलाक और परित्यक्त, दहेज पीड़िता में मत बांटो :

त्रिभुवन

उदयपुर : बीती रात मैं और पूनम  “आजतक” पर श्वेतासिंह की रिपोर्ट देख रहे थे। सात मुस्लिम औरतों की कहानी, जो तीन तलाक से पीड़ित हैं।

भारतीय मुस्लिम महिलाएं जिस कदर पीड़ित हैं, वह पीड़ा बहुत चिंताजनक है और इस समय सर्वोच्‍च प्राथमिकता से समाधान की मांग करती है। इसमें कोई दो राय नहीं है। मुस्लिम समाज को अपने भीतर की ऐसी कालिख को खुद आगे बढ़कर धो-पौंछ डालना चाहिए। वक़्त की चाल और ज़माने की नज़ाकत को समझना चाहिए। वक़्त की मार बहुत ख़तरनाक़ होती है। जो इसे नहीं समझता, वह अगर तलवार से बच जाता है तो फूल से कटना पड़ता है।

लेकिन . . .

मैंने कभी नहीं देखा कि श्वेतासिंह ने इस दौर में यह रिपोर्ट भी कि हो कि हमारे देश में हर साल 7646 तरुणियों को दहेज-हत्या की बलिवेदी पर बलिदान कर दिया जाता है। तलाक के बहाने छोड़ देना, सताना, ज़ुल्मो सितम करना और अमानुषिक प्रताड़नाएं देना श्वेतासिंह जैसी मेधावी एंकरों के लिए शायद मानीं नहीं रखता। कदाचित इसलिए कि तलाक़-तलाक़ और तलाक़ किसी महिला के लिए दहेज लोभियों के हाथों हत्याएं कर देने से तो कम ही बुरा है।

यह तो हमारी नैतिकता है। यह हमारा मानदंड है। श्वेतासिंह जैसी तेजस्वी बहनों की यह तो विवेकशीलता है!

यह आंकड़ा कदाचित् श्वेतासिंह को शायद नहीं चौंकाता, लेकिन घर बैठी मेरी पत्नी को ज़रूर चिंतित करता है कि इस देश के हिन्दू समाज में पति और रिश्तेदार हर साल 1,13,548 युवतियों को क्रूरतापूर्ण ढंग से घरों से बेदखल कर देते हैं। उन्हें सताते हैं और ज़ुल्मोसितम ढाते हैं। ये अत्याचार ठीक वैसे ही हैं, जैसे मुस्लिम औरतों के साथ उनके पति करते हैं। छल-कपट और धोखा। इन अत्याचारों की कहानी बहन श्वेतासिंह अपने चैनल पर बहुत नफ़ासत भरे शब्दों में चबा-चबाकर बता रही थीं।

हमने तथ्यों को देखना शुरू किया और काफी कुछ खंगाल डाला। दहेज हत्याएं हों, बलात्कार हों या स्त्री की मर्यादाओं को धूल धूसरित करना। हे भगवान्। ऐसा भयावह सच और ऐसी भयावनी चुप्पियां! लेकिन दहेज हत्याओं, रिश्तेदारों से प्रताड़ित हिंदू लड़कियों और उनकी मर्यादाओं को तार-तार कर देने वाले ये आंकड़े न तो राष्ट्रद्रोही जेएनयू से आए हैं और न ही किसी गद्दार अलीगढ़ विश्वविद्यालय से जारी हुए हैं। ये आंकड़े 2015 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हैं और इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले देश के मेधावी आईपीएस ऑफिसर हैं। इनमें मुसलमान तो न के बराबर हैं। सबके सब हिन्दू हैं। तन-मन और प्राण से।

अगर हम थोड़ी सी संवेदनशीलता से नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट पढ़ें तो यह आंकड़ा रुला देता है कि हमारे महान् स्त्री मर्यादा वाले देश में हर साल 34,676 युवतियों से रेप होते हैं। मैं जाना नहीं चाहता, लेकिन इसके भीतर नग्न सत्य से अवगत होना शुरू करूं तो पीड़ित बहनें और बेटियां भी हिन्दू ही हैं और उत्पीड़क राक्षस का वैसे तो कोई धर्म होता नहीं, लेकिन जिस तरह आजकल लोग नामों से पहचान करते हैं तो मैं कहना चाहूंगा कि इनमें गैरहिन्दू एक या दो प्रतिशत से ज्यादा नहीं हैं।तीन तलाक एक ऐसा जख्म है, जो न केवल मरहम मांग रहा है, बल्कि एक बड़े चीरफाड़ की चाहत भी रखता है, लेकिन साहब आप जो इतने सुसंस्कृतिवादी बने फिरते हैं, अपने घरों की हालत भी एक बार देख लो।

आप जैसे गोभक्त हैं, वैसे ही आप स्त्री भक्त भी हैं। आप जैसे नारी को महान् बनाते आए हैं, वैसे ही गाय भी हमारे देश में महान् रही है। लेकिन हक़ीक़त पाखंड का पहाड़ है। इसे हर लाख साधु भी नहीं बदल सकते। एक दो की तो बात ही छोड़िए। अगर किसी ने कड़वाहट भरे सत्य आपके सामने रखे तो आप उस साधु को दूध में शीशा घिसकर दे देते हैं और एक सामाजिक क्रांति अधर में ही मर जाती है।

मैं आज शाम जब प्रतापगढ़ से लौट रहा था तो हमारे तरुण फ़ोटो जर्नलिस्ट अमित ने कुछ फ़ोटो करने के लिए हमें रुकने को कहा। उस रास्ते पर कोई दस गाएं मेरे पास से गुजरी होंगी, सबके देहों पर लाठियों, गंडासों और अन्य धारदार हथियारों के निशान थे। अंतड़ियां भूख से बाहर आ रही थीं। मानो, कह रही हों ये जीना भी कोई जीना है! शायद हमारे यहां इसीलिए कन्याओं की तुलना गऊ से की जाती है। दोनों की तकदीर है कि वह कसाई के घर जाए कि भूखों मार देने वाले किसान के किसी अच्छे परिवार के, जो दूध न भी दे तो खूब खिलाए-पिलाए और सेवा करे। यह कहानी अंदर तक झकझोर देती है।

आप कानून बनाते हैं और कहते हैं कि गाय को उत्पीड़ित करने वाले को अब आजीवन करावास होगा। आपने ऐसे कानून स्त्री सुरक्षा के नाम पर एक नहीं, हजार बना रखे हैं। आपके यहां कितने ही तो आयोग हैं। पुलिस के महिला थाने हैं। कितनी ही आईपीएस हैं और कितनी ही महिलाएं सबल राजनीतिज्ञ हैं, लेकिन ज़मीनी हालात अब भी बहुत दारुण हैं।

लेकिन अगर आप गोरक्षा के लिए आजीवन कारावास का कानून बना रहे हैं तो क्या आप देश की बहन-बेटियों को सताने वाले दहेज लोभियों को सार्वजनिक रूप से फांसी देने का कानून पारित नहीं कर देना चाहिए? साहब, एक आंकड़ा है 2125 का। ये वे अभागी बेटियां-बहनें हैं, जिनसे हर साल गैंगरेप होता है। इनमें 90 प्रतिशत से ज्यादा हिंदू ही हैं और अपराधी 95 प्रतिशत से ज्यादा हिंदू। कहां-कहां आंखें मूंदकर रखेंगी आप श्वेतासिंह। औरत को तीन तलाक और परित्यकता, देहज पीड़िता में मत बांटो। औरत औरत है। वह सृष्टि का सृजन करती है। उसकी सुरक्षा, संरक्षा और पोषण के लिए एक साथ एक जैसे कानून दो और अपराधियों के लिए एक जैसी सजाएं तय करो। उनमें मत देखो कि कौन हिन्दू और कौन मुसलमान। परित्यक्त करने वाले को भी आजीवन कारावास दो, दहेज लेने वाले को भी और तीन तलाक देने वाले को भी।

हर औरत को पिता और पति की संपत्ति में अधिकार दो। उसका पति बाहर कमाता है या नौकरीपेशा है और औरत नौकरीपेशा नहीं है तो उसके घर के कामकाज का एक पारिश्रमिक तय करो। पति की तनख्वाह का एक हिस्सा उसे मिले। यह प्रतिशत में ही होना चाहिए। क्या मुसलमान और क्या हिन्दू। हमारे ज़हन में न्याय नहीं है। हमारे ज़ेहन मेरी जाति महान, तेरी निकृष्ट और मेरा धर्म महान तेरा धर्म पतित वाली सोच से लबालब भरे हैं।

अगर हम एक फ़ेयर और जस्ट सोसाइटी बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें संवेदनशील और सुसंस्कृत होना होगा। इसकी ज़रूरत महसूस करनी होगी।

ऐसा नहीं हो सकता श्वेता सिंह कि आपके धर्म में तो कानून बन गया इसलिए दहेज के लिए हत्याओं की खबरों को नीचे पट्‌टी पर भी न चलाओ और तीन तलाक पर वन आवर का पूरा प्रोग्राम करके ऐसे साबित करो कि देखो, मुल्लो तुम्हारा कोई धर्म है! औरतों को घर से निकाल देते हो तलाक-तलाक-तलाक कहकर। देखो, हमारा महान् धर्म! हम हर साल 1 लाख 13 हज़ार 548 औरतों को घर से क्रूरतापूर्वक बेदखल करते हैं, 34 हजार 651 से बलात्कार जैसा पाशविक अपराध होता है, 82 हजार 800 औरतों की शुचिता को तार-तार करते हैं और 7646 को जीवित जला डालते हैं, लेकिन हमारे यहां कानून बन चुके हैं और हम सबने आधुनिकतावादी सभ्य होने के समस्त सम्मोहक आवरण पहन लिए हैं, इसलिए हम इतना कुछ करके भी तुम अनपढों से बहुत सभ्य कहलाते हैं।

लेकिन याद रखो कि एक फेयर और जस्ट सोसाइटी लोगों के चैतन्य से ही बन सकती है। कोई कानून, कोई अदालत, कोई दल, कोई धर्म, कोई जाति, कोई समुदाय, कोई आंदोलन, कोई मीडिया औरत के लिए तब तक एक श्रेष्ठ समाज का निर्माण नहीं कर सकता जब तक कि लोगों के दिलोदिमाग की भूमियों पर न्यायशीलता, विवेकशीलता, समानता, स्वच्छता और निर्मलता की शस्यश्यामलता नहीं लहलहाएगी।

यह धरती औरत के लिए रहने लायक तभी बनेगी जब आप बलात्कारी मानसिकता से ऊपर उठ जाएंगे और औरत पर किसी तरह की शुचिताओं का बोझ नहीं डाला जाएगा। पुरुष हिन्दू होकर कानून बना लेता है और औरत दग्ध होती रहती है। पुरुष इस्लाम और कुरआने-पाक की बात करता है, लेकिन वह औरत को बंदिनी तो बनाना चाहता है, लेकिन वे सब आज़ादियां और अधिकार देने से पीछे हट जाता है, जो कुरआन में दी जाती हैं, लेकिन सामाजिक रूप से पुरुष के खिलाफ़ पड़ती हैं। ठीक ऐसा ही चरित्र अन्य धर्मों का है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण आज का अमेरिका है, जहां 46 राष्ट्रपति हो चुके हैं और 226 साल बीत चुके हैं, वहां लोकतंत्र आए, लेकिन मज़ाल कि किसी औरत को वह देश राष्ट्रपति बन लेने दे। दुनिया के इस सबसे ताकतवर देश में ऐसा व्यक्ति तो राष्ट्रपति बन सकता है, जो महिलाओं से यौन दुर्व्यवहार के लिए कुख्यात हो, लेकिन आर्थिक सदाचरण के मामले में थोड़ा संदिग्ध महिला राष्ट्रपति नहीं बन सकती।

दैनिक भास्‍कर उदयपुर में सम्‍पादक का ओहदा सम्‍भाल रहे त्रिभुवन उस जमात में शामिल हैं जिन्‍हें सही अर्थों में पत्रकार माना जाता है। पढ़ना, देखना, सोचना और फिर विश्‍लेषण करके लिखना त्रिभुवन के जीवन का अनिवार्य दायित्‍व है। पत्रकार, कवि और गद्यकार।

(अपने आसपास पसरी-पसरती अराजकता, लूट, भ्रष्‍टाचार, टांग-खिंचाई और किसी प्रतिभा की हत्‍या की साजिशें किसी भी शख्‍स के हृदय-मन-मस्तिष्‍क को विचलित कर सकती हैं। हर शख्‍स ऐसे हादसों पर बोलना चाहता है। लेकिन अधिकांश लोगों को पता तक नहीं होता है कि उसे अपनी प्रतिक्रिया कैसी, कहां और कितनी करनी चाहिए।

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