एक बड़ी बुरी आदत, कि गलत बातें देख कर खामोश नहीं रह पाता

बिटिया खबर

: अबला, निरीह और मासूम बच्चियों के चेहरे में अपनी बेटियां देखता हूं : मुझ पर दबाव है कि मैं गिरी संस्‍थान की सारी खबरों को अपने पोर्टल से हटा दूं, अनपब्लिश कर दूं : यह भी ज्ञान दिया गया कि कई बार ऐसा हो जाता है अर्थ का अनर्थ :

कुमार सौवीर

लखनऊ : ( गतांक से आगे) मेरे साथ एक बहुत बुरी आदत है, लेकिन वही बुरी आदत मेरे लिए वाकई वह वरदान है जिसके बल पर मैं अपनी अंतरात्मा को पोषित और पल्लवित करता रहता हूं, ताकि अबला, निरीह, अशक्त और खास तौर पर मासूम बच्चियों का भविष्य सुरक्षित किया जा सके। उन्हें समुचित न्याय दिलाया जा सके। वह भी इसलिए, ताकि ऐसे दोषियों-पापियों को बेनकाब कर मैं समाज के मजलूम-महकूम यानी बेहाल लोगों को साहस और दिलासा देता रहा रहूं। गिरि इंस्टिट्यूट पर हाल ही मेरी खबरें मेरे इसी संकल्प की डगर पर रहे हैं।

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गुरूजी ! चरण-स्‍पर्श

लेकिन इन खबरों के छप जाने के बाद मुझ पर मानो कोई पहाड़ ही टूट गया। मुझ पर दबाव डालने का सिलसिला शुरू हो गया। ऐसे-ऐसे लोग मुझ पर दबाव डालने लगे जो मेरे लिए बेहद आदरणीय और स्नेही मित्र हैं। सबसे पहले मेरी बड़ी बहन की तरह गुरू ने मुझे पर दबाव डाला मैं प्रोफेसर सुरेंद्र पर छवि अपनी सारी खबरों को अपने पोर्टल से हटा दूं, अनपब्लिश कर दो।उनका कहना था कि मेरी खबरें सिरे से झूठी और सत्य से परे हैं, और ऐसा खबरें कर प्रकाशित कर मैंने अपनी पत्रकारिता के मूल्यों को कलंकित किया है, इसलिए मुझे उन सारी खबरें तत्काल अपने पोर्टल से अब तक हटा देना चाहिए जब तक मैं उन्हें नए तरीके से गहरी छानबीन कर लूं। हालांकि उन्‍होंने यह नहीं बताया इस पूरे प्रकरण में मैंने जो लिखा है वह कहां गलत है।

इसके आठ दिन बाद अगली सिफारिश आई एक ऐसे व्यक्ति की, जिसे मैं अपने छोटे भाई की तरह और बाकायदा मित्रवत स्‍नेह करता हूं। इस व्यक्ति ने प्रोफेसर सुरेंद्र शर्मा की हिमायत करते हुए अपेक्षा की मैं उन खबरों को हटा दूं। लेकिन मैंने जब अपने तथ्य उसके सामने रखें तो उसने तर्क दिया कि कई बार ऐसा हो जाता है अर्थ का अनर्थ। उनका कहना था कि ऐसा हो सकता है कुमार सौवीर की पड़ताल में, कि सच छुप गया हो, और झूठ उछलकर किसी कोहरे की तरह सच की गर्दन दबोच चुका हो। ( क्रमश: )

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