नाम नहीं, पैसा कमाओ। बेटियों की शादी भी करनी है तुमको

बिटिया खबर

: पत्रकारिता छोड़ अब लाइजिंग में जुटे मेरे परिचित मिठाई-मेवा के दो डिब्‍बे लेकर आये : पत्रकारिता नहीं, जीवन में पत्रकारिता का संतुलन बनाना सीखो : मुझे सलाह दी गयी कि मुझे मित्रता और मित्रों का सम्मान करना सीखना चाहिए :

कुमार सौवीर

लखनऊ : ( गतांक से आगे) तीसरी सिफारिश कल दोपहर आई। यह सज्जन मित्र है और पहले कुछ दिन पत्रकारिता में अपना हाथ साफ कर चुके हैं। लेकिन जब उन्हें लगा कि उनकी पत्रकारिता उनके सपनों, लक्ष्यों और अपेक्षाओं के अनुरूप फलीभूत नहीं हो पाएंगे तो उन्होंने खुद को एक व्यवसाय में जोड़ लिया। साथ ही साथ वह नेताओं और अफसरों के साथ लाइजनिंग में भी जुट गए। सुबह फोन पर आने के लिए उन्होंने इच्छा व्यक्त की और बोले याद हो रही है।

दोपहर 11 बजे उनका पदार्पण हुआ साथ में मिठाई और सूखे मेवों हिंदुओं के साथ दो डिब्बा के साथ चाय के बाद उन्होंने अपने आने का मंतव्य स्पष्ट किया कि मुझे प्रो सुरेंद्र शर्मा की सारी खबरें तत्काल हटा दिया नहीं चाहिए। क्योंकि वह मेरे साथी और प्रोफेसर सुरेंद्र शर्मा आपस में घनिष्ठ मित्र है। ज्ञान दिया कि जिंदगी सिर्फ पत्रकारिता के ऐसे मूल्य और शैली पर नहीं चल सकती। ऐसी शैली ठीक से पेट भी नहीं भर सकती, परिवार का भरण-पोषण तो दूर की बात। ऐसी हालत में अब जब जिंदगी की उम्र तीन मंजिला ऊपर जा रहे हो, ऐसे में समझदारी इसी बात की है की पत्रकारिता और निजी जरूरतों के बीच सामंजस्य और संतुलन रखा जाए।

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मित्र ने बताया अब क्योंकि हम सब अधेड़ उम्र पर हैं और जिम्मेदारी लगातार बढ़ती जा रही है। मसलन एक बेटी की शादी तैयारियां चल रही हैं और उसमें भी खासा खर्चा होगा। और यह सारा खर्चा, जाहिर है कि, मित्र ही निपटाएंगे। ऐसे में मुझे मित्रता का और मित्रों का सम्मान करना सीखना चाहिए।

सच बात यही है की मेरी बेटी की शादी की तैयारियां भले ही मैं कर रहा हूं, भागादौड़ी कर रहा हूं। लेकिन असल सहयोग तो मित्रों का ही है। लेकिन यह भी सच है कि मेरे ऐसे मित्र वही हैं, जिन्हें इंसान के तौर पर कुमार सौवीर की जरूरत है, न कि पत्रकार की। अगर मेरे जीवन में मेरे यह चंद नहीं होते तो यह विवाह तो दूर, मेरा जीवन भी चल पाना नामुमकिन होता। पिछले 7 साल से मैं नियमित रूप से रोजगार से वंचित हूं। न नौकरी है, न तनख्वाह। अपनी बात कहने के लिए मैंने अपना पोर्टल शुरु किया, लेकिन शर्त के साथ कि मैं अपने पाठकों से भिक्षा अथवा गुरु दक्षिणा तो जरुर लूंगा, लेकिन विज्ञापन से परहेज रखूंगा। हालांकि मैं जानता हूं यह एक दुष्कर संकल्प है। भिक्षा या दक्षिणा से जीवन यापन कर पाना असंभव होता जा रहा है। मेरी खबरों पर लोग तारीफ तो करते हैं, तालियां भी पीटते हैं, हौसला अफजाई करते हैं, लेकिन बहुत कम ही लोग हैं जो मुझे आर्थिक सहयोग दे देते हैं। ऐसे में मैं अपने संकल्प को पूरा करने के लिए दीगर रास्तों को भी खोजने जुगत में हूं जहां मैं और मेरा सच हमेशा हमेशा जीवित रह सके। ( क्रमश: )

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