: मैं आपके काम में हस्तक्षेप नहीं करता हूं, तो आप भी मुझ में अपनी टांग मत अड़ाइये : मैं कुमार सौवीर हूं, ऐसी हरकतों के सामने झुकना नहीं सीखा : बात यदि सच है, तो मैं छापूंगा जरूर। आप चाहें तो मुझे ट्रोल करा दीजिए :
कुमार सौवीर
लखनऊ : ( गतांक से आगे) गिरि इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के निदेशक प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार शर्मा के मामले में मैंने अब तक 3 सिफारिशों को सुना, और उस बारे में अपनी पूरी सफाई पेश करने के बाद, साफ तौर पर उन तीनों सिफारिशों को खारिज कर दिया। मैंने साफ कह दिया कि मैं समाज की उन अशक्त, पीड़ित और निर्बल बच्चियों के चेहरों में अपनी बेटियों की शक्ल खोजता हूं, जिन्हें पैसे वाले दबोच लेते हैं, खरीद लेते हैं। ऐसे पैसे वालों के पास अथाह धन-दौलत है, और वे अपनी बात के समर्थन जुटाने के लिए अपने जैसे ही लोगों को एकजुट कर सकते हैं, मौके-बेमौके मोमबत्ती मार्च करा सकते हैं, नार लगा सकते हैं, आंदोलन खड़ा कर सकते हैं, बवाल कर सकते हैं, लिखा-पढ़ी कर सकते हैं। और सच पर मोटा कफन ओढ़ा कर उसे जमीन में गहरे तक दफन कर सकते हैं।
प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार शर्मा और उनके सहयोगी, दोस्त और हाकिम-संरक्षक। यह वे लोग हैं, जिनका भगवान केवल पैसा ही है। वे भावनाओं को पैसे के पलड़े में तौलने में ही अपनी जिन्दगी सार्थक मानते हैं। दौलत चाहे कैसे भी राह से आये, उन्हें केवल धन के आने से मतलब होता है। ऐसे लोगों के पास अथाह दौलत है। और वे अपनी बात कहने के लिए अपने जैसे ही लोगों से जी-हुजूरी करा सकते हैं। मौके-दर-मौके बदमाशी भी कर सकते हैं। मेरे खिलाफ ट्रोल भी करा सकते हैं, मुझे किसी मामले में लपेटने की कोशिश कर सकते हैं। उनका कोई चरित्र ही नहीं। यह भी कह सकते हैं कि जिस बच्ची के लिए मैं संघर्ष कर रहा हूं, उसके साथ कुमार सौवीर के साथ कोई न कोई खास रिश्ता है।
मगर मैंने ऐसी हरकतों-हालातों के सामने झुकना नहीं सीखा।
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लेकिन वह लोग यह भूल जाते हैं कि मैं कुमार सौवीर हूं, जिसने ऐसी हरकतों के सामने झुकना नहीं सीखा। ऐसा भी नहीं कि मैं झुकना नहीं जानता, लेकिन मैं केवल उन्हीं लोगों के सामने झुकता हूं जो अशक्त होते हैं,विवश होते हैं, असहाय होते हैं, और जिनका सब कुछ लूट जाता है। ऐसे लोगों को मैं कांधे से उठाने की कोश्ािश करता हूं और उनके पैरों को मजबूती बनना चाहता हूं। हां, उन लोगों के सामने भी झुक सकता हूं, जो हमख्याल हैं, या जो मुझसे नि:स्वार्थ प्रेम-स्नेह रखते हैं।
इसलिए अब आप-सब से हाथ जोड़ कर एक अनुरोध है, विनय-अनुनय है, आग्रह है। वह यह कि भविष्य में मुझे मेरी किसी अभियान पर तब तक कोई हस्तक्षेप ना करें जब तक आपके पास मेरे कृत्य के विरोध में वाकई कोई ठोस आधार न हो। जब मैं आपके कामधाम में कोई हस्तक्षेप नहीं करता हूं, तो आप भी मेरे कामधाम में अपनी टांग मत अड़ाइये। अब तक 3 लोगों का दबाव में सहन कर चुका हूं, लेकिन भविष्य में यदि कोई चौथा व्यक्ति मेरे ऐसे अभियान में अड़ंगा डालेगा, तो यकीन मानिए, उसके बाद मैं चुप नहीं रहूंगा। मेरा संकल्प पिछले तीन दबाव बर्दाश्त करने तक तो जरूर सीमित रहा है, लेकिन चौथे को मैं सहन नहीं कर पाऊंगा। और उसके बाद उनकी सारी पोल-पट्टी मैं सबके सामने रख दूंगा।
यह संकल्प है, वादा भी है।
और आपसे अनुरोध है कि आप मेरे संकल्प और वादे को गंदा बनाने की कोशिश-साजिश मत कीजिएगा।
यह आपसे अनुरोधात्मक आदेश है, और आदेशात्मक अनुरोध भी। ( क्रमश: )
गिरि इंस्टीच्यूट का यह मामला हम अब श्रंखलाबद्ध तरीके से प्रकाशित करने जा रहे हैं। इस लेख-माला की अगली कडि़यों को पढ़ने के लिए क्लिक कीजिए:-