: भाजपाई ही नहीं, बल्कि सपाई भीओमप्रकाश सिंह की टांग-खिंचाई में : लतिहड़-पत्रकार को गालियां मामले को तूल दे रहे सपा-भाजपा के लोग : बूढ़े सांड़ के अण्डकोषों पर हमला करते बनकूकुरों का नजारा निहारिये डिस्कवरी चैनलों में :
कुमार सौवीर
गाजीपुर : आप लोग डिस्कवरी चैनल या नेशनल ज्यॉग्रफिक चैनल देखते हैं? नहीं देखते? कोई बात नहीं। आज से ही देखना शुरू कर दीजिए। आपके ज्ञान-चक्षु खुल जाएंगे। सत्ता क्या होती है, शक्ति-बल क्या होता है, ताकत का प्रयोग कैसे होता है, प्रतिद्वंद्वी पर हमले की परिस्थितियों का आंकलन कैसे किया जाता है, उसके लिए रणनीति कैसे बनायी जाती है, और हमला किस क्षेत्र या अंग पर सबसे किया जाता है, और पलटवार का अंदाज या उसका अंजाम वगैरह क्या-क्या हो सकता है, यह सब कुछ समझा देगें जंगल की राजनीति पर आधारित यह दोनों ही चैनल।
इन्हीं शिकारी प्राणियों को ही बनकूकुर कहा जाता है। कद में बेहद छोटे, शिकारी अंदाज। भेडि़या खानदान के सबसे छोटे और न्यूनतम। लेकिन आज नेशनल ज्यॉग्रफिक चैनल और डिस्कवरी चैनल में मैं कई दिनों से देख रहा हूं कि इन बनकूकुरों का आंकलन बहुत गलत होता जा रहा है। आपको बता दें कि इन चैनलों पर अक्सर यही दिखाया जाता है कि अफ्रीकी सबाना के विशालतम जंगल में जिस प्राणी से शेर, बाघ, चीता वगैरह तक भय खाते हैं, उसका नाम होता हैं जंगली भैंसा। किसी भी मस्ताने भैंसे को छेड़ने की हिमाकत किसी भी बड़ी बिल्ली में नहीं होती है।
लेकिन हा दुर्भाग्य। घने और विशालतम जंगल का बेताज घुमन्तू और मस्ताना बादशाह यानी बेफिक्र भैंसा होता है, मगर उस का बुढ़ापा यानी उसका आखिरी वक्त जब आ जाता है तो उसी भैंसा पर हमला कर बैठते हैं बनकूकुर लोग। इतना ही नहीं, यह बनकूकुर लोग उस अशक्त भैंसा पर सीधे हमला नहीं करते, बल्कि सबसे पहले पीछे से उसके अण्डकोषों पर पंजे-दांत गड़ाते हैं। असह्य पीड़ा से तड़प-तड़प कर भैंसा अपना दम तोड़ देता है।
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गाजीपुर में एक दबंग शेर, दो डरपोंक लोमड़ी। पत्रकार जी की पैंट गीली
कितना पीड़ा-जनक होता है यह सब। भैंसा के लिए। है न? लेकिन अगर यह आंकलन गड़बड़ हो जाए, तो ऐसे भैंसा की एक लात ही किसी भी बनकूकुर की अन्त्येष्टि सम्पन्न करा सकती है। सच बात तो यह है कि अगर बनकूकुर लोग गलत फैसला करेंगे, तो तय है कि प्राणान्तक लात ही खाएंगे।
खैर, यह सब तो जंगल में होता ही रहता है। लेकिन चालें तो कहीं भी हो सकती है, बिसात या चौपड़ कहीं भी बिछाया जा सकता है। आजकल गाजीपुर में भी तो यही सब तो चल रहा है इस वक्त। स्थान और चरित्र भले ही बदल चुके हैं, लेकिन कहानी ठीक वही है, जो डिस्कवरी चैनल या ज्यॉग्रफिक चैनल दिखाता-सुनाता है।
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जी हां, यहां के नेता हैं ओमप्रकाश सिंह। दबंग हैं, और अधिकांश पूर्वांचल में उनकी खासी हनक-धमक है। छात्र राजनीति से आये हैं, और समाजवादी पार्टी के बड़े जागीदारों में शुमार हुए जाते हैं। बेलौस हैं, गालियां हथछुट देते हैं। लेकिन केवल अपने लोगों को ही, सामान्य तौर पर किसी दूसरे प्रतिद्वंद्वी पर ऐसा नहीं करते हैं। उनका आपराधिक चरित्र या इतिहास नहीं है, लेकिन ठसक ऐसी है कि सामान्य तौर पर कोई भी उनकी बात मना करने के पहले सौ-पचास बार सोचता है। गाजीपुर एक मस्ताने मजबूत सांड़ की तौर पर आप उन्हें देख सकते हैं। स्थानीय कई लोगों के अनुसार ओमप्रकाश सिंह के विरोधी लोग यह भूल रहे हैं कि ओमप्रकाश सिंह एक जमीनी हैसियत वाले नेता का नाम है।
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लेकिन आज इसी ओमप्रकाश सिंह पर हमला करने की कोशिशें हो रही हैं। एक ओर तो भाजपा के दो लोग उन पर पीठ-पीछे तोप दगाने की कोशिश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर खुद उनकी ही पार्टी में भितरघात की खबरें आ रही हैं। मकसद यह कि कैसे भी हो, ओमप्रकाश सिंह को कानून के शिकंजों में फंसा कर उनकी राजनीतिक कब्र खोद डाली जाए। लेकिन जानकार बताते हैं कि ऐसा कर पाना इतना आसान नहीं होगा।
एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि इस मामले में ओमप्रकाश के खिलाफ जिस कंधे का इस्तेमाल किया जाने की कोशिशें की जा रही हैं, वह है एक पत्रकार। पत्रकार भी ऐसा, जिसकी छवि सेटिंग-लाइजिंग की है। जाहिर है कि, ओमप्रकाश सिंह की आवाज में कहें तो इस पत्रकार की छवि साफ और स्पष्ट बेईमान की है, और यह पत्रकार अब तक ओमप्रकाश सिंह से अपने घर की दवाई, इंजेक्शन, राशन-सतुआ और बरहीं-तेरहवीं आदि के मौकों पर भी उपकृत होता रहा है। उसी को गालियां देते हुए ओमप्रकाश सिंह ने फोन पर विधायक सुनीता सिंह और एमएलसी चंचल को भल-भर गरियाया था। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि सुनीता सिंह और चंचल सिंह का मकसद ओमप्रकाश सिंह को कानूनी शिकंजे में फंसाना ही है।
उधर एक बड़ा खतरा तो उन्हें अपनी ही पार्टी के एक पहरूए से है। नाम है राधेमोहन सिंह, जो एक बार सपा से सांसद हो चुके हैं। सपा के एक स्थानीय नेता ने बताया कि चूंकि राधेमोहन सिंह को ओमप्रकाश से अपनी राजनीतिक जमीन खतरे में दिख रही है, इसलिए वे सुनीता सिंह और चंचल सिंह के साथ गलबहियां करने में जुट गये हैं। लेकिन यह मामला फिलहाल चुपचाप ही निपटाया जा रहा है। राधेमोहन सिंह गाजीपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
मजे की बात है कि यह चारों ही लोग क्षत्रिय कुल से हैं। सभी को अपनी उन तलवारों पर बड़ा गर्व है, जो अब वाकई कहीं नहीं है। पुरखों के पास शायद रही होगी, लेकिन अब तो उसके पैंतरे भी वे सब भूल चुके हैं। उधर पांचवां ठाकुर है वह पत्रकार, जिसका नाम है अजीत सिंह। लेकिन उसकी हालत तो बहुत ही खराब हो गयी है।
“जमालो फंस गयी गुण्डन मा” की शैली में।